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भारत की बेरोजगारी दर में गिरावट, लेकिन क्या ये वास्तव में स्थिति सामान्य होने के संकेत हैं?

आर्थिक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमीज (सीएमआईई) के मासिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की बेरोजगारी दर मई और अप्रैल दोनों में 23.5 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 11 प्रतिशत पर आ गई.

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Published : Jul 6, 2020, 5:41 PM IST

भारत की बेरोजगारी दर में गिरावट, लेकिन क्या ये वास्तव में स्थिति सामान्य होने के संकेत हैं?
भारत की बेरोजगारी दर में गिरावट, लेकिन क्या ये वास्तव में स्थिति सामान्य होने के संकेत हैं?

हैदराबाद: कोरोना महामारी के कारण 25 मार्च से 31 मई तक चले लॉकडाउन के बाद भारत जैसे ही अनलॉक हुआ वैसे ही जून के दूसरे सप्ताह में बेरोजगारी दर में भारी कमी देखने को मिली. पिछले हफ्ते आर्थिक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमीज (सीएमआईई) के मासिक आंकड़ों से पता चला है कि भारत की बेरोजगारी दर मई और अप्रैल दोनों में 23.5 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 11 प्रतिशत पर आ गई.

अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो मई में बेरोजगारी दर 22.5 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 10.5 प्रतिशत पर आ गई थी. वहीं, शहरी क्षेत्र की बात करें तो यहां भी मई में बेरोजगारी दर 25.8 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 12 प्रतिशत पर आ गई.

भारत की बेरोजगारी दर में गिरावट, लेकिन क्या ये वास्तव में स्थिति सामान्य होने के संकेत हैं?
भारत में बेरोजगारी दर के आंकड़े

ये भी पढ़ें- होजरी और रेडीमेड वस्त्र: क्या वैश्विक बाजार में चीन से आगे निकल सकता है भारत?

जून के रोजगार की संख्या में सुधार कुछ निवेशकों और विश्लेषकों को खुश करने में कामयाब रहा क्योंकि यह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का संकेत देता है.

नौकरियों की गुणवत्ता एक चिंता का विषय

सीएमआईई के आंकड़ों से पता चला है कि कोरोना महामारी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च के अंत में देशव्यापी तालाबंदी लागू करने के बाद अप्रैल में भारत में करीब 12.2 करोड़ लोगों ने नौकरियां खो दी थीं. बाद में प्रतिबंधों को धीरे-धीरे कम कर दिया गया था. जिसके बाद मई में 2.1 करोड़ नौकरियां वापस आईं और जून में 7 करोड़ नौकरियां वापस आईं.

हालांकि, 7 करोड़ नौकरियों में केवल 39 लाख या 5.5 प्रतिशत वेतनभोगी नौकरियां थीं. बाकी ज्यादातर रोजगार खेती और अनौपचारिक रूपों से आ रही है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि अप्रैल और मई दोनों में लगभग 1.8 करोड़ वेतनभोगी नौकरियां खो दी थी.

सीएमआईई ने यह भी बताया कि देश में जॉब्स मार्केट में रिकवरी मुख्य रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना गतिविधियों में अचानक वृद्धि के कारण हुई है, इसके अलावा लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील भी एक बड़ी वजह है.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के प्रमुख अमित बसोले ने कहा, "यह उम्मीद की जा रही थी कि अप्रैल-मई में बेरोजगारी चरम पर रहेगी और जून में गिरावट आएगी, लेकिन नौकरियों की गुणवत्ता के बारे में यह स्पष्ट नहीं है. कम से कम कुछ रोजगार पूर्व-लॉकडाउन (जैसे छोटी दुकानें, कार्यशालाएं आदि) के समान हैं. वहीं, कारखाने के मजदूर जिनके कारखाने अभी भी बंद हैं, या प्रवासी श्रमिक जो अपने गांवों से वापस आ रहे हैं, वे ऐसे काम कर रहे हैं जो उनके सामान्य काम से अलग हैं."

बेरोजगारी के आंकड़े अब भी हैं अधिक

भले ही बेरोजगारी की दर जून में गिर गई हो, लेकिन यह अभी भी मार्च के 8.75 प्रतिशत और फरवरी के 7.76 प्रतिशत से कम है.

बसोले ने कहा, "यह (जून में बेरोजगारी दर की गिरावट पर) केवल इस अर्थ में अच्छी खबर है कि लॉकडाउन के सबसे गंभीर प्रभाव उलट हो गए हैं. यह अपेक्षित था. श्रम बाजार में दीर्घकालिक समस्याएं अभी भी बनी रहेंगी. हमें उन चिंताओं को दूर करने के लिए नीतियों के एक अलग तरीके से देखने की आवश्यकता है."

बता दें कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत की बेरोजगारी दर 2017-18 में 6.1 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. जिसे 45 सालों का सबसे निचला स्तर बताया गया था. जिसपर सरकार ने कहा था कि इस सर्वेक्षण में मापने के तौर-तरीके पुराने सर्वेक्षण से अलग हैं. इसलिए इसकी पिछले आंकड़ों से तुलना ठीक नहीं है.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

हैदराबाद: कोरोना महामारी के कारण 25 मार्च से 31 मई तक चले लॉकडाउन के बाद भारत जैसे ही अनलॉक हुआ वैसे ही जून के दूसरे सप्ताह में बेरोजगारी दर में भारी कमी देखने को मिली. पिछले हफ्ते आर्थिक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमीज (सीएमआईई) के मासिक आंकड़ों से पता चला है कि भारत की बेरोजगारी दर मई और अप्रैल दोनों में 23.5 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 11 प्रतिशत पर आ गई.

अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो मई में बेरोजगारी दर 22.5 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 10.5 प्रतिशत पर आ गई थी. वहीं, शहरी क्षेत्र की बात करें तो यहां भी मई में बेरोजगारी दर 25.8 प्रतिशत थी जो जून में गिरकर 12 प्रतिशत पर आ गई.

भारत की बेरोजगारी दर में गिरावट, लेकिन क्या ये वास्तव में स्थिति सामान्य होने के संकेत हैं?
भारत में बेरोजगारी दर के आंकड़े

ये भी पढ़ें- होजरी और रेडीमेड वस्त्र: क्या वैश्विक बाजार में चीन से आगे निकल सकता है भारत?

जून के रोजगार की संख्या में सुधार कुछ निवेशकों और विश्लेषकों को खुश करने में कामयाब रहा क्योंकि यह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का संकेत देता है.

नौकरियों की गुणवत्ता एक चिंता का विषय

सीएमआईई के आंकड़ों से पता चला है कि कोरोना महामारी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च के अंत में देशव्यापी तालाबंदी लागू करने के बाद अप्रैल में भारत में करीब 12.2 करोड़ लोगों ने नौकरियां खो दी थीं. बाद में प्रतिबंधों को धीरे-धीरे कम कर दिया गया था. जिसके बाद मई में 2.1 करोड़ नौकरियां वापस आईं और जून में 7 करोड़ नौकरियां वापस आईं.

हालांकि, 7 करोड़ नौकरियों में केवल 39 लाख या 5.5 प्रतिशत वेतनभोगी नौकरियां थीं. बाकी ज्यादातर रोजगार खेती और अनौपचारिक रूपों से आ रही है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि अप्रैल और मई दोनों में लगभग 1.8 करोड़ वेतनभोगी नौकरियां खो दी थी.

सीएमआईई ने यह भी बताया कि देश में जॉब्स मार्केट में रिकवरी मुख्य रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना गतिविधियों में अचानक वृद्धि के कारण हुई है, इसके अलावा लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील भी एक बड़ी वजह है.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के प्रमुख अमित बसोले ने कहा, "यह उम्मीद की जा रही थी कि अप्रैल-मई में बेरोजगारी चरम पर रहेगी और जून में गिरावट आएगी, लेकिन नौकरियों की गुणवत्ता के बारे में यह स्पष्ट नहीं है. कम से कम कुछ रोजगार पूर्व-लॉकडाउन (जैसे छोटी दुकानें, कार्यशालाएं आदि) के समान हैं. वहीं, कारखाने के मजदूर जिनके कारखाने अभी भी बंद हैं, या प्रवासी श्रमिक जो अपने गांवों से वापस आ रहे हैं, वे ऐसे काम कर रहे हैं जो उनके सामान्य काम से अलग हैं."

बेरोजगारी के आंकड़े अब भी हैं अधिक

भले ही बेरोजगारी की दर जून में गिर गई हो, लेकिन यह अभी भी मार्च के 8.75 प्रतिशत और फरवरी के 7.76 प्रतिशत से कम है.

बसोले ने कहा, "यह (जून में बेरोजगारी दर की गिरावट पर) केवल इस अर्थ में अच्छी खबर है कि लॉकडाउन के सबसे गंभीर प्रभाव उलट हो गए हैं. यह अपेक्षित था. श्रम बाजार में दीर्घकालिक समस्याएं अभी भी बनी रहेंगी. हमें उन चिंताओं को दूर करने के लिए नीतियों के एक अलग तरीके से देखने की आवश्यकता है."

बता दें कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत की बेरोजगारी दर 2017-18 में 6.1 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. जिसे 45 सालों का सबसे निचला स्तर बताया गया था. जिसपर सरकार ने कहा था कि इस सर्वेक्षण में मापने के तौर-तरीके पुराने सर्वेक्षण से अलग हैं. इसलिए इसकी पिछले आंकड़ों से तुलना ठीक नहीं है.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

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