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पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने सरकार के जीडीपी आंकड़ों पर उठाए सवाल - Business News

सुब्रमण्यन की माने तो साल 2011-12 से 2016-17 के बीच देश की जीडीपी में 7 फीसदी नहीं बल्कि सिर्फ 4.5 फीसदी की बढ़त हुई है. सुब्रमण्यन के अनुसार इन वर्षों में भारत की विकास दर 2.5% बढ़ाकर बताई गई थी.

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने सरकार के जीडीपी आंकड़ों पर उठाए सवाल
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Published : Jun 11, 2019, 1:48 PM IST

Updated : Jun 11, 2019, 5:17 PM IST

नई दिल्ली: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि (जीडीपी वृद्धित) की गणना के लिए अपनाए गए नए पैमानों के चलते 2011-12 और 2016-17 के बीच आर्थिक वृद्धि दर औसतन 2.5% ऊंची हो गयी गयी.

उन्होंने हार्वर्ड विश्विद्यालय द्वारा प्रकाशित अपने शोध पत्र में कहा है कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर उपरोक्त अवधि में 4.5 प्रतिशत रहनी चाहिए जबकि आधिकारिक अनुमान में इसे करीब 7 प्रतिशत बताया गया है.

सुब्रमणियम ने कहा, "भारत ने 2011-12 से आगे की अवधि के जीडीपी के अनुमान के लिए आंकड़ों के स्रोतों और जीडीपी अनुमान की पद्धति बदल दी है. इससे आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान अच्छा-खासा ऊंचा हो गया."

ये भी पढ़ें- बजट 2019: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की बजट पूर्व परामर्श बैठक, कृषि एक्सपर्ट्स ने दिए कई सुझाव

जीडीपी की नई श्रृंखला के तहत देश की आर्थिक वृद्धि को लेकर विवाद के बीच यह रिपोर्ट आयी है. तौर-तरीकों की समीक्षा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में हुई. उन्होंने कहा, "आधिकारिक अनुमान के अनुसार

सालाना औसत जीडीपी वृद्धि 2011-12 और 2016-17 के बीच करीब 7 प्रतिशत रही. हमारा अनुमान है कि 95% विश्वास के साथ इसके 3.5 से 5.5 प्रतिशत के दायरे में मानते हुए इस दौरान जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही होगी."

सुब्रमणियम लिखते हैं कि विनिर्माण एक ऐसा क्षेत्र है जहां सही तरीके से आकलन नहीं किया गया. वह पिछले साल अगस्त में आर्थिक सलाहकार पद से हटे. हालांकि उनका कार्यकाल मई 2019 तक के लिये बढ़ाया गया था.

उन्होंने कहा कि इसका प्रभाव यह है, "वृहत आर्थिक नीति काफी बड़ी है. सुधारों को आगे बढ़ाने की गति संभवत: कमजोर हुई. आने वाले समय में आर्थिक वृद्धि को पटरी पर लाना प्राथमिकता में सबसे ऊपर होनी चाहिए. जीडीपी अनुमान पर फिर से गौर किया जाना चाहिए."

पिछले महीने जारी आधिकारिक आंकड़े के अनुसार आर्थिक वृद्धि दर 2018-19 की चौथी तिमाही में पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत रही. कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन के कारण भारत की यह वृद्धि दर चीन से भी कम रही.

उन्होंने अपने शोध पत्र का लिंक देते हुए ट्वीट किया, "अत: वैश्विक वित्तीय संकट के बाद भारत की वृद्धि दर अच्छी रही लेकिन शानदार नहीं थी." सुब्रमणियम ने कहा, "मेरे शोध पत्र में मूल तकनीकी प्रक्रियागत बदलाव पर जोर है. यह हाल में जीडीपी विवाद से अलग है."

साल 2015 में बदला था जीडीपी का बेस ईयर
नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2015 में जीडीपी की नई सिरीज बनायी थी. जिसमें जीडीपी के बेस ईयर को ही बदल दिया था. पहले बेस ईयर को 2004-2005 था जिसे बाद में बढ़ाकर 2011-2012 कर दिया गया था.

जीडीपी के आंकड़ों पर रघुराम राजन ने भी उठाया था सवाल
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारत की 7 फीसदी की आर्थिक विकास दर के आंकड़े पर सवाल उठाया था. उन्होंने जीडीपी के आंकड़ों को लेकर उपजे संदेह को दूर करने के लिए एक निष्पक्ष समूह की नियुक्ति पर जोर दिया था.

नई दिल्ली: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि (जीडीपी वृद्धित) की गणना के लिए अपनाए गए नए पैमानों के चलते 2011-12 और 2016-17 के बीच आर्थिक वृद्धि दर औसतन 2.5% ऊंची हो गयी गयी.

उन्होंने हार्वर्ड विश्विद्यालय द्वारा प्रकाशित अपने शोध पत्र में कहा है कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर उपरोक्त अवधि में 4.5 प्रतिशत रहनी चाहिए जबकि आधिकारिक अनुमान में इसे करीब 7 प्रतिशत बताया गया है.

सुब्रमणियम ने कहा, "भारत ने 2011-12 से आगे की अवधि के जीडीपी के अनुमान के लिए आंकड़ों के स्रोतों और जीडीपी अनुमान की पद्धति बदल दी है. इससे आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान अच्छा-खासा ऊंचा हो गया."

ये भी पढ़ें- बजट 2019: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की बजट पूर्व परामर्श बैठक, कृषि एक्सपर्ट्स ने दिए कई सुझाव

जीडीपी की नई श्रृंखला के तहत देश की आर्थिक वृद्धि को लेकर विवाद के बीच यह रिपोर्ट आयी है. तौर-तरीकों की समीक्षा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में हुई. उन्होंने कहा, "आधिकारिक अनुमान के अनुसार

सालाना औसत जीडीपी वृद्धि 2011-12 और 2016-17 के बीच करीब 7 प्रतिशत रही. हमारा अनुमान है कि 95% विश्वास के साथ इसके 3.5 से 5.5 प्रतिशत के दायरे में मानते हुए इस दौरान जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही होगी."

सुब्रमणियम लिखते हैं कि विनिर्माण एक ऐसा क्षेत्र है जहां सही तरीके से आकलन नहीं किया गया. वह पिछले साल अगस्त में आर्थिक सलाहकार पद से हटे. हालांकि उनका कार्यकाल मई 2019 तक के लिये बढ़ाया गया था.

उन्होंने कहा कि इसका प्रभाव यह है, "वृहत आर्थिक नीति काफी बड़ी है. सुधारों को आगे बढ़ाने की गति संभवत: कमजोर हुई. आने वाले समय में आर्थिक वृद्धि को पटरी पर लाना प्राथमिकता में सबसे ऊपर होनी चाहिए. जीडीपी अनुमान पर फिर से गौर किया जाना चाहिए."

पिछले महीने जारी आधिकारिक आंकड़े के अनुसार आर्थिक वृद्धि दर 2018-19 की चौथी तिमाही में पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत रही. कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन के कारण भारत की यह वृद्धि दर चीन से भी कम रही.

उन्होंने अपने शोध पत्र का लिंक देते हुए ट्वीट किया, "अत: वैश्विक वित्तीय संकट के बाद भारत की वृद्धि दर अच्छी रही लेकिन शानदार नहीं थी." सुब्रमणियम ने कहा, "मेरे शोध पत्र में मूल तकनीकी प्रक्रियागत बदलाव पर जोर है. यह हाल में जीडीपी विवाद से अलग है."

साल 2015 में बदला था जीडीपी का बेस ईयर
नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2015 में जीडीपी की नई सिरीज बनायी थी. जिसमें जीडीपी के बेस ईयर को ही बदल दिया था. पहले बेस ईयर को 2004-2005 था जिसे बाद में बढ़ाकर 2011-2012 कर दिया गया था.

जीडीपी के आंकड़ों पर रघुराम राजन ने भी उठाया था सवाल
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारत की 7 फीसदी की आर्थिक विकास दर के आंकड़े पर सवाल उठाया था. उन्होंने जीडीपी के आंकड़ों को लेकर उपजे संदेह को दूर करने के लिए एक निष्पक्ष समूह की नियुक्ति पर जोर दिया था.

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पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने सरकार के जीडीपी आंकड़ों पर उठाए सवाल 

नई दिल्ली: भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने नई जीडीपी सिरीज के आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च पेपर में यह दावा किया है. जिसनें उन्होंने दावा किया है कि साल 2011-12 से 2016-17 के बीच देश की आर्थिक विकास दर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया. 

सुब्रमण्यन की माने तो साल 2011-12 से 2016-17 के बीच देश की जीडीपी में 7 फीसदी नहीं बल्कि सिर्फ 4.5 फीसदी की बढ़त हुई है. सुब्रमण्यन के अनुसार इन वर्षों में भारत की विकास दर 2.5% बढ़ाकर बताई गई थी. 

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने अपने रिसर्च पेपर में दावा किया कि जीडीपी आकलन करने में सबसे ज्यादा गड़बड़ी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में हुई है.



साल 2015 में बदला था जीडीपी का बेस ईयर

नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2015 में जीडीपी की नई सिरीज बनायी थी. जिसमें जीडीपी के बेस ईयर को ही बदल दिया था. पहले बेस ईयर को 2004-2005 था जिसे बाद में बढ़ाकर 2011-2012 कर दिया गया था. 



जीडीपी के आंकड़ों पर रघुराम राजन ने भी उठाया था सवाल

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारत की 7 फीसदी की आर्थिक विकास दर के आंकड़े पर सवाल उठाया था. उन्होंने जीडीपी के आंकड़ों को लेकर उपजे संदेह को दूर करने के लिए एक निष्पक्ष समूह की नियुक्ति पर जोर दिया था.

 


Conclusion:
Last Updated : Jun 11, 2019, 5:17 PM IST
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