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बजट 2021 : पेंशन फंड में निवेश के लिए कर में राहत की मांग कर रहे विशेषज्ञ

अगले साल के केंद्रीय बजट से पहले, कर विशेषज्ञ पेंशन फंड में निवेश करने के लिए आय से कटौती में एक बड़ी बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि करदाताओं को वृद्धावस्था में उचित पेंशन प्राप्त करने के लिए आवश्यक धन जुटाने के लिए मौजूदा सीमा अपर्याप्त है.

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Published : Dec 29, 2020, 12:51 PM IST

बजट 2021 : पेंशन फंड में निवेश के लिए कर में राहत की मांग कर रहे विशेषज्ञ
बजट 2021 : पेंशन फंड में निवेश के लिए कर में राहत की मांग कर रहे विशेषज्ञ

नई दिल्ली : आने वाले केंद्रीय बजट को ध्यान में रखते हुए, कर विशेषज्ञ पेंशन फंड में निवेश करने के लिए आय से कटौती में एक बड़ी बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि करदाताओं को वृद्धावस्था में उचित पेंशन प्राप्त करने के लिए आवश्यक धन जुटाने के लिए मौजूदा सीमा अपर्याप्त है.

आयकर अधिनियम की धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत, एक व्यक्ति करदाता राष्ट्रीय पेंशन बचत योजना (एनपीएस) में निवेश करने के लिए अपनी आय से सालाना अधिकतम 50,000 रुपये की कटौती का हकदार है.

आईबीएस, हैदराबाद में वित्त के प्रोफेसर विघ्नस्वामी स्वामी ने कहा, "मुझे लगता है कि इसे 2 लाख रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए."

2 लाख रुपये की बचत सीमा अपर्याप्त है

प्रोफेसर स्वामी का कहना है कि बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग के करदाताओं को लगता है कि आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1.5 लाख रुपये की बचत सीमा उनकी बचत की जरूरतों को सीमित कर रही है.

बचत व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार एक वर्ष में एक व्यक्ति की आय से 2 लाख रुपये की संचयी कटौती की अनुमति देती है.

आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत, एक वर्ष में 1.5 लाख रुपये तक की आय को एलआईसी, पीपीएफ और ईपीएफ जैसे बचत उपकरणों में निवेश करने के लिए आयकर से काटा जा सकता है.

पेंशन योजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित करना

जबकि धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत, एक व्यक्ति धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये से अधिक की कटौती पर अपनी आय से 50,000 रुपये तक की अतिरिक्त कटौती का लाभ उठा सकता है.

प्रोफेसर स्वामी का कहना है कि धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत निवेश सीमा में 300% बढ़ोतरी आवश्यक है.

उन्होंने कहा, "इस तरह के दीर्घकालिक निवेश निश्चित रूप से देश की बचत जरूरतों को पूरा करने में मदद करेंगे."

एक अन्य कर विशेषज्ञ, जो दिल्ली-एनसीआर स्थित चार्टर्ड अकाउंटेंट है, का कहना है कि पेंशन फंड निवेश के लिए राहत में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी से श्रमिक वर्ग के लोगों की भविष्य की पेंशन आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, "भविष्य की आवश्यकता और मुद्रास्फीति की दर को देखते हुए, पेंशन फंडों में एक वर्ष में 50,000 रुपये का निवेश भविष्य की पेंशन जरूरतों के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त है," .

हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार 50,000 रुपये की सीमा को बढ़ाकर एक साल में सीधे 2 लाख रुपये तक नहीं कर सकती है.

उन्होंने ईटीवी भारत से कहा, "धारा 80सीसीडी (1बी) से 1 लाख रुपये तक की निवेश सीमा को पार करना पर्याप्त नहीं होगा और इसे बढ़ाकर 2 लाख रुपये प्रति वर्ष करना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है. तो सरकार को सीमा को बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष करना चाहिए."

कर राहत के लिए गुंजाइश

दिल्ली एनसीआर बेस्ड आर्थिक थिंक टैंक ईग्रो फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक बजट चर्चा में ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में, प्रोफेसर स्वामी ने कहा कि कोविड 19 महामारी के प्रकोप के कारण राजस्व संग्रह में आई कमी के बावजूद वित्त मंत्री के पास मध्यम वर्गीय करदाताओं को इस तरह के कर राहत देने की गुंजाइश है.

ईटीवी भारत के एक सवाल पर उन्होंने कहा, "अप्रत्यक्ष कर और अन्य करों के योगदान की तुलना में सरकार के आयकर का योगदान उथना बड़ा नहीं है. और सरकार के पास व्यक्तिगत आयकर पर निर्भर होने के बजाय करों को बढ़ाने के अन्य रास्ते हैं."

(वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानन्द त्रिपाठी का लेख)

ये भी पढ़ें : बजट 2021: व्यक्तिगत आयकर दरों में बदलाव की गुंजाइश कम

नई दिल्ली : आने वाले केंद्रीय बजट को ध्यान में रखते हुए, कर विशेषज्ञ पेंशन फंड में निवेश करने के लिए आय से कटौती में एक बड़ी बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि करदाताओं को वृद्धावस्था में उचित पेंशन प्राप्त करने के लिए आवश्यक धन जुटाने के लिए मौजूदा सीमा अपर्याप्त है.

आयकर अधिनियम की धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत, एक व्यक्ति करदाता राष्ट्रीय पेंशन बचत योजना (एनपीएस) में निवेश करने के लिए अपनी आय से सालाना अधिकतम 50,000 रुपये की कटौती का हकदार है.

आईबीएस, हैदराबाद में वित्त के प्रोफेसर विघ्नस्वामी स्वामी ने कहा, "मुझे लगता है कि इसे 2 लाख रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए."

2 लाख रुपये की बचत सीमा अपर्याप्त है

प्रोफेसर स्वामी का कहना है कि बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग के करदाताओं को लगता है कि आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1.5 लाख रुपये की बचत सीमा उनकी बचत की जरूरतों को सीमित कर रही है.

बचत व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार एक वर्ष में एक व्यक्ति की आय से 2 लाख रुपये की संचयी कटौती की अनुमति देती है.

आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत, एक वर्ष में 1.5 लाख रुपये तक की आय को एलआईसी, पीपीएफ और ईपीएफ जैसे बचत उपकरणों में निवेश करने के लिए आयकर से काटा जा सकता है.

पेंशन योजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित करना

जबकि धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत, एक व्यक्ति धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये से अधिक की कटौती पर अपनी आय से 50,000 रुपये तक की अतिरिक्त कटौती का लाभ उठा सकता है.

प्रोफेसर स्वामी का कहना है कि धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत निवेश सीमा में 300% बढ़ोतरी आवश्यक है.

उन्होंने कहा, "इस तरह के दीर्घकालिक निवेश निश्चित रूप से देश की बचत जरूरतों को पूरा करने में मदद करेंगे."

एक अन्य कर विशेषज्ञ, जो दिल्ली-एनसीआर स्थित चार्टर्ड अकाउंटेंट है, का कहना है कि पेंशन फंड निवेश के लिए राहत में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी से श्रमिक वर्ग के लोगों की भविष्य की पेंशन आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, "भविष्य की आवश्यकता और मुद्रास्फीति की दर को देखते हुए, पेंशन फंडों में एक वर्ष में 50,000 रुपये का निवेश भविष्य की पेंशन जरूरतों के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त है," .

हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार 50,000 रुपये की सीमा को बढ़ाकर एक साल में सीधे 2 लाख रुपये तक नहीं कर सकती है.

उन्होंने ईटीवी भारत से कहा, "धारा 80सीसीडी (1बी) से 1 लाख रुपये तक की निवेश सीमा को पार करना पर्याप्त नहीं होगा और इसे बढ़ाकर 2 लाख रुपये प्रति वर्ष करना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है. तो सरकार को सीमा को बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष करना चाहिए."

कर राहत के लिए गुंजाइश

दिल्ली एनसीआर बेस्ड आर्थिक थिंक टैंक ईग्रो फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक बजट चर्चा में ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में, प्रोफेसर स्वामी ने कहा कि कोविड 19 महामारी के प्रकोप के कारण राजस्व संग्रह में आई कमी के बावजूद वित्त मंत्री के पास मध्यम वर्गीय करदाताओं को इस तरह के कर राहत देने की गुंजाइश है.

ईटीवी भारत के एक सवाल पर उन्होंने कहा, "अप्रत्यक्ष कर और अन्य करों के योगदान की तुलना में सरकार के आयकर का योगदान उथना बड़ा नहीं है. और सरकार के पास व्यक्तिगत आयकर पर निर्भर होने के बजाय करों को बढ़ाने के अन्य रास्ते हैं."

(वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानन्द त्रिपाठी का लेख)

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