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आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें - Economic Survey 2019-20 highlights

लोकसभा में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें.

आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें
आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें
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Published : Jan 31, 2020, 4:47 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 4:24 PM IST

नई दिल्ली: आज संसद का बजट सत्र शुरू हो गया. आर्थिक सुस्ती की खबरों के बीच मोदी सरकार आज साल 2019-2020 का इकोनॉमिक सर्वे यानी आर्थ‍िक सर्वेक्षण को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पेश कर दिया.

लोकसभा में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

  • आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में कम से कम पांच प्रतिशत रहेगी. अगले वित्त वर्ष में बढ कर 6-6.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान.
  • आर्थिक वृद्धि को गति देरे के चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सीमित करने के लक्ष्य में देनी पड़ सकती है ढील.
  • चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि के गति पकड़ने का अनुमान. यह उम्मीद विदेशी निवेश के प्रवाह, मांग के बढ़ते दबाव तथा जीएसटी संग्रह सकारात्मक वृद्धि समेत 10 कारकों पर आधारित.
  • समीक्षा में आर्थिक सुधार तेज करने पर बल.
  • वर्ष 2025 तक भारत को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में नैतिक तरीके से संपत्ति सृजन महत्वपूर्ण.
  • नियमित क्षेत्र का विस्तार. संगठित/नियमित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा 2011-12 के 17.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 22.8 प्रतिशत पर.
  • समीक्षा में संपत्ति सृजन, कारोबार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में भरोसा मजबूत करने पर जोर.
  • वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये इस दौरान बुनियादी संरचना पर 1,400 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत.
  • नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के हिसाब से 2011-12 से 2017-18 के दौरान शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के 2.62 करोड़ नये अवसरों का हुआ सृजन.
  • वित्त वर्ष 2011-12 से 2017-18 के दौरान नियमित रोजगार में महिलाण श्रमिलाएं आठ प्रतिशत बढ़ीं.
  • बाजार में सरकार के अधिक दखल से आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है.
  • कर्जमाफी से खराब होती है ऋण संस्कृति, उन्हीं किसानों के औपचारिक ऋण वितरण पर पड़ता है असर.
  • सरकार को उन क्षेत्रों की बाकायदा पहचान करनी चाहिए जहां सरकारी दखल अनावश्यक है और उससे व्यवधान होता है.
  • सरकारी बैंकों में बेहतर कंपनी संचालन, भरोसा तैयार करने के लिये अधिक खुलासों पर ध्यान देने की वकालत.
  • नया कारोबार शुरू करना, संपत्ति का पंजीयन कराने, कर का भुगतान, करार करने आदि को सुगत बनाने पर ध्यान देने की मांग.
  • कच्चा तेल की कीमतें कम होने से चालू खाता घाटे में आयी कमी. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में अधिक तेजी से हुए गिरावट का भी हाथ.
  • मुद्रास्फीति के अप्रैल 2019 के 3.2 प्रतिशम से गिरकर दिसंबर 2019 में 3.2 प्रतिशत पर आना मांग में नरमी का संकेत.
  • चालू वित्त वर्ष में नवंबर माह तक केंद्रीय माल एवं सेवा कर के संग्रह में हुई 4.1 प्रतिशत की वृद्धि.

ये भी पढ़ें- आर्थिक समीक्षा: अगले वित्तवर्ष में वृद्धि दर सुधरकर 6-6.5% के बीच रहने का अनुमान

नई दिल्ली: आज संसद का बजट सत्र शुरू हो गया. आर्थिक सुस्ती की खबरों के बीच मोदी सरकार आज साल 2019-2020 का इकोनॉमिक सर्वे यानी आर्थ‍िक सर्वेक्षण को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पेश कर दिया.

लोकसभा में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

  • आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में कम से कम पांच प्रतिशत रहेगी. अगले वित्त वर्ष में बढ कर 6-6.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान.
  • आर्थिक वृद्धि को गति देरे के चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सीमित करने के लक्ष्य में देनी पड़ सकती है ढील.
  • चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि के गति पकड़ने का अनुमान. यह उम्मीद विदेशी निवेश के प्रवाह, मांग के बढ़ते दबाव तथा जीएसटी संग्रह सकारात्मक वृद्धि समेत 10 कारकों पर आधारित.
  • समीक्षा में आर्थिक सुधार तेज करने पर बल.
  • वर्ष 2025 तक भारत को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में नैतिक तरीके से संपत्ति सृजन महत्वपूर्ण.
  • नियमित क्षेत्र का विस्तार. संगठित/नियमित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा 2011-12 के 17.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 22.8 प्रतिशत पर.
  • समीक्षा में संपत्ति सृजन, कारोबार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में भरोसा मजबूत करने पर जोर.
  • वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये इस दौरान बुनियादी संरचना पर 1,400 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत.
  • नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के हिसाब से 2011-12 से 2017-18 के दौरान शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के 2.62 करोड़ नये अवसरों का हुआ सृजन.
  • वित्त वर्ष 2011-12 से 2017-18 के दौरान नियमित रोजगार में महिलाण श्रमिलाएं आठ प्रतिशत बढ़ीं.
  • बाजार में सरकार के अधिक दखल से आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है.
  • कर्जमाफी से खराब होती है ऋण संस्कृति, उन्हीं किसानों के औपचारिक ऋण वितरण पर पड़ता है असर.
  • सरकार को उन क्षेत्रों की बाकायदा पहचान करनी चाहिए जहां सरकारी दखल अनावश्यक है और उससे व्यवधान होता है.
  • सरकारी बैंकों में बेहतर कंपनी संचालन, भरोसा तैयार करने के लिये अधिक खुलासों पर ध्यान देने की वकालत.
  • नया कारोबार शुरू करना, संपत्ति का पंजीयन कराने, कर का भुगतान, करार करने आदि को सुगत बनाने पर ध्यान देने की मांग.
  • कच्चा तेल की कीमतें कम होने से चालू खाता घाटे में आयी कमी. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में अधिक तेजी से हुए गिरावट का भी हाथ.
  • मुद्रास्फीति के अप्रैल 2019 के 3.2 प्रतिशम से गिरकर दिसंबर 2019 में 3.2 प्रतिशत पर आना मांग में नरमी का संकेत.
  • चालू वित्त वर्ष में नवंबर माह तक केंद्रीय माल एवं सेवा कर के संग्रह में हुई 4.1 प्रतिशत की वृद्धि.

ये भी पढ़ें- आर्थिक समीक्षा: अगले वित्तवर्ष में वृद्धि दर सुधरकर 6-6.5% के बीच रहने का अनुमान

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आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें

नई दिल्ली: आज संसद का बजट सत्र शुरू हो गया. आर्थिक सुस्ती की खबरों के बीच मोदी सरकार आज साल 2019-2020 का इकोनॉमिक सर्वे यानी आर्थ‍िक सर्वेक्षण को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पेश कर दिया.



लोकसभा में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2019-20 की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं: 

: आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में कम से कम पांच प्रतिशत रहेगी. अगले वित्त वर्ष में बढ कर 6-6.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान. 

: आर्थिक वृद्धि को गति देरे के चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सीमित करने के लक्ष्य में देनी पड़ सकती है ढील. 

: चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि के गति पकड़ने का अनुमान. यह उम्मीद विदेशी निवेश के प्रवाह, मांग के बढ़ते दबाव तथा जीएसटी संग्रह सकारात्मक वृद्धि समेत 10 कारकों पर आधारित. 

: समीक्षा में आर्थिक सुधार तेज करने पर बल. 

: वर्ष 2025 तक भारत को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में नैतिक तरीके से संपत्ति सृजन महत्वपूर्ण. 

: नियमित क्षेत्र का विस्तार. संगठित/नियमित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा 2011-12 के 17.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 22.8 प्रतिशत पर. 

: समीक्षा में संपत्ति सृजन, कारोबार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में भरोसा मजबूत करने पर जोर. 

: वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये इस दौरान बुनियादी संरचना पर 1,400 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत. 

: नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के हिसाब से 2011-12 से 2017-18 के दौरान शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के 2.62 करोड़ नये अवसरों का हुआ सृजन. 

: वित्त वर्ष 2011-12 से 2017-18 के दौरान नियमित रोजगार में महिलाण श्रमिलाएं आठ प्रतिशत बढ़ीं. 

: बाजार में सरकार के अधिक दखल से आर्थिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है. 

: कर्जमाफी से खराब होती है ऋण संस्कृति, उन्हीं किसानों के औपचारिक ऋण वितरण पर पड़ता है असर. 

: सरकार को उन क्षेत्रों की बाकायदा पहचान करनी चाहिए जहां सरकारी दखल अनावश्यक है और उससे व्यवधान होता है. 

: सरकारी बैंकों में बेहतर कंपनी संचालन, भरोसा तैयार करने के लिये अधिक खुलासों पर ध्यान देने की वकालत. 

: नया कारोबार शुरू करना, संपत्ति का पंजीयन कराने, कर का भुगतान, करार करने आदि को सुगत बनाने पर ध्यान देने की मांग. 

: कच्चा तेल की कीमतें कम होने से चालू खाता घाटे में आयी कमी. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में अधिक तेजी से हुए गिरावट का भी हाथ. 

: मुद्रास्फीति के अप्रैल 2019 के 3.2 प्रतिशम से गिरकर दिसंबर 2019 में 3.2 प्रतिशत पर आना मांग में नरमी का संकेत. 

: चालू वित्त वर्ष में नवंबर माह तक केंद्रीय माल एवं सेवा कर के संग्रह में हुई 4.1 प्रतिशत की वृद्धि.


Conclusion:
Last Updated : Feb 28, 2020, 4:24 PM IST
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