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उचित आय वाले रोजगार से ही भारत में असमानता को कम किया जा सकता है: नारायणमूर्ति - नारायणमूर्ति

उन्होंने कृषि क्षेत्र में काम करने वाले अधिक लोगों को निम्न प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में लाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति जीडीपी आय अभी भी कम है जबकि अपेक्षाकृत हल्की प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में आय का स्तर कुछ बेहतर है.

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उचित आय वाले रोजगार से ही भारत में असमानता को कम किया जा सकता है: नारायणमूर्ति
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Published : Jan 6, 2020, 3:17 PM IST

मुंबई: देश में असमानता की समस्या से निपटने के लिये वाजिब आय देने वाले रोजगार पैदा करने पर ध्यान देने की जरूरत है. सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के सह- संस्थापक और मानद चेयरमैन एन आर नारायणमूर्ति ने रविवार को यह कहा.

उन्होंने कृषि क्षेत्र में काम करने वाले अधिक लोगों को निम्न प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में लाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति जीडीपी आय अभी भी कम है जबकि अपेक्षाकृत हल्की प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में आय का स्तर कुछ बेहतर है.

मूर्ति ने यहां आईआईटी बंबई द्वारा आयोजि टेकफेस्ट को वीडियो कन्फ्रेंसिंग के जरिये संबोधित करते हुये कहा, "भारत जेसे देश में असमानता को रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा करके ही दूर किया जा सकता है. रोजगार के ये अवसर पर्याप्त आय देने वाले होने चाहिये तभी असमानता की स्थिति से निपटा जा सकता है."

उन्होंने कहा कि भारत में 65 करोड लोग यानी 58 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 14 प्रतिशत का योगदान करता है.

ये भी पढ़ें: मिस्त्री-टाटा प्रकरण में निर्णय संशोधित करने की कंपनी रजिस्ट्रर की अपील नहीं मानी न्यायाधिकरण ने

उन्होंने कहा, "दूसरे शब्दों में कहा जाय कि भारत की प्रति व्यक्ति आय यदि 2,000 डालर है तो कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आय मुश्किल से सालाना 500 डालर होगी. क्योंकि ये 58 प्रतिशत लोग देश की जीडीपी में केवल 14 प्रतिशत का योगदान करते हैं."

मूर्ति ने कहा कि 500 डालर सालाना की यह आय 1.5 डालर प्रतिदिन बैठती है यानी 100 रुपये प्रति दिन के करीब होती है. कृषि क्षेत्र में काम करने वालों को इसी आय में अपना खाना, पीना, स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों की देखभाल करनी है और किराया भी देना है.

इस लिहाज से भारत में गरीबी से लोगों को निकालने के लिये उन्हें कृषि क्षेत्र से हटाकर निम्न- प्रौद्योगिकी सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्र में लगाने की जरूरत है जहां उन्हें 1,500 से 2,000 डालर सालाना तक मिल सकते हैं. दुर्भाग्य से देश ऐसा नहीं कर पा रहा है.

"क्योंकि हमारी ढांचागत सुविधायें कमजोर हैं और राज्य सरकारें समस्या को नहीं समझ पा रही है. वह उद्यमियों के लिये काम करना आसान नहीं बना पा रही है ताकि वह निम्न- प्रौद्योगिकी विनिर्माण और सेवाओं के क्षेत्र में काम शुरू कर सकें."

मुंबई: देश में असमानता की समस्या से निपटने के लिये वाजिब आय देने वाले रोजगार पैदा करने पर ध्यान देने की जरूरत है. सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के सह- संस्थापक और मानद चेयरमैन एन आर नारायणमूर्ति ने रविवार को यह कहा.

उन्होंने कृषि क्षेत्र में काम करने वाले अधिक लोगों को निम्न प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में लाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति जीडीपी आय अभी भी कम है जबकि अपेक्षाकृत हल्की प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में आय का स्तर कुछ बेहतर है.

मूर्ति ने यहां आईआईटी बंबई द्वारा आयोजि टेकफेस्ट को वीडियो कन्फ्रेंसिंग के जरिये संबोधित करते हुये कहा, "भारत जेसे देश में असमानता को रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा करके ही दूर किया जा सकता है. रोजगार के ये अवसर पर्याप्त आय देने वाले होने चाहिये तभी असमानता की स्थिति से निपटा जा सकता है."

उन्होंने कहा कि भारत में 65 करोड लोग यानी 58 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 14 प्रतिशत का योगदान करता है.

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उन्होंने कहा, "दूसरे शब्दों में कहा जाय कि भारत की प्रति व्यक्ति आय यदि 2,000 डालर है तो कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आय मुश्किल से सालाना 500 डालर होगी. क्योंकि ये 58 प्रतिशत लोग देश की जीडीपी में केवल 14 प्रतिशत का योगदान करते हैं."

मूर्ति ने कहा कि 500 डालर सालाना की यह आय 1.5 डालर प्रतिदिन बैठती है यानी 100 रुपये प्रति दिन के करीब होती है. कृषि क्षेत्र में काम करने वालों को इसी आय में अपना खाना, पीना, स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों की देखभाल करनी है और किराया भी देना है.

इस लिहाज से भारत में गरीबी से लोगों को निकालने के लिये उन्हें कृषि क्षेत्र से हटाकर निम्न- प्रौद्योगिकी सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्र में लगाने की जरूरत है जहां उन्हें 1,500 से 2,000 डालर सालाना तक मिल सकते हैं. दुर्भाग्य से देश ऐसा नहीं कर पा रहा है.

"क्योंकि हमारी ढांचागत सुविधायें कमजोर हैं और राज्य सरकारें समस्या को नहीं समझ पा रही है. वह उद्यमियों के लिये काम करना आसान नहीं बना पा रही है ताकि वह निम्न- प्रौद्योगिकी विनिर्माण और सेवाओं के क्षेत्र में काम शुरू कर सकें."

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मुंबई: देश में असमानता की समस्या से निपटने के लिये वाजिब आय देने वाले रोजगार पैदा करने पर ध्यान देने की जरूरत है. सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के सह- संस्थापक और मानद चेयरमैन एन आर नारायणमूर्ति ने रविवार को यह कहा.

उन्होंने कृषि क्षेत्र में काम करने वाले अधिक लोगों को निम्न प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में लाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति जीडीपी आय अभी भी कम है जबकि अपेक्षाकृत हल्की प्रौद्योगिकी वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में आय का स्तर कुछ बेहतर है.

मूर्ति ने यहां आईआईटी बंबई द्वारा आयोजि टेकफेस्ट को वीडियो कन्फ्रेंसिंग के जरिये संबोधित करते हुये कहा, "भारत जेसे देश में असमानता को रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा करके ही दूर किया जा सकता है. रोजगार के ये अवसर पर्याप्त आय देने वाले होने चाहिये तभी असमानता की स्थिति से निपटा जा सकता है."

उन्होंने कहा कि भारत में 65 करोड लोग यानी 58 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 14 प्रतिशत का योगदान करता है.

उन्होंने कहा, "दूसरे शब्दों में कहा जाय कि भारत की प्रति व्यक्ति आय यदि 2,000 डालर है तो कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आय मुश्किल से सालाना 500 डालर होगी. क्योंकि ये 58 प्रतिशत लोग देश की जीडीपी में केवल 14 प्रतिशत का योगदान करते हैं."

मूर्ति ने कहा कि 500 डालर सालाना की यह आय 1.5 डालर प्रतिदिन बैठती है यानी 100 रुपये प्रति दिन के करीब होती है. कृषि क्षेत्र में काम करने वालों को इसी आय में अपना खाना, पीना, स्वास्थ्य, शिक्षा और बच्चों की देखभाल करनी है और किराया भी देना है.

इस लिहाज से भारत में गरीबी से लोगों को निकालने के लिये उन्हें कृषि क्षेत्र से हटाकर निम्न- प्रौद्योगिकी सेवाओं और विनिर्माण क्षेत्र में लगाने की जरूरत है जहां उन्हें 1,500 से 2,000 डालर सालाना तक मिल सकते हैं. दुर्भाग्य से देश ऐसा नहीं कर पा रहा है.

"क्योंकि हमारी ढांचागत सुविधायें कमजोर हैं और राज्य सरकारें समस्या को नहीं समझ पा रही है. वह उद्यमियों के लिये काम करना आसान नहीं बना पा रही है ताकि वह निम्न- प्रौद्योगिकी विनिर्माण और सेवाओं के क्षेत्र में काम शुरू कर सकें."

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