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माइंडट्री के अधिग्रहण की पहल सिद्धार्थ के हिस्सेदारी बेचने से हुई शुरू: एलएंडटी

एलएंडटी ने कैफे कॉफी डे के मालिक वी.जी. सिद्धार्थ की माइंडट्री में 20.32 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए सोमवार को समझौता कर लिया. इसके लिए उसने 980 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से कुल 3,269 करोड़ रुपये का नकद भुगतान करने पर सहमति जतायी.

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Published : Mar 20, 2019, 10:44 AM IST

मुंबई : सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी माइंडट्री के जबरन अधिग्रहण की कोशिश कर रही इंजीनियरिंग क्षेत्र की प्रमुख कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) का कहना है कि इस सौदे का विचार तीन महीने पहले तब बना जब कंपनी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले वी.जी. सिद्धार्थ ने अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए कंपनी से संपर्क किया. एलएंडटी ने विश्वास जताया कि वह माइंडट्री के नाराज प्रवर्तकों को मना लेगी.

एलएंडटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस. एन. सुब्रमण्यम ने मसाला हिंदी फिल्मों से स्थिति की तुलना करते हुए कहा कि यह दिल और प्यार का मामला है और हम सबके दिलों को जीत लेंगे. सुब्रहमणयम ने स्पष्ट किया कि माइंडट्री के अधिग्रहण को वह अपने 15,000 करोड़ रुपये से अधिक के नकदी भंडार के निवेश के तौर पर देखते हैं। वह इस कंपनी में न्यूनतम 26 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहते हैं.

एलएंडटी ने कैफे कॉफी डे के मालिक वी.जी. सिद्धार्थ की माइंडट्री में 20.32 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए सोमवार को समझौता कर लिया. इसके लिए उसने 980 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से कुल 3,269 करोड़ रुपये का नकद भुगतान करने पर सहमति जतायी. कंपनी ने माइंडट्री में लगभग 67 प्रतिशत तक हिस्सेदारी 10,733 करोड़ रुपये में अधिगृहीत करने की घोषणा की थी. इसके लिए सिद्धार्थ की हिस्सेदारी के अलावा खुले बाजार से 2,434 करोड़ रुपये में माइंडट्री की 15 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सेदारी खरीदने और माइंडट्री में ही 31 प्रतिशत हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए 5,030 करोड़ रुपये की खुली पेशकश शामिल है.

हालांकि, इस पर माइंडट्री के प्रवर्तकों ने नाराजगी जतायी. कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन कृष्णकुमार नटराजन के नेतृत्व में माइंडट्री के सह-संस्थापक सुब्रतो बागची और कार्यकारी उप चेयरमैन एवं मुख्य परिचालन अधिकारी पार्थसारथी एन. एस. इत्यादि ने संयुक्त तौर पर एक बयान में कहा कि यह अधिग्रहण पिछले 20 साल में कड़ी मेहनत से खड़े किये गये माइंडट्री के लिए 'गंभीर खतरा' है. प्रवर्तकों ने अधिग्रहण की इस जबरन कोशिश का विरोध किया है.

उन्होंने कहा, "इस लेनदेन में हमें कोई रणनीतिक लाभ नहीं दिखता, बल्कि यह कंपनी के मूल्य में गिरावट लाएगा जिससे सभी शेयरधारक प्रभावित होंगे." इन चिंताओं को स्वीकार करते हुए सुब्रहमण्यन ने मंगलवार को कहा, "जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे लोगों की भावनाएं सामने आएंगी। माइंडट्री के वरिष्ठ प्रबंधन में शामिल लोग हमारे निजी मित्र, अच्छे और प्रतिष्ठित लोग हैं और उन सभी ने माइंडट्री आज जहां हैं, वहां उसे पहुंचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया है. हमने इस सौदे पर आगे बढ़ने के लिए काफी सकारात्मकता का अनुभव किया है."

हालांकि, इस सौदे को रणनीतिक या वित्तीय निवेश होने के सवाल को नकारते हुए सुब्रहमणयन ने कहा कि अभी हमने माइंडट्री के एलएंडटी इंफोटेक में विलय करने के बारे में नहीं सोचा है. फिलहाल इसे एक स्वतंत्र कंपनी के तौर पर ही चलाया जाएगा. इसे देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का पहला जबरन अधिग्रहण माना जा रहा है. जबकि इससे पहले रोचक बात ये है कि 1980 के दौर में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एलएंडटी के अधिग्रहण की कोशिश की थी.
(भाषा)
पढ़ें : हुंडई और किआ मोटर्स ई-वाहन बेडे के लिए ओला में करेंगे 30 करोड़ डॉलर का निवेश

मुंबई : सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी माइंडट्री के जबरन अधिग्रहण की कोशिश कर रही इंजीनियरिंग क्षेत्र की प्रमुख कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) का कहना है कि इस सौदे का विचार तीन महीने पहले तब बना जब कंपनी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले वी.जी. सिद्धार्थ ने अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए कंपनी से संपर्क किया. एलएंडटी ने विश्वास जताया कि वह माइंडट्री के नाराज प्रवर्तकों को मना लेगी.

एलएंडटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस. एन. सुब्रमण्यम ने मसाला हिंदी फिल्मों से स्थिति की तुलना करते हुए कहा कि यह दिल और प्यार का मामला है और हम सबके दिलों को जीत लेंगे. सुब्रहमणयम ने स्पष्ट किया कि माइंडट्री के अधिग्रहण को वह अपने 15,000 करोड़ रुपये से अधिक के नकदी भंडार के निवेश के तौर पर देखते हैं। वह इस कंपनी में न्यूनतम 26 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहते हैं.

एलएंडटी ने कैफे कॉफी डे के मालिक वी.जी. सिद्धार्थ की माइंडट्री में 20.32 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए सोमवार को समझौता कर लिया. इसके लिए उसने 980 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से कुल 3,269 करोड़ रुपये का नकद भुगतान करने पर सहमति जतायी. कंपनी ने माइंडट्री में लगभग 67 प्रतिशत तक हिस्सेदारी 10,733 करोड़ रुपये में अधिगृहीत करने की घोषणा की थी. इसके लिए सिद्धार्थ की हिस्सेदारी के अलावा खुले बाजार से 2,434 करोड़ रुपये में माइंडट्री की 15 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सेदारी खरीदने और माइंडट्री में ही 31 प्रतिशत हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए 5,030 करोड़ रुपये की खुली पेशकश शामिल है.

हालांकि, इस पर माइंडट्री के प्रवर्तकों ने नाराजगी जतायी. कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन कृष्णकुमार नटराजन के नेतृत्व में माइंडट्री के सह-संस्थापक सुब्रतो बागची और कार्यकारी उप चेयरमैन एवं मुख्य परिचालन अधिकारी पार्थसारथी एन. एस. इत्यादि ने संयुक्त तौर पर एक बयान में कहा कि यह अधिग्रहण पिछले 20 साल में कड़ी मेहनत से खड़े किये गये माइंडट्री के लिए 'गंभीर खतरा' है. प्रवर्तकों ने अधिग्रहण की इस जबरन कोशिश का विरोध किया है.

उन्होंने कहा, "इस लेनदेन में हमें कोई रणनीतिक लाभ नहीं दिखता, बल्कि यह कंपनी के मूल्य में गिरावट लाएगा जिससे सभी शेयरधारक प्रभावित होंगे." इन चिंताओं को स्वीकार करते हुए सुब्रहमण्यन ने मंगलवार को कहा, "जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे लोगों की भावनाएं सामने आएंगी। माइंडट्री के वरिष्ठ प्रबंधन में शामिल लोग हमारे निजी मित्र, अच्छे और प्रतिष्ठित लोग हैं और उन सभी ने माइंडट्री आज जहां हैं, वहां उसे पहुंचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया है. हमने इस सौदे पर आगे बढ़ने के लिए काफी सकारात्मकता का अनुभव किया है."

हालांकि, इस सौदे को रणनीतिक या वित्तीय निवेश होने के सवाल को नकारते हुए सुब्रहमणयन ने कहा कि अभी हमने माइंडट्री के एलएंडटी इंफोटेक में विलय करने के बारे में नहीं सोचा है. फिलहाल इसे एक स्वतंत्र कंपनी के तौर पर ही चलाया जाएगा. इसे देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का पहला जबरन अधिग्रहण माना जा रहा है. जबकि इससे पहले रोचक बात ये है कि 1980 के दौर में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एलएंडटी के अधिग्रहण की कोशिश की थी.
(भाषा)
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मुंबई : सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी माइंडट्री के जबरन अधिग्रहण की कोशिश कर रही इंजीनियरिंग क्षेत्र की प्रमुख कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) का कहना है कि इस सौदे का विचार तीन महीने पहले तब बना जब कंपनी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले वी.जी. सिद्धार्थ ने अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए कंपनी से संपर्क किया. एलएंडटी ने विश्वास जताया कि वह माइंडट्री के नाराज प्रवर्तकों को मना लेगी.

एलएंडटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस. एन. सुब्रमण्यम ने मसाला हिंदी फिल्मों से स्थिति की तुलना करते हुए कहा कि यह दिल और प्यार का मामला है और हम सबके दिलों को जीत लेंगे. सुब्रहमणयम ने स्पष्ट किया कि माइंडट्री के अधिग्रहण को वह अपने 15,000 करोड़ रुपये से अधिक के नकदी भंडार के निवेश के तौर पर देखते हैं। वह इस कंपनी में न्यूनतम 26 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहते हैं.

एलएंडटी ने कैफे कॉफी डे के मालिक वी.जी. सिद्धार्थ की माइंडट्री में 20.32 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए सोमवार को समझौता कर लिया. इसके लिए उसने 980 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से कुल 3,269 करोड़ रुपये का नकद भुगतान करने पर सहमति जतायी. कंपनी ने माइंडट्री में लगभग 67 प्रतिशत तक हिस्सेदारी 10,733 करोड़ रुपये में अधिगृहीत करने की घोषणा की थी. इसके लिए सिद्धार्थ की हिस्सेदारी के अलावा खुले बाजार से 2,434 करोड़ रुपये में माइंडट्री की 15 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सेदारी खरीदने और माइंडट्री में ही 31 प्रतिशत हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए 5,030 करोड़ रुपये की खुली पेशकश शामिल है.

हालांकि, इस पर माइंडट्री के प्रवर्तकों ने नाराजगी जतायी. कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन कृष्णकुमार नटराजन के नेतृत्व में माइंडट्री के सह-संस्थापक सुब्रतो बागची और कार्यकारी उप चेयरमैन एवं मुख्य परिचालन अधिकारी पार्थसारथी एन. एस. इत्यादि ने संयुक्त तौर पर एक बयान में कहा कि यह अधिग्रहण पिछले 20 साल में कड़ी मेहनत से खड़े किये गये माइंडट्री के लिए 'गंभीर खतरा' है. प्रवर्तकों ने अधिग्रहण की इस जबरन कोशिश का विरोध किया है.

उन्होंने कहा, "इस लेनदेन में हमें कोई रणनीतिक लाभ नहीं दिखता, बल्कि यह कंपनी के मूल्य में गिरावट लाएगा जिससे सभी शेयरधारक प्रभावित होंगे." इन चिंताओं को स्वीकार करते हुए सुब्रहमण्यन ने मंगलवार को कहा, "जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे लोगों की भावनाएं सामने आएंगी। माइंडट्री के वरिष्ठ प्रबंधन में शामिल लोग हमारे निजी मित्र, अच्छे और प्रतिष्ठित लोग हैं और उन सभी ने माइंडट्री आज जहां हैं, वहां उसे पहुंचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया है. हमने इस सौदे पर आगे बढ़ने के लिए काफी सकारात्मकता का अनुभव किया है."

हालांकि, इस सौदे को रणनीतिक या वित्तीय निवेश होने के सवाल को नकारते हुए सुब्रहमणयन ने कहा कि अभी हमने माइंडट्री के एलएंडटी इंफोटेक में विलय करने के बारे में नहीं सोचा है. फिलहाल इसे एक स्वतंत्र कंपनी के तौर पर ही चलाया जाएगा. इसे देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का पहला जबरन अधिग्रहण माना जा रहा है. जबकि इससे पहले रोचक बात ये है कि 1980 के दौर में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एलएंडटी के अधिग्रहण की कोशिश की थी.

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