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दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से मांगा 48,000 करोड़ रुपये का बकाया

उच्चतम न्यायालय के सरकारी बकाये के भुगतान में गैर-दूरसंचार आय को शामिल करने के आदेश के बाद दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से ब्याज और जुर्माना समेत मूल बकाया 48,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है.

दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से मांगा 48,000 करोड़ रुपये का बकाया
दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से मांगा 48,000 करोड़ रुपये का बकाया
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Published : Jan 20, 2020, 6:56 PM IST

Updated : Feb 17, 2020, 6:23 PM IST

नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से पिछले वैधानिक बकाया के रूप में 48,000 करोड़ रुपये की मांग की है. देश की इस दूसरी सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी का हालांकि, मांग नोटिस को दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) में चुनौती देने की योजना है.

उच्चतम न्यायालय के सरकारी बकाये के भुगतान में गैर-दूरसंचार आय को शामिल करने के आदेश के बाद दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से ब्याज और जुर्माना समेत मूल बकाया 48,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है.

कंपनी के आंतरिक संचार कार्य के लिये आप्टिक फाइबर के उपयोग को लेकर यह राशि मांगी गयी है. जो बकाया राशि मांगी गयी है, वह ऑयल इंडिया के शुद्ध नेटवर्थ की दोगुनी है.

ये भी पढ़ें- सामाजिक बदलाव सूचकांक में भारत 76वें पायदान पर, डेनमार्क सबसे ऊपर

ऑयल इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुशील चंद्र मिश्रा ने यहां कहा, "हमें 23 जनवरी तक भुगतान करने के लिये नोटिस मिला है. हमारी इसे टीडीसैट में चुनौती देने की योजना है."

गेल इंडिया के बाद आयल इंडिया सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी तेल एवं गैस कंपनी है जिससे सांविधिक बकाया राशि को लेकर नोटिस दिया गया है. गैस कंपनी गेल से विभाग ने 1.72 लाख करोड़ रुपये की मांग की है. मिश्रा ने कहा कि उनकी कंपनी का दूरसंचार विभाग के साथ अनुबंध है. उसके तहत कोई भी विवाद होने पर मामले को टीडीसैट में ले जाने की व्यवस्था है. अत: कंपनी मामले में न्यायाधिकरण से संपर्क करेगी.

उच्चतम न्यायालय ने 24 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा है कि जिन कंपनियों ने सरकार द्वारा आबंटित स्पेक्ट्रम या रेडियो तरंग का उपयोग करते हुये दूरसंचार कारोबार से इत्तर आय प्राप्त की हैं, उस पर वैधानिक बकाये का आकलन करते हुये विचार किया जाना चाहिए. इस पर दूरसंचार विभाग ने पिछले 15 साल में संबंधित कंपनी की आय का आकलन कर उससे राशि की मांग की है.

सूत्रों ने कहा कि ओआईएल जैसी कंपनियां तेल एवं गैस पर उत्पाद शुल्क, तेल विकास उपकर, पेट्रोलियम पर होने वाले लाभ तथा अन्य शुल्क सरकार को देती हैं. वे आय प्राप्त करने के लिये बाहरी पक्षों के साथ बैंडविद्थ का कारोबार नहीं करतीं. आप्टिक फाइबर का उपयोग केवल आंतरिक संचार में होता है. इसमें कुओं की निगरानी और उत्पादन नियंत्रण शामिल हैं.

आयल इंडिया हालांकि, इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं जा रही क्योंकि कंपनी शीर्ष अदालत में चले इस मुकदमे में शामिल नहीं थी. साथ ही न्यायालय से उसे कोई निर्देश भी नहीं मिला है.सूत्रों ने कहा कि विभाग ने गेल से 1,72,655 करोड़ रुपये की मांग की है जो उसके नेटवर्थ का तीन गुना से अधिक है.

भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों को सरकार के लाइसेंस और स्पेक्ट्रम से गैर-दूरसंसार राजस्व प्राप्त हुए हों लेकिन गेल तथा ओआईएल के साथ ऐसा नहीं है.दूरसंचार विभाग ने पिछला वैधानिक बकाये के रूप में दूरसंचार कंपनियों से 1.47 लाख करोड़ रुपये की मांग की है.

गेल तथा ओआईएल के अलावा विभाग ने 40,000 करोड़ रुपये पावर ग्रिड से भी मांगे हैं. कंपनी के पास राष्ट्रीय लंबी दूरी के साथ-साथ इंटरनेट लाइसेंस हैं.

नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से पिछले वैधानिक बकाया के रूप में 48,000 करोड़ रुपये की मांग की है. देश की इस दूसरी सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी का हालांकि, मांग नोटिस को दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) में चुनौती देने की योजना है.

उच्चतम न्यायालय के सरकारी बकाये के भुगतान में गैर-दूरसंचार आय को शामिल करने के आदेश के बाद दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से ब्याज और जुर्माना समेत मूल बकाया 48,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है.

कंपनी के आंतरिक संचार कार्य के लिये आप्टिक फाइबर के उपयोग को लेकर यह राशि मांगी गयी है. जो बकाया राशि मांगी गयी है, वह ऑयल इंडिया के शुद्ध नेटवर्थ की दोगुनी है.

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ऑयल इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुशील चंद्र मिश्रा ने यहां कहा, "हमें 23 जनवरी तक भुगतान करने के लिये नोटिस मिला है. हमारी इसे टीडीसैट में चुनौती देने की योजना है."

गेल इंडिया के बाद आयल इंडिया सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी तेल एवं गैस कंपनी है जिससे सांविधिक बकाया राशि को लेकर नोटिस दिया गया है. गैस कंपनी गेल से विभाग ने 1.72 लाख करोड़ रुपये की मांग की है. मिश्रा ने कहा कि उनकी कंपनी का दूरसंचार विभाग के साथ अनुबंध है. उसके तहत कोई भी विवाद होने पर मामले को टीडीसैट में ले जाने की व्यवस्था है. अत: कंपनी मामले में न्यायाधिकरण से संपर्क करेगी.

उच्चतम न्यायालय ने 24 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा है कि जिन कंपनियों ने सरकार द्वारा आबंटित स्पेक्ट्रम या रेडियो तरंग का उपयोग करते हुये दूरसंचार कारोबार से इत्तर आय प्राप्त की हैं, उस पर वैधानिक बकाये का आकलन करते हुये विचार किया जाना चाहिए. इस पर दूरसंचार विभाग ने पिछले 15 साल में संबंधित कंपनी की आय का आकलन कर उससे राशि की मांग की है.

सूत्रों ने कहा कि ओआईएल जैसी कंपनियां तेल एवं गैस पर उत्पाद शुल्क, तेल विकास उपकर, पेट्रोलियम पर होने वाले लाभ तथा अन्य शुल्क सरकार को देती हैं. वे आय प्राप्त करने के लिये बाहरी पक्षों के साथ बैंडविद्थ का कारोबार नहीं करतीं. आप्टिक फाइबर का उपयोग केवल आंतरिक संचार में होता है. इसमें कुओं की निगरानी और उत्पादन नियंत्रण शामिल हैं.

आयल इंडिया हालांकि, इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं जा रही क्योंकि कंपनी शीर्ष अदालत में चले इस मुकदमे में शामिल नहीं थी. साथ ही न्यायालय से उसे कोई निर्देश भी नहीं मिला है.सूत्रों ने कहा कि विभाग ने गेल से 1,72,655 करोड़ रुपये की मांग की है जो उसके नेटवर्थ का तीन गुना से अधिक है.

भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों को सरकार के लाइसेंस और स्पेक्ट्रम से गैर-दूरसंसार राजस्व प्राप्त हुए हों लेकिन गेल तथा ओआईएल के साथ ऐसा नहीं है.दूरसंचार विभाग ने पिछला वैधानिक बकाये के रूप में दूरसंचार कंपनियों से 1.47 लाख करोड़ रुपये की मांग की है.

गेल तथा ओआईएल के अलावा विभाग ने 40,000 करोड़ रुपये पावर ग्रिड से भी मांगे हैं. कंपनी के पास राष्ट्रीय लंबी दूरी के साथ-साथ इंटरनेट लाइसेंस हैं.

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दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से मांगा 48,000 करोड़ रुपये का बकाया

नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से पिछले वैधानिक बकाया के रूप में 48,000 करोड़ रुपये की मांग की है. देश की इस दूसरी सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी का हालांकि, मांग नोटिस को दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) में चुनौती देने की योजना है. 

उच्चतम न्यायालय के सरकारी बकाये के भुगतान में गैर-दूरसंचार आय को शामिल करने के आदेश के बाद दूरसंचार विभाग ने ऑयल इंडिया से ब्याज और जुर्माना समेत मूल बकाया 48,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है. 

कंपनी के आंतरिक संचार कार्य के लिये आप्टिक फाइबर के उपयोग को लेकर यह राशि मांगी गयी है. जो बकाया राशि मांगी गयी है, वह ऑयल इंडिया के शुद्ध नेटवर्थ की दोगुनी है. 

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ऑयल इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुशील चंद्र मिश्रा ने यहां कहा, "हमें 23 जनवरी तक भुगतान करने के लिये नोटिस मिला है. हमारी इसे टीडीसैट में चुनौती देने की योजना है." 

गेल इंडिया के बाद आयल इंडिया सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी तेल एवं गैस कंपनी है जिससे सांविधिक बकाया राशि को लेकर नोटिस दिया गया है. गैस कंपनी गेल से विभाग ने 1.72 लाख करोड़ रुपये की मांग की है. मिश्रा ने कहा कि उनकी कंपनी का दूरसंचार विभाग के साथ अनुबंध है. उसके तहत कोई भी विवाद होने पर मामले को टीडीसैट में ले जाने की व्यवस्था है. अत: कंपनी मामले में न्यायाधिकरण से संपर्क करेगी. 

उच्चतम न्यायालय ने 24 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा है कि जिन कंपनियों ने सरकार द्वारा आबंटित स्पेक्ट्रम या रेडियो तरंग का उपयोग करते हुये दूरसंचार कारोबार से इत्तर आय प्राप्त की हैं, उस पर वैधानिक बकाये का आकलन करते हुये विचार किया जाना चाहिए. इस पर दूरसंचार विभाग ने पिछले 15 साल में संबंधित कंपनी की आय का आकलन कर उससे राशि की मांग की है.

सूत्रों ने कहा कि ओआईएल जैसी कंपनियां तेल एवं गैस पर उत्पाद शुल्क, तेल विकास उपकर, पेट्रोलियम पर होने वाले लाभ तथा अन्य शुल्क सरकार को देती हैं. वे आय प्राप्त करने के लिये बाहरी पक्षों के साथ बैंडविद्थ का कारोबार नहीं करतीं. आप्टिक फाइबर का उपयोग केवल आंतरिक संचार में होता है. इसमें कुओं की निगरानी और उत्पादन नियंत्रण शामिल हैं. 

आयल इंडिया हालांकि, इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं जा रही क्योंकि कंपनी शीर्ष अदालत में चले इस मुकदमे में शामिल नहीं थी. साथ ही न्यायालय से उसे कोई निर्देश भी नहीं मिला है.सूत्रों ने कहा कि विभाग ने गेल से 1,72,655 करोड़ रुपये की मांग की है जो उसके नेटवर्थ का तीन गुना से अधिक है. 

भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों को सरकार के लाइसेंस और स्पेक्ट्रम से गैर-दूरसंसार राजस्व प्राप्त हुए हों लेकिन गेल तथा ओआईएल के साथ ऐसा नहीं है.दूरसंचार विभाग ने पिछला वैधानिक बकाये के रूप में दूरसंचार कंपनियों से 1.47 लाख करोड़ रुपये की मांग की है. 

गेल तथा ओआईएल के अलावा विभाग ने 40,000 करोड़ रुपये पावर ग्रिड से भी मांगे हैं. कंपनी के पास राष्ट्रीय लंबी दूरी के साथ-साथ इंटरनेट लाइसेंस हैं.

 


Conclusion:
Last Updated : Feb 17, 2020, 6:23 PM IST
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