नई दिल्ली: सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ ही खरीफ सीजन की नई फसलों की आवक जोर पकड़ने से अक्सर सब्जियों और अनाजों के दाम में नरमी आ जाती है, लेकिन इस साल ऐसा अब तक नहीं हुआ है, इसकी वजह मानसून के आखिरी दौर में हुई भारी बारिश और देश के कई इलाकों में आई बाढ़ रही है, जिसके कारण अभी तक सब्जियों की महंगाई से आम गृहणियों के रसोई का बजट बिगड़ा हुआ है.
प्याज की महंगाई ने जहां भोजन का स्वाद बिगाड़ दिया है वहां आलू, गोभी, पालक समेत तमाम हरी सब्यिजों के दाम उंचे होने से उपभोक्ताओं को अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ रही है. पिछले साल से तुलना करें तो ज्यादातर सब्जियों के दाम 50 फीसदी तक ज्यादा हैं.
कारोबारी बताते हैं मानसून सीजन के आखिरी दौर में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत देश के अन्य हिस्सों में हुई भारी बारिश से प्याज, टमाटर समेत तमाम सब्जियों की अगैती फसल खराब हो गई जिसके कारण इस साल आवक उस तरह से जोर नहीं पकड़ रही है जिस तरह विगत वर्षो में रहती थी. यही वजह है कि सब्जियां पिछले साल के मुकाबले महंगी हैं.
पिछले सप्ताह केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान द्वारा संसद के एक सवाल के लिखित जवाब में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, प्याज का दाम इस साल मार्च के बाद 400 फीसदी बढ़ा है.
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आंकड़ों के अनुसार, मार्च में प्याज का औसत मूल्य 15.87 रुपये प्रति किलो था जो तीन दिसंबर 2019 को बढ़कर 81.90 रुपये प्रति किलो हो गया.
सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थो के दाम में हुई वृद्धि से बीते महीने नवंबर में खुदरा महंगाई दर 5.54 फीसदी हो गई जोकि एक महीने पहले अक्टूबर में 4.62 फीसदी थी. नवंबर में खुदरा महंगाई दर 2016 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर है.
पिछले साल नवंबर में खुदरा महंगाई दर 2.33 फीसदी थी.
पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में सब्जियों की महंगाई दर बढ़कर 35.99 फीसदी हो गई जबकि खाद्य पदार्थो की महंगाई 10.01 फीसदी रही.
ग्रेटर नोएडा निवासी गृहणी प्रीति सिंह ने कहा, "प्याज की महंगाई विगत कुछ महीनों से रुला रही है, वहीं हरी सब्जियों के दाम ऊंचा होने से मेरी रसोई का बजट बिगड़ गया है."
फुलगोभी, बैगन, टमाटर, पालक समेत तमाम हरी सब्जियां 50 रुपये प्रति किलो से ऊंचे भाव पर मिल रही हैं.
उपभोक्ता मामले विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 14 दिसंबर को देशभर में टमाटर का भाव 10-80 रुपये प्रति किलो था जोकि एक साल पहले 10-50 रुपये प्रति किलो था.
दलहन बाजार के जानकार अमित शुक्ला ने बताया कि आम तौर पर सर्दियों में हरी सब्जी सस्ती होने के कारण दाल की खपत मांग घट जाती थी लेकिन इस साल ऐसा नहीं है, सब्जी महंगी होने के कारण दाल में लगातार जोरदार मांग बनी हुई है.
उधर, मलेशिया और इंडोनेशिया से आयातित क्रूड पाम तेल (सीपीओ) महंगा होने के कारण पिछले कुछ महीनों से तमाम खाद्य तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है. पिछले एक महीने में सीपीओ के दाम में 15 फीसदी की तेजी आई है.
खाद्य तेल उद्योग संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी.वी मेहता ने बताया कि इंडोनेशिया और मलेशिया में बायोडीजल प्रोग्राम को लेकर पाम तेल की खपत बढ़ने से इसकी कीमतों में आने वाले दिनों में तेजी बनी रह सकती है.