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एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए

यह 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के प्रभावशाली लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. जिसे प्रधानमंत्री ने पिछले साल घोषित किया था. क्या बुनियादी ढांचा को बढ़ावा देने से उच्च निवेश, विकास और रोजगार के बेहतर किया जा सकेगा ?

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Published : Jan 14, 2020, 12:31 AM IST

Updated : Jan 14, 2020, 12:32 PM IST

एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए
एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए

हैदराबाद: यह पिछले तीन साल के विकास प्रदर्शन के मद्देनजर मध्यम उम्मीदों के अनुकूल होगा.

साल 2019 के अंतिम दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगले पांच वर्षों के लिए 102.51 ट्रिलियन इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश योजना की घोषणा की. सरकार का बयान मार्च 2020 तक वृद्धि में निरंतर गिरावट के बीच आता है. वास्तविक जीडीपी वृद्धि 2016-17 में 8.2%, अगले वर्ष 7.2% और पिछले वर्ष 6.8% से कम रही है. इस साल यह अनुमानित तौर पर 5% माना जा रहा है.

एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए
जीडीपी आंकड़ें

बिना किसी संदेह के सरकार काफी दबाव में है. इसलिए सरकार सड़कों, बिजली, आवास, सिंचाई, और इस तरह के अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश को तेज करने का फैसला लिया है.

यह 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के प्रभावशाली लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. जिसे प्रधानमंत्री ने पिछले साल घोषित किया था. क्या बुनियादी ढांचा को बढ़ावा देने से उच्च निवेश, विकास और रोजगार के बेहतर किया जा सकेगा ?

सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का खर्च आर्थिक रूप से कठिन समय में कई देशों में एक लोकप्रिय जवाब है.

एक हालिया उदाहरण दक्षिण कोरिया का लेते हैं. यह एक व्यापार-निर्भर देश है, जिसके निर्यात को पिछले साल अमेरिका-चीन तनाव के कारण आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधानों के कारण गंभीर झटका लगा. जिससे अर्थव्यवस्था धीमी हो गई. इसके अध्यक्ष मून जे-इन ने हाल ही में रोजगार और निजी क्षेत्र की गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 51 बिलियन डॉलर की योजना की घोषणा की.

इस तरह के सार्वजनिक निवेशों को नए मांग अवसरों को बनाने, निजी उद्यम को आकर्षित करने और आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है, जिससे कुल मांग में वृद्धि होती है.

इस प्रकाश में भारत के बुनियादी ढांचे की योजना जो अनिश्चित भविष्य के दृष्टिकोण के साथ विकास में 11 साल की कम गिरावट के बीच आता है, वह बहुत अनिश्चित हैं.

सरकार का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश को और बढ़ाया जाएगा. सरकार ने इसे बढ़ाकर 6.2 ट्रिलियन रुपये करने का प्रस्ताव किया है, अगले साल 19.5 ट्रिलियन रुपये और उसके बाद 2021-22 में 19 ट्रिलियन रुपये. इसके बाद यह तीन साल में 2024-25 तक 13.5, 12.5 और 11 ट्रिलियन रुपये तक सीमित रहेगा.

एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए
भारत का बुनियादी ढांचागत निवेश

इस निवेश का एक बड़ा हिस्सा सड़कों, शहरी और आवास, रेलवे, बिजली और सिंचाई क्षेत्रों में निवेश किया जाएगा. इसमें सरकार (केंद्र और राज्य) का हिस्सा 78 % और निजी क्षेत्र की भागीदारी 22% रहेगी.

एनआईपी (नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन) 2020-2025 में कार्यान्वयन के लिए संभव और व्यवहार्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सूचीबद्ध करता है.

पिछले पांच सालों में इस तरह के खर्च की तुलना ?

यह सर्वविदित है कि मोदी-I सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में यानी 2014-15 से सड़कों, राजमार्गों, आवासों, शहरी, डिजिटल और अन्य बुनियादी सुविधाओं में काफी निवेश किया था. एनआईपी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने 2017-18 में 3.9 ट्रिलियन तक खर्च को बढ़ाया था.

पिछले साल या 2018-19 में केंद्र सरकार के बुनियादी ढांचे का खर्च 3.8 ट्रिलियन रुपये था. वहीं, एनआईपी के तहत केंद्र सरकार का पूंजीगत परिव्यय अगले वर्ष 4.6 ट्रिलियन रुपये अनुमानित है, जो कुल निवेश का 24% (19.5 ट्रिलियन रुपये) 2020-21 के लिए नियोजित है.

अगले दो वर्षों में केंद्र का खर्च 1 ट्रिलियन रुपये से कम रहेगा है. लेकिन, सरकार इसे वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 तक बढ़ाएगी. जबकि राज्य पहले तीन वर्षों में एक बड़ा हिस्सा निवेश करेंगे.

मांग को बढ़ाने के दृष्टिकोण से केंद्र सरकार द्वारा अपनाया गया रुख जो वृहद आर्थिक नीतियों को तैयार करने के लिए जिम्मेदार है- इससे क्या उम्मीद की जा सकती है?

यहां, पूर्ववर्ती पांच वर्षों का अनुभव इतना उत्साहजनक नहीं है. भारत में कुल बुनियादी ढांचा निवेश 2013-14 में 6.3 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर पिछले दो साल (2017-19) में 10 ट्रिलियन रुपये हो गया.

बाद की वृद्धि ज्यादातर केंद्र सरकार के खर्च से आई. जिसका बुनियादी ढांचा निवेश पिछले दो वर्षों में 4 ट्रिलियन रुपये हो गया. कुल निवेश का हिस्सा मोदी-I के पहले तीन वर्षों में 13 प्रतिशत अंक से नीचे 25 प्रतिशत से 38 प्रतिशत हो गया.

विकास के परिणाम क्या रहे हैं? दुर्भाग्य से प्रत्याशित का उलटा! 2017-18 में ऊपर बताई गई वास्तविक जीडीपी वृद्धि, 2018-19 में और नीचे चली गई और इस वर्ष गंभीर रूप से गिरकर 5% होने की उम्मीद है.

अगर हम रोज़गार के आंकड़े को देखें तो एनएसएसओ के श्रम बल सर्वेक्षण, 2017-18 (यह शुरू में रोक दिया गया था और मई 2019 के अंत में जारी किया गया था) में पाया गया कि बेरोजगारी की दर 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. निजी सांख्यिकीय एजेंसी सीएमआईई के अनुमान काफी समान हैं.

निर्यात वृद्धि इस वर्ष 2 प्रतिशत गिर गया. बता दें कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को माप का जरिया भी है. वहीं, विनिर्माण वृद्धि भी 5 प्रतिशत गिर गई है.

यह प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं है. प्रतिकूल परिणाम के बारे में कारण कई हो सकते हैं. जैसे कि अनसुलझे बैड लोन, बैंक का कर्ज देने से पीछे हटना, एनबीएफसी संकट और इसके परिणामस्वरूप क्रैच क्रंच, कॉरपोरेट ऋणग्रस्तता निजी जोखिम इत्यादि.

दूसरी ओर जवाबी परिदृश्य की अनदेखी नहीं की जा सकती है. हो सकता है कि विकास का आधारभूत ढांचा और भी नीचे हो सकता था यदि निवेश ना किया गया होता?

निर्माण क्षेत्र भारत सर्वोच्च रोजगार देने वालों में से एक है. बता दें कि 7 जनवरी को जारी अग्रिम जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार इस साल इसकी गति बहुत तेजी से घटकर सिर्फ 3.2% रह गई है जबकि एक साल पहले यह 8.7% बढ़ी थी.

स्टेप-अप इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट के संबंध में वृद्धि के प्रदर्शन की यह मिश्रित तस्वीर, यानी बूस्ट मिगिटेड या एक भी तेज मंदी के कारण, इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश प्रोत्साहन के इस नए दौर से उम्मीदें बढ़नी चाहिए. अंत में यह कहा जा सकता है कि इस इंजेक्शन के बिना, विकास आगे भी कम हो सकता है.
(लेखिका रेणु कोहली नई दिल्ली स्थित मैक्रोइकॉनॉमिस्ट हैं. लेखक के विचार व्यक्तिगत हैं. )

हैदराबाद: यह पिछले तीन साल के विकास प्रदर्शन के मद्देनजर मध्यम उम्मीदों के अनुकूल होगा.

साल 2019 के अंतिम दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगले पांच वर्षों के लिए 102.51 ट्रिलियन इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश योजना की घोषणा की. सरकार का बयान मार्च 2020 तक वृद्धि में निरंतर गिरावट के बीच आता है. वास्तविक जीडीपी वृद्धि 2016-17 में 8.2%, अगले वर्ष 7.2% और पिछले वर्ष 6.8% से कम रही है. इस साल यह अनुमानित तौर पर 5% माना जा रहा है.

एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए
जीडीपी आंकड़ें

बिना किसी संदेह के सरकार काफी दबाव में है. इसलिए सरकार सड़कों, बिजली, आवास, सिंचाई, और इस तरह के अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश को तेज करने का फैसला लिया है.

यह 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के प्रभावशाली लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. जिसे प्रधानमंत्री ने पिछले साल घोषित किया था. क्या बुनियादी ढांचा को बढ़ावा देने से उच्च निवेश, विकास और रोजगार के बेहतर किया जा सकेगा ?

सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का खर्च आर्थिक रूप से कठिन समय में कई देशों में एक लोकप्रिय जवाब है.

एक हालिया उदाहरण दक्षिण कोरिया का लेते हैं. यह एक व्यापार-निर्भर देश है, जिसके निर्यात को पिछले साल अमेरिका-चीन तनाव के कारण आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधानों के कारण गंभीर झटका लगा. जिससे अर्थव्यवस्था धीमी हो गई. इसके अध्यक्ष मून जे-इन ने हाल ही में रोजगार और निजी क्षेत्र की गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 51 बिलियन डॉलर की योजना की घोषणा की.

इस तरह के सार्वजनिक निवेशों को नए मांग अवसरों को बनाने, निजी उद्यम को आकर्षित करने और आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है, जिससे कुल मांग में वृद्धि होती है.

इस प्रकाश में भारत के बुनियादी ढांचे की योजना जो अनिश्चित भविष्य के दृष्टिकोण के साथ विकास में 11 साल की कम गिरावट के बीच आता है, वह बहुत अनिश्चित हैं.

सरकार का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश को और बढ़ाया जाएगा. सरकार ने इसे बढ़ाकर 6.2 ट्रिलियन रुपये करने का प्रस्ताव किया है, अगले साल 19.5 ट्रिलियन रुपये और उसके बाद 2021-22 में 19 ट्रिलियन रुपये. इसके बाद यह तीन साल में 2024-25 तक 13.5, 12.5 और 11 ट्रिलियन रुपये तक सीमित रहेगा.

एनआईपी प्रोत्साहन: बहुत आशावादी मत बनिए
भारत का बुनियादी ढांचागत निवेश

इस निवेश का एक बड़ा हिस्सा सड़कों, शहरी और आवास, रेलवे, बिजली और सिंचाई क्षेत्रों में निवेश किया जाएगा. इसमें सरकार (केंद्र और राज्य) का हिस्सा 78 % और निजी क्षेत्र की भागीदारी 22% रहेगी.

एनआईपी (नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन) 2020-2025 में कार्यान्वयन के लिए संभव और व्यवहार्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सूचीबद्ध करता है.

पिछले पांच सालों में इस तरह के खर्च की तुलना ?

यह सर्वविदित है कि मोदी-I सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में यानी 2014-15 से सड़कों, राजमार्गों, आवासों, शहरी, डिजिटल और अन्य बुनियादी सुविधाओं में काफी निवेश किया था. एनआईपी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने 2017-18 में 3.9 ट्रिलियन तक खर्च को बढ़ाया था.

पिछले साल या 2018-19 में केंद्र सरकार के बुनियादी ढांचे का खर्च 3.8 ट्रिलियन रुपये था. वहीं, एनआईपी के तहत केंद्र सरकार का पूंजीगत परिव्यय अगले वर्ष 4.6 ट्रिलियन रुपये अनुमानित है, जो कुल निवेश का 24% (19.5 ट्रिलियन रुपये) 2020-21 के लिए नियोजित है.

अगले दो वर्षों में केंद्र का खर्च 1 ट्रिलियन रुपये से कम रहेगा है. लेकिन, सरकार इसे वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 तक बढ़ाएगी. जबकि राज्य पहले तीन वर्षों में एक बड़ा हिस्सा निवेश करेंगे.

मांग को बढ़ाने के दृष्टिकोण से केंद्र सरकार द्वारा अपनाया गया रुख जो वृहद आर्थिक नीतियों को तैयार करने के लिए जिम्मेदार है- इससे क्या उम्मीद की जा सकती है?

यहां, पूर्ववर्ती पांच वर्षों का अनुभव इतना उत्साहजनक नहीं है. भारत में कुल बुनियादी ढांचा निवेश 2013-14 में 6.3 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर पिछले दो साल (2017-19) में 10 ट्रिलियन रुपये हो गया.

बाद की वृद्धि ज्यादातर केंद्र सरकार के खर्च से आई. जिसका बुनियादी ढांचा निवेश पिछले दो वर्षों में 4 ट्रिलियन रुपये हो गया. कुल निवेश का हिस्सा मोदी-I के पहले तीन वर्षों में 13 प्रतिशत अंक से नीचे 25 प्रतिशत से 38 प्रतिशत हो गया.

विकास के परिणाम क्या रहे हैं? दुर्भाग्य से प्रत्याशित का उलटा! 2017-18 में ऊपर बताई गई वास्तविक जीडीपी वृद्धि, 2018-19 में और नीचे चली गई और इस वर्ष गंभीर रूप से गिरकर 5% होने की उम्मीद है.

अगर हम रोज़गार के आंकड़े को देखें तो एनएसएसओ के श्रम बल सर्वेक्षण, 2017-18 (यह शुरू में रोक दिया गया था और मई 2019 के अंत में जारी किया गया था) में पाया गया कि बेरोजगारी की दर 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. निजी सांख्यिकीय एजेंसी सीएमआईई के अनुमान काफी समान हैं.

निर्यात वृद्धि इस वर्ष 2 प्रतिशत गिर गया. बता दें कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को माप का जरिया भी है. वहीं, विनिर्माण वृद्धि भी 5 प्रतिशत गिर गई है.

यह प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं है. प्रतिकूल परिणाम के बारे में कारण कई हो सकते हैं. जैसे कि अनसुलझे बैड लोन, बैंक का कर्ज देने से पीछे हटना, एनबीएफसी संकट और इसके परिणामस्वरूप क्रैच क्रंच, कॉरपोरेट ऋणग्रस्तता निजी जोखिम इत्यादि.

दूसरी ओर जवाबी परिदृश्य की अनदेखी नहीं की जा सकती है. हो सकता है कि विकास का आधारभूत ढांचा और भी नीचे हो सकता था यदि निवेश ना किया गया होता?

निर्माण क्षेत्र भारत सर्वोच्च रोजगार देने वालों में से एक है. बता दें कि 7 जनवरी को जारी अग्रिम जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार इस साल इसकी गति बहुत तेजी से घटकर सिर्फ 3.2% रह गई है जबकि एक साल पहले यह 8.7% बढ़ी थी.

स्टेप-अप इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट के संबंध में वृद्धि के प्रदर्शन की यह मिश्रित तस्वीर, यानी बूस्ट मिगिटेड या एक भी तेज मंदी के कारण, इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश प्रोत्साहन के इस नए दौर से उम्मीदें बढ़नी चाहिए. अंत में यह कहा जा सकता है कि इस इंजेक्शन के बिना, विकास आगे भी कम हो सकता है.
(लेखिका रेणु कोहली नई दिल्ली स्थित मैक्रोइकॉनॉमिस्ट हैं. लेखक के विचार व्यक्तिगत हैं. )

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हैदराबाद: यह पिछले तीन साल के विकास प्रदर्शन के मद्देनजर मध्यम उम्मीदों के अनुकूल होगा.

साल 2019 के अंतिम दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगले पांच वर्षों के लिए 102.51 ट्रिलियन इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश योजना की घोषणा की. सरकार का बयान मार्च 2020 तक वृद्धि में निरंतर गिरावट के बीच आता है. वास्तविक जीडीपी वृद्धि 2016-17 में 8.2%, अगले वर्ष 7.2% और पिछले वर्ष 6.8% से कम रही है. इस साल यह अनुमानित तौर पर 5% माना जा रहा है.

बिना किसी संदेह के सरकार काफी दबाव में है. इसलिए सरकार सड़कों, बिजली, आवास, सिंचाई, और इस तरह के अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश को तेज करने का फैसला लिया है.

यह 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के प्रभावशाली लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. जिसे प्रधानमंत्री ने पिछले साल घोषित किया था. क्या बुनियादी ढांचा को बढ़ावा देने से उच्च निवेश, विकास और रोजगार के बेहतर किया जा सकेगा ?

सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का खर्च आर्थिक रूप से कठिन समय में कई देशों में एक लोकप्रिय जवाब है.

एक हालिया उदाहरण दक्षिण कोरिया का लेते हैं. यह एक व्यापार-निर्भर देश है, जिसके निर्यात को पिछले साल अमेरिका-चीन तनाव के कारण आपूर्ति-श्रृंखला व्यवधानों के कारण गंभीर झटका लगा. जिससे अर्थव्यवस्था धीमी हो गई. इसके अध्यक्ष मून जे-इन ने हाल ही में रोजगार और निजी क्षेत्र की गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 51 बिलियन डॉलर की योजना की घोषणा की.

इस तरह के सार्वजनिक निवेशों को नए मांग अवसरों को बनाने, निजी उद्यम को आकर्षित करने और आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है, जिससे कुल मांग में वृद्धि होती है.

इस प्रकाश में भारत के बुनियादी ढांचे की योजना जो अनिश्चित भविष्य के दृष्टिकोण के साथ विकास में 11 साल की कम गिरावट के बीच आता है, वह बहुत अनिश्चित हैं.

सरकार का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश को और बढ़ाया जाएगा. सरकार ने इसे बढ़ाकर 6.2 ट्रिलियन रुपये करने का प्रस्ताव किया है, अगले साल 19.5 ट्रिलियन रुपये और उसके बाद 2021-22 में 19 ट्रिलियन रुपये. इसके बाद यह तीन साल में 2024-25 तक 13.5, 12.5 और 11 ट्रिलियन रुपये तक सीमित रहेगा.

इस निवेश का एक बड़ा हिस्सा सड़कों, शहरी और आवास, रेलवे, बिजली और सिंचाई क्षेत्रों में निवेश किया जाएगा. इसमें सरकार (केंद्र और राज्य) का हिस्सा 78 % और निजी क्षेत्र की भागीदारी 22% रहेगी.

एनआईपी (नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन) 2020-2025 में कार्यान्वयन के लिए संभव और व्यवहार्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सूचीबद्ध करता है.

पिछले पांच सालों में इस तरह के खर्च की तुलना ?

यह सर्वविदित है कि मोदी-I सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में यानी 2014-15 से सड़कों, राजमार्गों, आवासों, शहरी, डिजिटल और अन्य बुनियादी सुविधाओं में काफी निवेश किया था. एनआईपी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने 2017-18 में 3.9 ट्रिलियन तक खर्च को बढ़ाया था.

पिछले साल या 2018-19 में केंद्र सरकार के बुनियादी ढांचे का खर्च 3.8 ट्रिलियन रुपये था. वहीं, एनआईपी के तहत केंद्र सरकार का पूंजीगत परिव्यय अगले वर्ष 4.6 ट्रिलियन रुपये अनुमानित है, जो कुल निवेश का 24% (19.5 ट्रिलियन रुपये) 2020-21 के लिए नियोजित है.

अगले दो वर्षों में केंद्र का खर्च 1 ट्रिलियन रुपये से कम रहेगा है. लेकिन, सरकार इसे वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 तक बढ़ाएगी. जबकि राज्य पहले तीन वर्षों में एक बड़ा हिस्सा निवेश करेंगे.

मांग को बढ़ाने के दृष्टिकोण से केंद्र सरकार द्वारा अपनाया गया रुख  जो वृहद आर्थिक नीतियों को तैयार करने के लिए जिम्मेदार है- इससे क्या उम्मीद की जा सकती है?

यहां, पूर्ववर्ती पांच वर्षों का अनुभव इतना उत्साहजनक नहीं है. भारत में कुल बुनियादी ढांचा निवेश 2013-14 में 6.3 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर पिछले दो साल (2017-19) में 10 ट्रिलियन रुपये हो गया.

बाद की वृद्धि ज्यादातर केंद्र सरकार के खर्च से आई. जिसका बुनियादी ढांचा निवेश पिछले दो वर्षों में 4 ट्रिलियन रुपये हो गया. कुल निवेश का हिस्सा मोदी-I के पहले तीन वर्षों में 13 प्रतिशत अंक से नीचे 25 प्रतिशत से 38 प्रतिशत हो गया.

विकास के परिणाम क्या रहे हैं? दुर्भाग्य से प्रत्याशित का उलटा! 2017-18 में ऊपर बताई गई वास्तविक जीडीपी वृद्धि, 2018-19 में और नीचे चली गई और इस वर्ष गंभीर रूप से गिरकर 5% होने की उम्मीद है.

अगर हम रोज़गार के आंकड़े को देखें तो एनएसएसओ के श्रम बल सर्वेक्षण, 2017-18 (यह शुरू में रोक दिया गया था और मई 2019 के अंत में जारी किया गया था) में पाया गया कि बेरोजगारी की दर 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. निजी सांख्यिकीय एजेंसी सीएमआईई के अनुमान काफी समान हैं.

निर्यात वृद्धि इस वर्ष 2 प्रतिशत गिर गया. बता दें कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को माप का जरिया भी है. वहीं, विनिर्माण वृद्धि भी 5 प्रतिशत गिर गई है.

यह प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं है. प्रतिकूल परिणाम के बारे में कारण कई हो सकते हैं. जैसे कि अनसुलझे बैड लोन, बैंक का कर्ज देने से पीछे हटना, एनबीएफसी संकट और इसके परिणामस्वरूप क्रैच क्रंच, कॉरपोरेट ऋणग्रस्तता निजी जोखिम इत्यादि.

दूसरी ओर जवाबी परिदृश्य की अनदेखी नहीं की जा सकती है. हो सकता है कि विकास का आधारभूत ढांचा और भी नीचे हो सकता था यदि निवेश ना किया गया होता?

निर्माण क्षेत्र भारत सर्वोच्च रोजगार देने वालों में से एक है. बता दें कि 7 जनवरी को जारी अग्रिम जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार इस साल इसकी गति बहुत तेजी से घटकर सिर्फ 3.2% रह गई है जबकि एक साल पहले यह 8.7% बढ़ी थी.

स्टेप-अप इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट के संबंध में वृद्धि के प्रदर्शन की यह मिश्रित तस्वीर, यानी बूस्ट मिगिटेड या एक भी तेज मंदी के कारण, इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश प्रोत्साहन के इस नए दौर से उम्मीदें बढ़नी चाहिए. अंत में यह कहा जा सकता है कि इस इंजेक्शन के बिना, विकास आगे भी कम हो सकता है.

(रेणु कोहली नई दिल्ली स्थित मैक्रोइकॉनॉमिस्ट हैं.)


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Last Updated : Jan 14, 2020, 12:32 PM IST
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