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लोन मोरेटोरियम के दौरान ब्याज का मामला, सुनवाई 13 अक्टूबर तक टली

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Published : Oct 5, 2020, 11:37 AM IST

Updated : Oct 5, 2020, 2:48 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में लोन मोरेटोरियम मामले पर सुनवाई हुई. रियल एस्टेट डेवलपर्स ने सरकार के हलफनामे पर एतराज जताया है. सरकार ने कोर्ट को बताया कि सिर्फ 2 करोड़ तक के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज में रियायत मिलेगी. लोन मोरेटोरियम मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को होगी.

सुप्रीम कोर्ट में ब्याज पर ब्याज केस की सुनवाई जारी
सुप्रीम कोर्ट में ब्याज पर ब्याज केस की सुनवाई जारी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ऋण स्थगन मामले में केंद्र सरकार और आरबीआई द्वारा दायर की गई प्रतिक्रिया पर सोमवार को असंतोष व्यक्त किया, क्योंकि उन्होंने जबाव में कामत समिति की सिफारिश और उस पर कार्रवाई को शामिल नहीं किया था. शीर्ष अदालत ने कामत समिति की सिफारिशों पर केंद्र से 'स्पेशिफिक' जबाव मांगा है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने अब केंद्र को कामत समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन को स्पष्ट करने के मामले में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है. पीठ ने कहा है कि कामत समिति की सिफारिशें का पालन भी पहले भी नहीं किया गया है.

ये भी पढ़ें- महंगे आलू से राहत मिलने के आसार नहीं, नवरात्र में बढ़ेगी खपत

पीठ ने कहा, "इसे हमारे सामने क्यों नहीं रखा गया?"

आरबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वी.वी. गिरि ने कहा कि निर्णय उच्चतम स्तर पर लिए गए हैं और सरकार ने छोटे उधारकर्ताओं को हैंड-होल्डिंग का आश्वासन दिया है.

शीर्ष अदालत ने जोर दिया कि आरबीआई को उन सिफारिशों को सार्वजनिक करना चाहिए जिन्हें स्वीकार किया गया है. पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 13 अक्टूबर की तारीख दी है.

केंद्र ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने 6 महीने की मोहलत के दौरान 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर 'ब्याज पर ब्याज' माफ करने का फैसला लिया है. हलफनामे में कहा गया है कि एकमात्र समाधान यही है कि सरकार को चक्रवृद्धि ब्याज की छूट से होने वाले नुकसान का बोझ उठाना चाहिए.

केंद्र ने कहा, "सावधानी से विचार करने और सभी संभावित विकल्पों को तौलने के बाद, भारत ने छोटे उधारकर्ताओं के लिए हैंड-होल्डिंग की परंपरा को जारी रखने का फैसला किया है."

बता दें कि 2 करोड़ रुपये तक के ऋणों की श्रेणियों में एमएसएमई ऋण, शिक्षा ऋण, आवास ऋण, उपभोक्ता टिकाऊ ऋण, क्रेडिट कार्ड बकाया, ऑटो ऋण, पेशेवर और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं.

इससे पहले आरबीआई ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है. लेकिन जबरदस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है. इसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है.

बता दें कि पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने लोन मोरटोरियम अवधि के दौरान लोन के ब्याज पर ब्याज लेने के खिलाफ दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई 5 अक्टूबर यानी आज के लिए स्थगित की थी.

(समाचार एजेंसी आईएएनएस से इनपुट के साथ)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ऋण स्थगन मामले में केंद्र सरकार और आरबीआई द्वारा दायर की गई प्रतिक्रिया पर सोमवार को असंतोष व्यक्त किया, क्योंकि उन्होंने जबाव में कामत समिति की सिफारिश और उस पर कार्रवाई को शामिल नहीं किया था. शीर्ष अदालत ने कामत समिति की सिफारिशों पर केंद्र से 'स्पेशिफिक' जबाव मांगा है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने अब केंद्र को कामत समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन को स्पष्ट करने के मामले में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है. पीठ ने कहा है कि कामत समिति की सिफारिशें का पालन भी पहले भी नहीं किया गया है.

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पीठ ने कहा, "इसे हमारे सामने क्यों नहीं रखा गया?"

आरबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वी.वी. गिरि ने कहा कि निर्णय उच्चतम स्तर पर लिए गए हैं और सरकार ने छोटे उधारकर्ताओं को हैंड-होल्डिंग का आश्वासन दिया है.

शीर्ष अदालत ने जोर दिया कि आरबीआई को उन सिफारिशों को सार्वजनिक करना चाहिए जिन्हें स्वीकार किया गया है. पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 13 अक्टूबर की तारीख दी है.

केंद्र ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने 6 महीने की मोहलत के दौरान 2 करोड़ रुपये तक के कर्ज पर 'ब्याज पर ब्याज' माफ करने का फैसला लिया है. हलफनामे में कहा गया है कि एकमात्र समाधान यही है कि सरकार को चक्रवृद्धि ब्याज की छूट से होने वाले नुकसान का बोझ उठाना चाहिए.

केंद्र ने कहा, "सावधानी से विचार करने और सभी संभावित विकल्पों को तौलने के बाद, भारत ने छोटे उधारकर्ताओं के लिए हैंड-होल्डिंग की परंपरा को जारी रखने का फैसला किया है."

बता दें कि 2 करोड़ रुपये तक के ऋणों की श्रेणियों में एमएसएमई ऋण, शिक्षा ऋण, आवास ऋण, उपभोक्ता टिकाऊ ऋण, क्रेडिट कार्ड बकाया, ऑटो ऋण, पेशेवर और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं.

इससे पहले आरबीआई ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है. लेकिन जबरदस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है. इसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है.

बता दें कि पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने लोन मोरटोरियम अवधि के दौरान लोन के ब्याज पर ब्याज लेने के खिलाफ दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई 5 अक्टूबर यानी आज के लिए स्थगित की थी.

(समाचार एजेंसी आईएएनएस से इनपुट के साथ)

Last Updated : Oct 5, 2020, 2:48 PM IST
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