नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के निदेशक सतीश मराठे ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते पैदा हुई संकट से उबरने में छोटे और मझोले (एमएसएमई) उद्योगों की मदद करने के लिए सरकार और आरबीआई को एक साहसिक और व्यापक पैकेज लाने की जरूरत है.
मराठे ने पीटीआई-भाषा को बताया कि टुकड़ों में मदद करने से उद्योगों को राहत नहीं मिलेगी, क्योंकि यह एक असाधारण संकट है और इसके लिए असाधारण उपायों की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि कोरोना वायरस संकट अगले तीन से छह महीनों में खत्म हो जाएगा, लेकिन लेकिन उद्योगों को ठीक होने में ज्यादा समय लगेगा, जो 2019 में आर्थिक सुस्ती का सामना कर चुके हैं.
महामारी के प्रभावों को कम करने के लिए सरकार और आरबीआई के उपायों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ये उपाये सिर्फ छोटी अवधि के लिए हैं और वांछित परिणाम नहीं दे सकते हैं, क्योंकि समस्या गंभीर है और जो लॉकडाउन से बढ़ गई है.
मराठे ने कहा कि उद्योगों और खासतौर से असंगठित क्षेत्र तथा एमएसएमई को जल्द से जल्द पटरी पर लाने के लिए एक साहसिक और व्यापक पैकेज की जरूरत है. मराठे सहकार भारती के संस्थापक सदस्य भी हैं.
सहकार भारती ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में कहा कि सरकार और केंद्रीय बैंक की घोषणाएं उधारदाताओं और कर्जदारों, दोनों पर बहुत थोड़ा असर डालेंगी.
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मराठे ने कहा कि भारत में कारोबार बैंकों के कर्ज की मदद से चलता है, जबकि विकसित देशों में यह पूंजी द्वारा संचालित होता है.
उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि रेटिंग में कमी किए बिना प्रावधान के नियमों को एक साल के लिए निरस्त रखा जाए और सभी व्यक्तिगत तथा खुदरा ऋणों को फिर से निर्धारित करने की इजाजत दी जाए.
मराठे ने कहा कि बैंकों के ईएमआई भुगतान पर तीन महीने के ऋण स्थगन से भी कोई आय सहायता नहीं मिलती है क्योंकि ग्राहकों को अधिक ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा और ऋण अदायगी की अवधि बढ़ जाएगी.
(पीटीआई-भाषा)