ETV Bharat / business

माल्या मामला: सेबी ने की कंपनी कानून में बदलाव की मांग - भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड

कंपनी कानून में बदलाव के पीछे तर्क देतु हुए सेबी ने कहा कि सचाई यह है कि माल्या ने उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया और इससे कानूनी समस्या उत्पन्न हुई.

विजय माल्या
author img

By

Published : Mar 4, 2019, 8:09 PM IST

नई दिल्ली: पूंजी बाजार नियामक सेबी ने सरकार से कंपनी कानून में संशोधन करने को कहा है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उसके द्वारा अगर किसी निदेशक को अयोग्य करार दिया जाता है तो वह तत्काल पद से हटे. कर्ज नहीं लौटाने वाले विजय माल्या के ऐसी नहीं करने को देखते हुए सेबी सरकार से यह अपील की है.

कंपनी कानून के तहत किसी अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश से संबंधित निदेशक पद पर बैठा व्यक्ति अयोग्य हो जाता है और उसे पद से हटना पड़ता है. लेकिन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के बारे में स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं कहा गया है जबकि उसे हजारों सूचीबद्ध कंपनी के नियमन का जिम्मा मिला हुआ है.

ये भी पढ़ें-यूरोपियन संघ से ब्रिटेन के अलग होने से बढ़ेगी कानपुर लेदर इंडस्ट्री की मुश्किलें

सेबी ने एक प्रस्ताव में कहा हे कि कंपनी कानून में यह स्पष्ट रूप से जिक्र होना चाहिए कि अगर उसके आदेश में संबंधित व्यक्ति अयोग्य करार दिया जाता है तो उसे तत्काल निदेशक पद छोड़ देना चाहिए. अधिकारियों ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने प्रस्तावित संशोधन को लेकर सेबी से इस बारे में अपने निदेशक मंडल से मंजूरी प्राप्त करने तथा उसके बाद उसे कारपोरेट कार्य मंत्रालय को भेजने को कहा है.

कंपनी कानून के लिये नोडल मंत्रालय कारपोरेट कार्य मंत्रालय है. अपने प्रस्ताव में सेबी ने 25 जनवरी 2017 के आदेश का जिक्र किया है. इस आदेश में नियामक ने माल्या तथा छह अन्य को किसी भी सूचीबद्ध कंपनी में अगले आदेश तक निदेशक पद लेने से मना किया.

सेबी ने यूनाइटेड स्प्रिट्स लि. में कोष के अवैध तरीके से स्थानांतरण की जांच के बाद आदेश दिया था। यह कंपनी माल्या के अगुवाई वाले कारोबारी समूह का हिस्सा थी जो अब अस्तित्व में नहीं है. इसे बाद में वैश्विक शराब कंपनी डिआजियो को बेच दिया गया. उसी आदेश में माल्या तथा अन्य को प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित कर दिया गया था.

हालांकि माल्या ने यूनाइटेड ब्रेवरीज तथा समूह की अन्य कंपनियों में निदेशक पद पर बने रहकर कई महीनों तक आदेश का अनुपालन नहीं किया. अंत में अन्य निदेशकों के दबाव पर वह अगस्त 2017 में निदेशक पद से हटे. कंपनी कानून में बदलाव के पीछे तर्क देतु हुए सेबी ने कहा कि सचाई यह है कि माल्या ने उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया और इससे कानूनी समस्या उत्पन्न हुई.

इससे यह सवाल उठा कि जब कोई निदेशक आदेश का पालन करने में नाकाम रहता है तो क्या सेबी के पास अपने आदेश को लागू करने का अधिकार है. कंपनी कानून, 2013 की धारा 167 के तहत फिलहाल किसी व्यक्ति पर सेबी के निर्देश के तहत निदेशक के रूप में काम करने की पाबंदी, उसके पद छोड़ने का आधार नहीं बनती. इसी लिए सेबी ने कहा है कि धारा 197 को संशोधित कर इस मसले का समाधान किया जा सकता है.

(भाषा)

undefined

नई दिल्ली: पूंजी बाजार नियामक सेबी ने सरकार से कंपनी कानून में संशोधन करने को कहा है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उसके द्वारा अगर किसी निदेशक को अयोग्य करार दिया जाता है तो वह तत्काल पद से हटे. कर्ज नहीं लौटाने वाले विजय माल्या के ऐसी नहीं करने को देखते हुए सेबी सरकार से यह अपील की है.

कंपनी कानून के तहत किसी अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश से संबंधित निदेशक पद पर बैठा व्यक्ति अयोग्य हो जाता है और उसे पद से हटना पड़ता है. लेकिन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के बारे में स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं कहा गया है जबकि उसे हजारों सूचीबद्ध कंपनी के नियमन का जिम्मा मिला हुआ है.

ये भी पढ़ें-यूरोपियन संघ से ब्रिटेन के अलग होने से बढ़ेगी कानपुर लेदर इंडस्ट्री की मुश्किलें

सेबी ने एक प्रस्ताव में कहा हे कि कंपनी कानून में यह स्पष्ट रूप से जिक्र होना चाहिए कि अगर उसके आदेश में संबंधित व्यक्ति अयोग्य करार दिया जाता है तो उसे तत्काल निदेशक पद छोड़ देना चाहिए. अधिकारियों ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने प्रस्तावित संशोधन को लेकर सेबी से इस बारे में अपने निदेशक मंडल से मंजूरी प्राप्त करने तथा उसके बाद उसे कारपोरेट कार्य मंत्रालय को भेजने को कहा है.

कंपनी कानून के लिये नोडल मंत्रालय कारपोरेट कार्य मंत्रालय है. अपने प्रस्ताव में सेबी ने 25 जनवरी 2017 के आदेश का जिक्र किया है. इस आदेश में नियामक ने माल्या तथा छह अन्य को किसी भी सूचीबद्ध कंपनी में अगले आदेश तक निदेशक पद लेने से मना किया.

सेबी ने यूनाइटेड स्प्रिट्स लि. में कोष के अवैध तरीके से स्थानांतरण की जांच के बाद आदेश दिया था। यह कंपनी माल्या के अगुवाई वाले कारोबारी समूह का हिस्सा थी जो अब अस्तित्व में नहीं है. इसे बाद में वैश्विक शराब कंपनी डिआजियो को बेच दिया गया. उसी आदेश में माल्या तथा अन्य को प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित कर दिया गया था.

हालांकि माल्या ने यूनाइटेड ब्रेवरीज तथा समूह की अन्य कंपनियों में निदेशक पद पर बने रहकर कई महीनों तक आदेश का अनुपालन नहीं किया. अंत में अन्य निदेशकों के दबाव पर वह अगस्त 2017 में निदेशक पद से हटे. कंपनी कानून में बदलाव के पीछे तर्क देतु हुए सेबी ने कहा कि सचाई यह है कि माल्या ने उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया और इससे कानूनी समस्या उत्पन्न हुई.

इससे यह सवाल उठा कि जब कोई निदेशक आदेश का पालन करने में नाकाम रहता है तो क्या सेबी के पास अपने आदेश को लागू करने का अधिकार है. कंपनी कानून, 2013 की धारा 167 के तहत फिलहाल किसी व्यक्ति पर सेबी के निर्देश के तहत निदेशक के रूप में काम करने की पाबंदी, उसके पद छोड़ने का आधार नहीं बनती. इसी लिए सेबी ने कहा है कि धारा 197 को संशोधित कर इस मसले का समाधान किया जा सकता है.

(भाषा)

undefined
Intro:Body:

माल्या मामला: सेबी ने की कंपनी कानून में बदलाव की मांग

नई दिल्ली: पूंजी बाजार नियामक सेबी ने सरकार से कंपनी कानून में संशोधन करने को कहा है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उसके द्वारा अगर किसी निदेशक को अयोग्य करार दिया जाता है तो वह तत्काल पद से हटे. कर्ज नहीं लौटाने वाले विजय माल्या के ऐसी नहीं करने को देखते हुए सेबी सरकार से यह अपील की है. 

कंपनी कानून के तहत किसी अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश से संबंधित निदेशक पद पर बैठा व्यक्ति अयोग्य हो जाता है और उसे पद से हटना पड़ता है. लेकिन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के बारे में स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं कहा गया है जबकि उसे हजारों सूचीबद्ध कंपनी के नियमन का जिम्मा मिला हुआ है. 

ये भी पढ़ें- 

सेबी ने एक प्रस्ताव में कहा हे कि कंपनी कानून में यह स्पष्ट रूप से जिक्र होना चाहिए कि अगर उसके आदेश में संबंधित व्यक्ति अयोग्य करार दिया जाता है तो उसे तत्काल निदेशक पद छोड़ देना चाहिए. अधिकारियों ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने प्रस्तावित संशोधन को लेकर सेबी से इस बारे में अपने निदेशक मंडल से मंजूरी प्राप्त करने तथा उसके बाद उसे कारपोरेट कार्य मंत्रालय को भेजने को कहा है. 

कंपनी कानून के लिये नोडल मंत्रालय कारपोरेट कार्य मंत्रालय है. अपने प्रस्ताव में सेबी ने 25 जनवरी 2017 के आदेश का जिक्र किया है. इस आदेश में नियामक ने माल्या तथा छह अन्य को किसी भी सूचीबद्ध कंपनी में अगले आदेश तक निदेशक पद लेने से मना किया. 

सेबी ने यूनाइटेड स्प्रिट्स लि. में कोष के अवैध तरीके से स्थानांतरण की जांच के बाद आदेश दिया था। यह कंपनी माल्या के अगुवाई वाले कारोबारी समूह का हिस्सा थी जो अब अस्तित्व में नहीं है. इसे बाद में वैश्विक शराब कंपनी डिआजियो को बेच दिया गया. उसी आदेश में माल्या तथा अन्य को प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित कर दिया गया था. 

हालांकि माल्या ने यूनाइटेड ब्रेवरीज तथा समूह की अन्य कंपनियों में निदेशक पद पर बने रहकर कई महीनों तक आदेश का अनुपालन नहीं किया. अंत में अन्य निदेशकों के दबाव पर वह अगस्त 2017 में निदेशक पद से हटे. कंपनी कानून में बदलाव के पीछे तर्क देतु हुए सेबी ने कहा कि सचाई यह है कि माल्या ने उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया और इससे कानूनी समस्या उत्पन्न हुई. 

इससे यह सवाल उठा कि जब कोई निदेशक आदेश का पालन करने में नाकाम रहता है तो क्या सेबी के पास अपने आदेश को लागू करने का अधिकार है. कंपनी कानून, 2013 की धारा 167 के तहत फिलहाल किसी व्यक्ति पर सेबी के निर्देश के तहत निदेशक के रूप में काम करने की पाबंदी, उसके पद छोड़ने का आधार नहीं बनती. इसी लिए सेबी ने कहा है कि धारा 197 को संशोधित कर इस मसले का समाधान किया जा सकता है.

(भाषा) 


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.