नई दिल्ली: रेगिस्तानी टिड्डी दल ने भारत में रबी फसलों को प्रभावित नहीं किया है, लेकिन आगामी खरीफ की फसलों को बचाने के लिए, मानसून से पहले इनको खत्म करने के सरकारी प्रयास जारी हैं. टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी. हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि टिड्डियों के झुंड को पड़ोसी देश पाकिस्तान ने अपने यहां नियंत्रित किया होता तो भारत के लिए कोई बड़ा खतरा पैदा नहीं किया होता.
टिड्डियों के झुंड काफी सक्रिय होते है और एक दिन में 50 से 100 किमी से अधिक दूरी तय करते हैं. ये अफ्रीका निकल कर ईरान और पाकिस्तान के रास्ते से भारत में प्रवेश करते हैं. पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर तबाही मचाने के बाद, राजस्थान और गुजरात के रास्ते से टिड्डियों के झुंड देश में प्रवेश किया.
एलडब्ल्यूओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, "पाकिस्तान से रास्ते लगातार टिड्डियों का आक्रमण हो रहा है. यह कोई नई समस्या नहीं है और हम लंबे समय से इसका सामना कर रहे हैं. इस साल, टिड्डियों का हमला 26 वर्षों में सबसे खतरनाक है. हालांकि, इस पर अंकुश लगाने के लिए संगठित प्रयास किये गये हैं."
इस संगठन का मुख्यालय फरीदाबाद में है. पहले, टिड्डी राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित रहते थे. चूंकि कीड़े को जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है, इसलिए वे तेज अंधड़ की मदद से अन्य क्षेत्रों में जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इस वर्ष टिड्डियों का हमला गंभीर है क्योंकि टिड्डी हवा के बहाव के अनुसार बहुत तेज गति से आगे बढ़ रही हैं. उसने व्यापक पैमाने पर राजस्थान और गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को प्रभावित किया है.
हालांकि, केंद्रीय और संघीय दोनों एजेंसियों ने विभिन्न स्थानों पर इस पर प्रभावी रूप से नियंत्रित किया है. उन्होंने कहा कि राजस्थान में इन कीटों को खत्म करने और अन्य राज्यों में इसके प्रसार को रोकने पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र के अनुसार, इन कीटों ने लगभग 40,000 से 42,000 हेक्टेयर भूमि पर आक्रमण बोला है. लेकिन गेहूं, दलहन और तिलहन जैसी रबी (सर्दियों) की फसलों पर कोई प्रभाव नहीं है क्योंकि उनमें से ज्यादातर अब तक काटी जा चुकी हैं.
उन्होंने कहा, "अब ध्यान जून-जुलाई में मानसूनी बारिश के आने से पहले इसके प्रकोप को रोकने पर है, जिस दौरान टिड्डियां परिपक्व होकर प्रजनन करती हैं. यदि इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह खरीफ फसलों के लिए खतरा पैदा करेगा."
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महापात्र ने कहा कि कीटों को रासायनिक कीटनाशकों की मदद से मारा जा रहा है जिन्हें विशेष मशीनों से छिड़का जा रहा है. छिड़काव के लिए लगभग 700 ट्रैक्टर तैनात हैं. राजस्थान में, जालोर जिले के एलडब्ल्यूओ के फील्ड आफिसर बल राम मीणा ने कहा, "समस्या बढ़ गई है क्योंकि टिड्डियां अन्य क्षेत्रों में भोजन की तलाश में दिन में 100 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं. पहले वे एक दिन में 50 किमी तक की यात्रा करते थे और इसे नियंत्रित करना आसान था."
उन्होंने कहा कि अब उन्होंने पाकिस्तान की सीमा पार कर जयपुर, जोधपुर, दौसा, कौराली और सीकर जिलों को प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि वे पौष्टिक और हरी वनस्पतियों को खाती हैं. उन्होंने कहा कि वे हवा के रुख में बदलाव के अनुरूप आगे बढ़ेंगे.
एलडब्ल्यूओ के बाड़मेर केंद्र के एक अन्य फील्ड आफिसर ने कहा कि राज्य सरकार टिड्डियों के झुंडों के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए 'मैलाथियान' नामक रासायनिक कीटनाशक का उपयोग कर रही है. अधिकारी ने कहा कि यह अत्यधिक सांद्रता वाला रासायनिक कीटनाशक है. चूंकि यह जहरीला है, इसलिए किसान इसका छिड़काव नहीं कर सकते.
अधिकारी ने कहा कि एलडब्ल्यूओ के अधिकारियों के एक दल को विशेष मशीनों का उपयोग करके इसका छिड़काव करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. संयुक्त राष्ट्र के निकाय खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, टिड्डियों के हमले से प्रभावित देशों के लिए खाद्य सुरक्षा को खतरा पैदा होता है क्योंकि वयस्क टिड्डी अपने दो ग्राम के वजन के बराबर हर एक दिन में वनस्पति खा सकते हैं.
एफएओ के अनुसार, झुंड के एक वर्ग किलोमीटर के दायरे में चार से आठ करोड़ वयस्क टिड्डियां हो सकती हैं. हर एक दिन, अगर वे 130-150 किमी की दूरी तय करते हैं, तो वे 35,000 लोगों द्वारा खाए गए भोजन के बराबर खाद्य पदार्थो को खा सकते हैं.
एफएओ के 21 मई की ताजा सूचना के अनुसार, दक्षिणी ईरान और दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान में वसंत मौसम का प्रजनन का काम जारी है, जहां टिड्डियों और इसके वयस्क समूहों की बढ़ती संख्या के खिलाफ नियंत्रण अभियान चल रहे है. जैसे-जैसे वनस्पतियां सूखती जाएंगी, वैसे-वैसे टिड्डियों के और दल तैयार होंगे जो अभी से लेकर जुलाई के आरंभ तक चलने वाली हवाओं के साथ इन क्षेत्रों से निकलकर भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर गर्मियों के प्रजनन क्षेत्रों में जायेंगे.
भारत-पाकिस्तान सीमा पर जून के पहले पखवाड़े के दौरान अच्छी बारिश की भविष्यवाणी की गई है जब टिड्डियां अंडा देंगी. इससे राजस्थान में पहले से मौजूद टिड्डियों के आगे का प्रसार कम होना चाहिए. मौसम विभाग ने जुलाई से सितंबर की अवधि के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसून के सामान्य होने की भविष्यवाणी की है. धान जैसे खरीफ फसल की बुवाई का काम चल रहा है और मानसून शुरु होने के साथ इसमें गति आयेगी.
(पीटीआई-भाषा)