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बाढ़ और भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था - बाढ़ और भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था

देश के कई इलाकों में इस साल बाढ़ आई है. कई राज्य तो अत्यधिक बारिश की चपेट में आए हैं. नतीजतन फसलें, मवेशी, वन्यजीव, आधारभूत ढांचे, कृषि एवं अर्थव्यवस्था-सभी प्रभावित हुए हैं.

बाढ़ और भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था
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Published : Oct 22, 2019, 6:55 PM IST

हैदराबाद: भारत में कृषि प्रमुख व्यवसाय है. भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. हालांकि, देश का 60 फीसदी जहां बुआई हुई है वह क्षेत्र अभी भी बारिश से भरा हुआ है.
हाल ही में बाढ़ से अधिकांश खेत बह गए. जिससे 1.3 बिलियन से अधिक आबादी की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाली भारतीय कृषि को काफी नुकसान पहुंचा है.

खाद्य मुद्रास्फीति
किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के अलावा बाढ़ ने खाद्य कीमतों के लिए खतरे की घंटी बजाई है. रिपोर्ट बताती है कि टमाटर, प्याज, लहसुन आदि अब देश में आम आदमी के जेब पर भारी पड़ रहे हैं.
इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आने वाले दिनों में बाढ़ के कारण डेयरी, पोल्ट्री, मछली पकड़ने और पशुधन जैसी कृषि-संबद्ध गतिविधियों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है.

ये भी पढ़ें- किराना दुकानों के डिजिटलीकरण, आधुनिकीकरण के लिए सरकार, उद्योग साथ काम करें: डेलॉयट

दीर्घकालिक प्रभाव
भारतीय कृषि क्षेत्र किसी ना किसी पचड़े से गुजर रही है. छोटे भूस्खलन, कम उत्पादन, कम उत्पादकता और पुरानी ऋणग्रस्तता जैसी समस्याओं से घिरे सेक्टर इससे काफी प्रभावित होंगे.
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के पश्चिमी और उत्तरी भागों में 4 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसलें खराब हो गईं. जिससे लाखों नकदी फसल उत्पादक प्रभावित हुए. परिणामस्वरूप कम ग्रामीण मांग ने राज्य की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया.

प्रभावी रणनीति की जरूरत है
जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखा आम बात हो गई है. नुकसान को कम करने के लिए किसानों को मौसम की स्थिति, कुशल खाद्यान्न भंडारण बुनियादी सुविधाओं और सस्ती फसल बीमा सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए.
इसके अलावा भारतीय कृषि पर बाढ़ के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की जानी चाहिए.

हैदराबाद: भारत में कृषि प्रमुख व्यवसाय है. भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. हालांकि, देश का 60 फीसदी जहां बुआई हुई है वह क्षेत्र अभी भी बारिश से भरा हुआ है.
हाल ही में बाढ़ से अधिकांश खेत बह गए. जिससे 1.3 बिलियन से अधिक आबादी की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाली भारतीय कृषि को काफी नुकसान पहुंचा है.

खाद्य मुद्रास्फीति
किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के अलावा बाढ़ ने खाद्य कीमतों के लिए खतरे की घंटी बजाई है. रिपोर्ट बताती है कि टमाटर, प्याज, लहसुन आदि अब देश में आम आदमी के जेब पर भारी पड़ रहे हैं.
इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आने वाले दिनों में बाढ़ के कारण डेयरी, पोल्ट्री, मछली पकड़ने और पशुधन जैसी कृषि-संबद्ध गतिविधियों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है.

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दीर्घकालिक प्रभाव
भारतीय कृषि क्षेत्र किसी ना किसी पचड़े से गुजर रही है. छोटे भूस्खलन, कम उत्पादन, कम उत्पादकता और पुरानी ऋणग्रस्तता जैसी समस्याओं से घिरे सेक्टर इससे काफी प्रभावित होंगे.
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के पश्चिमी और उत्तरी भागों में 4 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसलें खराब हो गईं. जिससे लाखों नकदी फसल उत्पादक प्रभावित हुए. परिणामस्वरूप कम ग्रामीण मांग ने राज्य की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया.

प्रभावी रणनीति की जरूरत है
जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखा आम बात हो गई है. नुकसान को कम करने के लिए किसानों को मौसम की स्थिति, कुशल खाद्यान्न भंडारण बुनियादी सुविधाओं और सस्ती फसल बीमा सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए.
इसके अलावा भारतीय कृषि पर बाढ़ के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की जानी चाहिए.

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बाढ़ और भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था

भारत में कृषि प्रमुख व्यवसाय है. भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. हालांकि, देश का 60 फीसदी जहां बुआई हुई है वह क्षेत्र अभी भी बारिश से भरा हुआ है.  

हाल ही में बाढ़ से अधिकांश खेत बह गए. जिससे 1.3 बिलियन से अधिक आबादी की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाली भारतीय कृषि को काफी नुकसान पहुंचा है.

खाद्य मुद्रास्फीति

किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के अलावा बाढ़ ने खाद्य कीमतों के लिए खतरे की घंटी बजाई है. रिपोर्ट बताती है कि टमाटर, प्याज, लहसुन आदि अब देश में आम आदमी के जेब पर भारी पड़ रहे हैं.

इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आने वाले दिनों में बाढ़ के कारण डेयरी, पोल्ट्री, मछली पकड़ने और पशुधन जैसी कृषि-संबद्ध गतिविधियों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है. 

दीर्घकालिक प्रभाव

भारतीय कृषि क्षेत्र किसी ना किसी पचड़े से गुजर रही है. छोटे भूस्खलन, कम उत्पादन, कम उत्पादकता और पुरानी ऋणग्रस्तता जैसी समस्याओं से घिरे सेक्टर इससे काफी प्रभावित होंगे. 

उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के पश्चिमी और उत्तरी भागों में 4 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसलें खराब हो गईं. जिससे लाखों नकदी फसल उत्पादक प्रभावित हुए. परिणामस्वरूप कम ग्रामीण मांग ने राज्य की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया. 

प्रभावी रणनीति की जरूरत है

जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखा आम बात हो गई है. नुकसान को कम करने के लिए किसानों को मौसम की स्थिति, कुशल खाद्यान्न भंडारण बुनियादी सुविधाओं और सस्ती फसल बीमा सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए. 

इसके अलावा भारतीय कृषि पर बाढ़ के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की जानी चाहिए.


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