नई दिल्ली : भारतीय सेना और चीनी पीएलए पूर्वी लद्दाख के उच्च हिमालय क्षेत्र में तनावपूर्ण स्थिति का आमना सामना कर रही है. वहीं भारत-चीन व्यापार संबंधों के भविष्य पर काले बादल मंडराते नजर आ रहे हैं, क्योंकि मोदी सरकार सस्ते चीनी सामानों पर देश की भारी निर्भरता को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है. भारतीय बाजार में चीनी सामग्री की बाढ़ सी आई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि चीन से व्यापारी संबंधों को समाप्त करने के लिए भारत को बरसों की योजना और नीतिगत परिवर्तन की जरूरत होगी.
यदि हम भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर नजर डालें, तो हम पायेंगे कि यह चीन के पक्ष में ज्यादा झुका है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत का चीन के साथ (होंग कोंग के अलावा) व्यापार 87 बिलियन डॉलर था. इस वर्षा जहां भारत ने चीन से माल और सेवाओं का 70.3 बिलियन डॉलर आयात किया था. उसने चीन को केवल 16.75 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था. इस प्रकार निर्यात और आयत के बीच 53.55 बिलियन डॉलर की खाद थी.
इसका अर्थ यह कि भारत चीन से बड़े पैमाने पर आयात कर रहा था जब चीन को उसके निर्यात कुल निर्यात का एक चौथाई हिस्सा था. हांगकांग को छोड़ चीन भारत का 2013-14 से 2017-18 तक सबसे बड़ा व्यापारी हिस्सेदार था जो 2018-19 में अमेरिका बन गया.
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि चीन के साथ व्यापार घटाना आसान नहीं है. चीन के साथ इस तरह की निर्भरता या अन्योन्याश्रय का आयात और निर्यात दोनों के संदर्भ में रातोंरात निर्माण नहीं किया गया है.
आर गांधी कहते हैं, 'हम चीन को बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं और चीन से बहुत बड़े पैमाने पर आयात करते है, ऐसे में हम भला कैसे इसे रात भर में बदल सकते हैं.'
इस साल जून में लद्दाख की गैलवान घाटी में भारतीय सेना और चीनी पीएलए के बीच हिंसक सामना होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस साल मई में आत्मनिर्भय भारत अभियान के तहत महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सस्ते चीनी आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए कई नीतिगत प्रतिक्रियाएं शुरू की थीं.
यह उपाय मुख्य रूप से चीन के वुहान क्षेत्र में कोविड -19 वायरस के प्रकोप के बाद आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान के जवाब में शुरू किए गए थे. इस साल जून में लद्दाख की गालवान घाटी में हिंसा जिसमें 20 भारतीय सैनिक मारे गए के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध और बिगड़ गए.
जून में सीमा पर टकराव के बाद चीन पर निर्भरता को कम करने की आवश्यकता पर विचार किया गया क्योंकि देश के साथ सैन्य टकराव पांच महीने बाद भी खत्म होने के कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे.
भारत के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने पूर्वी पड़ोसी के साथ सीमा तनाव का फायदा उठाकर भारी व्यापार असंतुलन को दूर करे और देश पर उसकी निर्भरता को कम करे.
वर्षों से, भारत चीन के साथ भारी व्यापार घाटे की शिकायत करता रहा है, जिसका दूसरे शब्दों में अर्थ है कि भारत अधिक आयात करते हुए कम निर्यात करता रहा है.
इससे भी अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि चीन के लिए भारत के निर्यात में मुख्य रूप से कच्चे माल और कम मूल्य के उत्पाद शामिल हैं, जबकि भारत के लिए चीन के निर्यात में तैयार उत्पाद जैसे दूरसंचार उपकरण, कंप्यूटर हार्डवेयर और अन्य आईटी उत्पाद, मोबाइल फोन और उनके हिस्से शामिल हैं. यदि कोई भारत-चीन व्यापार डेटा को गहराई से देखे, तो भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स आयात का 45%, मशीनरी आयात का एक तिहाई और भारत द्वारा आयात किए जाने वाले लगभग 40% कार्बनिक रसायन चीन से आता है.
इसी तरह, सी आई आई द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, चीन भारत के 25% से अधिक मोटर वाहन भागों और उर्वरकों की आपूर्ति करता है और यह अकेले भारत के 70% सक्रिय दवा सामग्री (APIs) की आवश्यकता की आपूर्ति करता है जो दवाओं के निर्माण में उपयोग में आता है.
आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने ईटीवी भारत को बताया कि चीन पर निर्भरता कम करने के लिए एक स्पष्ट दीर्घकालिक योजना बनानी होगी और इसके प्रभावी होने में कई वर्षों के नीतिगत हस्तक्षेप का समय लगेगा.
आरबीआई के पूर्व अधिकारी ने बताया, "नीति, प्रोत्साहन और हतोत्साहन, नीतिगत प्रोत्साहन में कुछ बदलावों की आवश्यकता होगी. हम इसे तुरंत नहीं कर सकते.
व्यापार असंतुलन सुधार का संकेत देता है
कई कारणों की वजह से, भारत और चीन (हांगकांग को छोड़कर) के बीच कुल व्यापार में , वित्त वर्ष 2019-20 में गिरावट आई. यह परिवर्तन कोविड -19 वैश्विक महामारी के प्रतिकूल प्रभाव से भी प्रेरित था जिसने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया और वैश्विक व्यापार और वाणिज्य को प्रभावित किया.
भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2018-19) में जो 87.05 बिलियन डॉलर था वित्त वर्ष 2019-20 में घटकर 81.86 बिलियन डॉलर हो गया.
वित्त वर्ष 2018-19 में व्यापार घाटा 53.55 बिलियन डॉलर से 2019-20 में 48.66 बिलियन डॉलर हो गया.
(कृष्णानंद त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार)