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नोटबंदी: तीन साल बाद भी कितनी सफल

8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक ऐलान किया. 500 और 1000 रुपये के नोट के विमुद्रीकरण यानि नोटबंदी का. जिसने पूरे देश को एक झटके में बैंकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया. आज तीन साल बाद भी इसके लागू करने के तरीके और प्रभाव की व्यापकता पर बहस जारी है.

नोटबंदी: तीन साल बाद भी कितनी सफल
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Published : Nov 8, 2019, 7:57 PM IST

हैदराबाद : 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक ऐलान किया. 500 और 1000 रुपये के नोट के विमुद्रीकरण यानि नोटबंदी का. जिसने पूरे देश को एक झटके में बैंकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया. आज तीन साल बाद भी इसके लागू करने के तरीके और प्रभाव की व्यापकता पर बहस जारी है. आइए जानते हैं नोटबंदी अपने घोषित उद्देश्यों में कितना सफल साबित हुआ.

सरकार ने प्रारंभिक तौर पर विमुद्रीकरण के पांच मुख्य उद्देश्य बताए थे

  1. काले धन को बाहर निकालना
  2. नकली नोट को चलन से हटाना
  3. आतंकवाद और नक्सल का वित्त पोषण रोकना
  4. टैक्स कलेक्शन में वृद्धि
  5. भुगतान के डिजटलीकरण को बढ़ावा

1. काले धन को बाहर निकालना

नोटबंदी के समय सरकार का दावा था कि यह कालेधन पर बड़ा हमला साबित होगी, किंतु आरबीआई ने अपनी 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि नोटबंदी के बाद तकरीबन 99.3 फीसदी पुराने 500 और 1000 रुपये के नोट बैंकों में वापस जमा कर दिए गए और मात्र 10,720 करोड़ रुपये के पुराने नोट बैंकों के पास लौट कर नहीं आए. जिससे यह कालेधन पर लगाम लगाने के अपने उद्देश्य में सफल साबित होती नहीं दिखी. हालांकि सरकार का कहना है कि सिर्फ बैंक में वापस आ जाने से कालेधन धारक मुक्त नहीं हो जाएंगे. वापस आए हर छोटी बड़ी राशि की जांच की जा रही है.

2. नकली नोट को चलन से हटाना

सरकार ने 500 और 2,000 रुपये मूल्य के नए नोट जारी करते समय उसके तमाम सुरक्षा फीचर्स बताते हुए कहा था कि यह नोट जाली करना इतना आसान नहीं होगा. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2016 के मुकाबले 2017 में नकली नोटों की दर्ज घटनाओं में तकरीबन 20 फीसदी की कमी आई. लेकिन देश के विभिन्न क्षेत्रों से बरामद नकली नोटों से पता चलता है कि इन नए नोटों की भी जाली कॉपी आज बाजार में चलन में हैं.

3. आतंकवाद और नक्सल का वित्त पोषण रोकना

क्या विमुद्रीकरण ने वास्तव में आतंकवाद के वित्तपोषण और आतंकवादी हमलों पर रोक लगाया? आंकड़ों के मुताबिक केवल कश्मीर में आतंकवादी हमले वास्तव में विमुद्रीकरण के बाद बढ़ गए हैं. 2016 में, 322 आतंकवादी घटनाएं हुईं, जबकि 2017 में ये बढ़कर 342 हो गई. हालांकि सरकार की तरफ से अभी तक आतंकवाद के वित्तपोषण को लेकर कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं दिया गया है. इसलिए आतंकवाद पर विमुद्रीकरण का कोई भी प्रभाव नही देखा जा रहा है.

4. टैक्स कलेक्शन में वृद्धि

नोटबंदी के बाद के सालों की तुलना करने पर देखा जा सकता है कि आयकर रिटर्न में लगातार बढ़ोतरी हुई है. किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए सिर्फ नोटबंदी को श्रेय नहीं दिया जा सकता है. सरकार द्वारा कर भुगतान की प्रक्रिया को सरल करना और कर संशोधन संबंधि फैसले भी इसे प्रभावित करते हैं.

5. भुगतान के डिजटलीकरण को बढ़ावा

सरकार ने नोटबंदी के बाद भीम ऐप लांच कर अपनी मंशा साफ कर दी थी. डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी कर सरकार लेन-देन में ज्यादा पारदर्शिता और काले धन के प्रसार पर रोक लगाना चाहती थी. और आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद से ही डिजिटल लेनदेनों में बढ़ोतरी हुई है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा यूपीआई और डेबिट कार्ड का है.

नोटबंदी अपने तय उद्देश्यों को पूरा करने में खासा सफल नहीं रहा है, लेकिन इसने काले धन पर कुछ हद तक लगाम लगाई है. क्या इस उद्देश्य को करोड़ों आम आदमी के जीवन और आजिविका को प्रभावित करने की कीमत पर हासिल किया जाना चाहिए था, यह आज भी एक सवाल बना हुआ है.
ये भी पढ़ें: आठ नवंबर: आज ही के दिन तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था नोटबंदी का ऐलान

हैदराबाद : 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक ऐलान किया. 500 और 1000 रुपये के नोट के विमुद्रीकरण यानि नोटबंदी का. जिसने पूरे देश को एक झटके में बैंकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया. आज तीन साल बाद भी इसके लागू करने के तरीके और प्रभाव की व्यापकता पर बहस जारी है. आइए जानते हैं नोटबंदी अपने घोषित उद्देश्यों में कितना सफल साबित हुआ.

सरकार ने प्रारंभिक तौर पर विमुद्रीकरण के पांच मुख्य उद्देश्य बताए थे

  1. काले धन को बाहर निकालना
  2. नकली नोट को चलन से हटाना
  3. आतंकवाद और नक्सल का वित्त पोषण रोकना
  4. टैक्स कलेक्शन में वृद्धि
  5. भुगतान के डिजटलीकरण को बढ़ावा

1. काले धन को बाहर निकालना

नोटबंदी के समय सरकार का दावा था कि यह कालेधन पर बड़ा हमला साबित होगी, किंतु आरबीआई ने अपनी 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि नोटबंदी के बाद तकरीबन 99.3 फीसदी पुराने 500 और 1000 रुपये के नोट बैंकों में वापस जमा कर दिए गए और मात्र 10,720 करोड़ रुपये के पुराने नोट बैंकों के पास लौट कर नहीं आए. जिससे यह कालेधन पर लगाम लगाने के अपने उद्देश्य में सफल साबित होती नहीं दिखी. हालांकि सरकार का कहना है कि सिर्फ बैंक में वापस आ जाने से कालेधन धारक मुक्त नहीं हो जाएंगे. वापस आए हर छोटी बड़ी राशि की जांच की जा रही है.

2. नकली नोट को चलन से हटाना

सरकार ने 500 और 2,000 रुपये मूल्य के नए नोट जारी करते समय उसके तमाम सुरक्षा फीचर्स बताते हुए कहा था कि यह नोट जाली करना इतना आसान नहीं होगा. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2016 के मुकाबले 2017 में नकली नोटों की दर्ज घटनाओं में तकरीबन 20 फीसदी की कमी आई. लेकिन देश के विभिन्न क्षेत्रों से बरामद नकली नोटों से पता चलता है कि इन नए नोटों की भी जाली कॉपी आज बाजार में चलन में हैं.

3. आतंकवाद और नक्सल का वित्त पोषण रोकना

क्या विमुद्रीकरण ने वास्तव में आतंकवाद के वित्तपोषण और आतंकवादी हमलों पर रोक लगाया? आंकड़ों के मुताबिक केवल कश्मीर में आतंकवादी हमले वास्तव में विमुद्रीकरण के बाद बढ़ गए हैं. 2016 में, 322 आतंकवादी घटनाएं हुईं, जबकि 2017 में ये बढ़कर 342 हो गई. हालांकि सरकार की तरफ से अभी तक आतंकवाद के वित्तपोषण को लेकर कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं दिया गया है. इसलिए आतंकवाद पर विमुद्रीकरण का कोई भी प्रभाव नही देखा जा रहा है.

4. टैक्स कलेक्शन में वृद्धि

नोटबंदी के बाद के सालों की तुलना करने पर देखा जा सकता है कि आयकर रिटर्न में लगातार बढ़ोतरी हुई है. किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए सिर्फ नोटबंदी को श्रेय नहीं दिया जा सकता है. सरकार द्वारा कर भुगतान की प्रक्रिया को सरल करना और कर संशोधन संबंधि फैसले भी इसे प्रभावित करते हैं.

5. भुगतान के डिजटलीकरण को बढ़ावा

सरकार ने नोटबंदी के बाद भीम ऐप लांच कर अपनी मंशा साफ कर दी थी. डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी कर सरकार लेन-देन में ज्यादा पारदर्शिता और काले धन के प्रसार पर रोक लगाना चाहती थी. और आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद से ही डिजिटल लेनदेनों में बढ़ोतरी हुई है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा यूपीआई और डेबिट कार्ड का है.

नोटबंदी अपने तय उद्देश्यों को पूरा करने में खासा सफल नहीं रहा है, लेकिन इसने काले धन पर कुछ हद तक लगाम लगाई है. क्या इस उद्देश्य को करोड़ों आम आदमी के जीवन और आजिविका को प्रभावित करने की कीमत पर हासिल किया जाना चाहिए था, यह आज भी एक सवाल बना हुआ है.
ये भी पढ़ें: आठ नवंबर: आज ही के दिन तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था नोटबंदी का ऐलान

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हैदराबाद : 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक ऐलान किया. 500 और 1000 रुपये के नोट के विमुद्रीकरण यानि नोटबंदी का. जिसने पूरे देश को एक झटके में बैंकों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया. आज तीन साल बाद भी इसके लागू करने के तरीके और प्रभाव की व्यापकता पर बहस जारी है. आइए जानते हैं नोटबंदी अपने घोषित उद्देश्यों में कितना सफल साबित हुआ.





सरकार ने प्रारंभिक तौर पर विमुद्रीकरण के पांच मुख्य उद्देश्य बताए थे

1. काले धन को बाहर निकालना

2. नकली नोट को चलन से हटाना

3. आतंकवाद और नक्सल का वित्त पोषण रोकना

4. टैक्स कलेक्शन में वृद्धि

5. भुगतान के डिजटलीकरण को बढ़ावा



1. काले धन को बाहर निकालना

नोटबंदी के समय सरकार का दावा था कि यह कालेधन पर बड़ा हमला साबित होगी, किंतु आरबीआई ने अपनी 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि नोटबंदी के बाद तकरीबन 99.3 फीसदी पुराने 500 और 1000 रुपये के नोट बैंकों में वापस जमा कर दिए गए और मात्र 10,720 करोड़ रुपये के पुराने नोट बैंकों के पास लौट कर नहीं आए. जिससे यह कालेधन पर लगाम लगाने के अपने उद्देश्य में सफल साबित होती नहीं दिखी. हालांकि सरकार का कहना है कि सिर्फ बैंक में वापस आ जाने से कालेधन धारक मुक्त नहीं हो जाएंगे. वापस आए हर छोटी बड़ी राशि की जांच की जा रही है.

2. नकली नोट को चलन से हटाना

सरकार ने 500 और 2,000 रुपये मूल्य के नए नोट जारी करते समय उसके तमाम सुरक्षा फीचर्स बताते हुए कहा था कि यह नोट जाली करना इतना आसान नहीं होगा. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 2016 के मुकाबले 2017 में नकली नोटों की दर्ज घटनाओं में तकरीबन 20 फीसदी की कमी आई. लेकिन देश के विभिन्न क्षेत्रों से बरामद नकली नोटों से पता चलता है कि इन नए नोटों की भी जाली कॉपी आज बाजार में चलन में हैं.

3. आतंकवाद और नक्सल का वित्त पोषण रोकना

क्या विमुद्रीकरण ने वास्तव में आतंकवाद के वित्तपोषण और आतंकवादी हमलों पर रोक लगाया? आंकड़ों के मुताबिक केवल कश्मीर में आतंकवादी हमले वास्तव में विमुद्रीकरण के बाद बढ़ गए हैं. 2016 में, 322 आतंकवादी घटनाएं हुईं, जबकि 2017 में ये बढ़कर 342 हो गई. हालांकि सरकार की तरफ से अभी तक आतंकवाद के वित्तपोषण को लेकर कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं दिया गया है. इसलिए आतंकवाद पर विमुद्रीकरण का कोई भी प्रभाव नही देखा जा रहा है.

4. टैक्स कलेक्शन में वृद्धि

नोटबंदी के बाद के सालों की तुलना करने पर देखा जा सकता है कि आयकर रिटर्न में लगातार बढ़ोतरी हुई है. किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए सिर्फ नोटबंदी को श्रेय नहीं दिया जा सकता है. सरकार द्वारा कर भुगतान की प्रक्रिया को सरल करना और कर संशोधन संबंधि फैसले भी इसे प्रभावित करते हैं.

5. भुगतान के डिजटलीकरण को बढ़ावा

सरकार ने नोटबंदी के बाद भीम ऐप लांच कर अपनी मंशा साफ कर दी थी. डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी कर सरकार लेन-देन में ज्यादा पारदर्शिता और काले धन के प्रसार पर रोक लगाना चाहती थी. और आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद से ही डिजिटल लेनदेनों में बढ़ोतरी हुई है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा यूपीआई और डेबिट कार्ड का है.





नोटबंदी अपने तय उद्देश्यों को पूरा करने में खासा सफल नहीं रहा है, लेकिन इसने काले धन पर कुछ हद तक लगाम लगाई है. क्या इस उद्देश्य को करोड़ों आम आदमी के जीवन और आजिविका को प्रभावित करने की कीमत पर हासिल किया जाना चाहिए था, यह आज भी एक सवाल बना हुआ है.




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