कोंडागांव: बस्तर का नाम लेते ही जेहन में नक्सलवाद और विकास की रफ्तार में पिछड़े इलाके की तस्वीर सामने आती है. वहीं एक किसान की ओर से बस्तर के दामन पर लगे इस दाग को धोने और इसकी असली चमकदार पहचान को दुनिया में कायम करने की कोशिश की जा रही है.
ये हैं किसान डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी, जिन्हें सफेद मुसली किंग के नाम से जाना जाता है. त्रिपाठी सफेद मुसली के साथ ही काली मिर्च की फसल बस्तर में सफलता पूर्वक उगा रहे हैं. राजाराम त्रिपाठी कहते हैं कि अगर इस दिशा में और ज्यादा प्रशासनिक मदद मिले तो अंचल के किसानों के लिए यह फसल गेम चेंजर साबित हो सकती है.
सरकारी नौकरी छोड़ कर रहे हैं काली मिर्च खेती
सरकारी नौकरी छोड़ किसानी का रुख करने वाले राजाराम त्रिपाठी ने पहले सफेद मुसली की व्यापक पैमाने में खेती की और इसके बाद उन्होंने काली मिर्च की ओर रुख किया. इस बात पर आप शायद ही भरोसा करें लेकिन यह सच है कि केरल सहित तटवर्ती इलाकों में होने वाली कालीमिर्च बस्तर में भी पैदा की जा रही है.
बस्तर में काली मिर्च की खेती
ईटीवी भारत की टीम जब कोंडागांव में राजाराम त्रिपाठी के फार्महाउस पहुंची तो यहां का नजारा देखने लायक था. यहां ऑस्ट्रेलियन टिक के बड़े-बड़े पेड़ों पर काली मिर्च की लहलहाती लताएं देखकर हम दंग रह गए. त्रिपाठी बताते हैं कि 'बस्तर की जलवायु इसके लिए मुफीद होने के कारण बिना रासायनिक खाद के इस्तेमाल के ही मसालों की रानी कही जानी वाली काली मिर्च की बंपर फसल ली जा रही है. बस्तर की कालीमिर्च भारत के तटीय इलाकों में उगने वाली काली मिर्च से गुणवत्ता में कमतर हो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. बल्कि यहां उगाई जाने वाली कालीमिर्च की गुणवत्ता देखकर तो केरल के किसान भी दंग रह जाते हैं.
किसानों की बदल सकती है किस्मत
इस फसल से कैसे किसान की आर्थिक स्थिति में बदलाव आ सकता है और हम देश का धन विदेश जाने से रोक सकते हैं. यह समाझते हुए इसके किसान बताते हैं कि काली मिर्च और ऑस्ट्रेलियन टिक का गठजोड़ किसानों को ना सिर्फ मालामाल कर सकता है. बल्कि इमरती लकड़ी खरीदने के लिए हर साल हजारों करोड़ रुपए जो विदेश जा रहा है उसे भी रोका जा सकता है.
700 लोगों को दिया रोजगार
राजाराम त्रिपाठी की संस्था मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म बस्तर के अलग-अलग इलाकों में करीब 1100 एकड़ जमीन पर काली मिर्च, सफेद मुसली, स्टीविया, अश्वगंधा, हल्दी, शहद, ग्रीन टी जैसी कई फसलें ले रही है. इसके अलावा इस संस्था की ओर से कई दुर्लभ जड़ी बुटियों का संरक्षण भी किया जा रहा है. करीब 700 लोग नियमित रूप से इनके खेतों में काम कर रहे हैं साथ ही नई-नई फसलों के बारे में प्रशिक्षण ले रहे हैं. उनके इस प्रयास से नक्सल प्रभावित बस्तर के सैकड़ों लोगों के जीवन में बदलाव आया है.