नई दिल्ली : पेट्रोलियम क्षेत्र से केंद्र सरकार के राजस्व संग्रह में पिछले वित्त वर्ष में 45 फीसदी से अधिक की तेज उछाल दर्ज की गई है. क्योंकि मार्च के अंत में पेट्रोल की खुदरा कीमतें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 90 रुपये प्रति लीटर और डीजल के लिए 81 रुपये प्रति लीटर के उच्च स्तर पर पहुंच गईं थी.
16 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 101.54 रुपये प्रति लीटर और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 107.54 रुपये प्रति लीटर थी. दिल्ली में डीजल की कीमत 89.87 रुपये प्रति लीटर और मुंबई में 97.45 रुपये प्रति लीटर थी.अगर केंद्र की कुल कमाई पर नजर डालें, जिसमें कॉरपोरेट टैक्स, डिविडेंड इनकम, डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स और ऑयल एंड गैस एक्सप्लोरेशन से होने वाली कमाई भी शामिल है, तो यह रकम पिछले साल 4,53,812 करोड़ रुपये थी.
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यह 2019-20 में 3.34 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 4.54 लाख करोड़ रुपये हो गई, जो 1.19 लाख करोड़ रुपये या लगभग 36 फीसदी से अधिक की वृद्धि है. यदि देखा जाय तो कुल कर संग्रह का लगभग 90 फीसदी और कुल राजस्व का लगभग 82 फीसदी है. वहीं पिछले साल केंद्र ने पेट्रोल पर 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर दो चरणों में 16 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया था. इससे पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 30.40 रुपये प्रति लीटर हो गया वहीं बुनियादी विकास उपकर 2.50 रुपये प्रति लीटर के साथ पेट्रोल पर केंद्र का कर 32.90 रुपये प्रति लीटर आता है.
वहीं डीजल पर उत्पाद शुल्क 27.80 रुपये प्रति लीटर और कृषि और बुनियादी विकास उपकर 4 रुपये प्रति लीटर है, जिससे डीजल के लिए यह शुल्क 31.80 प्रति लीटर है. 2014 में, जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी उस समय पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9.48 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 3.56 रुपये प्रति लीटर था. लेकिन उत्पाद शुल्क में बढ़ोत्तरी के कारण उत्पाद शुल्क संग्रह 2019-20 में 2.23 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 3.71 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया. इस प्रकार केवल एक वर्ष में 66 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई.
केंद्र के राजस्व में 230 फीसदी की बढ़ोतरी
2014-15 में केंद्र में एनडीए सरकार सत्ता में आई थी उस समय पेट्रोलियम क्षेत्र से केंद्र का कुल राजस्व संग्रह 1,26,025 लाख करोड़ रुपये था. लेकिन छह साल में इसमें 2.92 लाख करोड़ यानी 230 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ. यदि आबकारी संग्रह में वृद्धि को देखा जाए तो इसी अवधि के दौरान उत्पाद शुल्क संग्रह 99,068 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,71,726 करोड़ रुपये हो गया. केंद्र का कुल संग्रह जिसमें राजस्व, लाभांश, कर और अन्य आय शामिल थे, यह वित्त वर्ष 2014-15 में 1,72,065 करोड़ रुपये से बढ़कर 4,53,812 करोड़ रुपये हो गया, जो 2.81 लाख करोड़ रुपये या 163 फीसदी से अधिक की वृद्धि है. हालांकि, इसी अवधि के दौरान, केंद्र की लाभांश और आयकर आय 46,000 करोड़ रुपये से घटकर 35,000 करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक हो गई.
राज्यों के पेट्रोलियम राजस्व में आई थी गिरावट
हालांकि पिछले साल पेट्रोलियम क्षेत्र से केंद्र के राजस्व संग्रह में 45 फीसदी की तेज उछाल आई थी, लेकिन राज्यों के मामले में यह 2,20,841 करोड़ रुपये से घटकर 2,17,271 करोड़ रुपये हो गया, जिससे 3,570 करोड़ रुपये की गिरावट थी. पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री पर बिक्री कर या वैट पेट्रोलियम क्षेत्र से राज्यों के राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा है. वित्त वर्ष 2020-21 में, राज्यों ने वैट में जहां 202,937 करोड़ रुपये कमाए, वहीं वित्त वर्ष 2019-20 में वैट संग्रह का आंकड़ा 2,00,493 करोड़ रुपये था. इसी प्रकार राज्यों को कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस पर भी रॉयल्टी मिलती है जो पिछले साल 7,179 करोड़ रुपये थी.