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दिल्ली दुग्ध योजना के लिए मिली बोलियां आरक्षित मूल्य से भी कम

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि सरकार घाटे में चल रही इस इकाई को उबारने के लिये अब वैकल्पिक योजनाओं पर विचार कर रही है.

दिल्ली दुग्ध योजना के लिए मिली बोलियां आरक्षित मूल्य से भी कम
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Published : May 29, 2019, 6:13 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी में दूध की आपूर्ति करने वाली सरकारी इकाई दिल्ली दुग्ध योजना (डीएमएस) को दीर्घकालिक पट्टे पर हासिल करने के लिए सहकारी संगठनों अमूल और नंदिनी की ओर से लगायी गयी बोलियां आरक्षित मूल्य से भी नीचे की मिलीं हैं.

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि सरकार घाटे में चल रही इस इकाई को उबारने के लिये अब वैकल्पिक योजनाओं पर विचार कर रही है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2015 में डीएमएस को कंपनी का रूप देने के प्रस्ताव मंजूर किया था. इसके लिए इच्छुक इकाइयों से बोलियां आमंत्रित की गयी थी.

ये भी पढ़ें- भारतीय उड़ानों के लिए 14 जून तक हवाई क्षेत्र बंद रखेगा पाक

अधिकारी ने बताया कि इसमें दो सहाकारी फर्मों अमूल और कर्नाटक की नंदिनी से ही बोलियां मिली थी. लेकिन दोनों की बोलियां आरक्षित मूल्य से कम हैं. हालांकि, अधिकारी ने इन बोलियों का मूल्य नहीं बताया. वर्ष 1959 में स्थापित डीएमएस दिल्ली और अन्य राज्यों से दूध खरीद कर प्रतिदिन वितरण के लिए पांच लाख लीटर दूध तैयार करने और उसकी पैकेजिंग की क्षमता रखती है.

दिल्ली-एनसीआर में इसके 1298 दुग्ध वितरण केंद्र हैं. डीएमएस में 800 कर्मचारी हैं. यह दही, घी, मक्खन, पनीर जैसे उत्पाद का कारोबार भी करती है. अधिकारी ने कहा कि "डीएमएस को किसी सहाकारी कंपनी को बेचने का प्रयास दुर्भाग्य से सफल नहीं हुआ. हमें जो बोलियां मिलीं वे आरक्षित कीमत से इतनी कम रहीं कि उन पर बात भी नहीं की जा सकती थी."

अधिकारी ने डीएमएस के पुनरूत्थान की जरूरत पर जोर देते हुये कहा कि इसके लिये दूसरे विकल्पों पर विचार की जरूरत है और इस मामले में मंत्रिमंडल निर्णय लेगा.

नई दिल्ली: राजधानी में दूध की आपूर्ति करने वाली सरकारी इकाई दिल्ली दुग्ध योजना (डीएमएस) को दीर्घकालिक पट्टे पर हासिल करने के लिए सहकारी संगठनों अमूल और नंदिनी की ओर से लगायी गयी बोलियां आरक्षित मूल्य से भी नीचे की मिलीं हैं.

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि सरकार घाटे में चल रही इस इकाई को उबारने के लिये अब वैकल्पिक योजनाओं पर विचार कर रही है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2015 में डीएमएस को कंपनी का रूप देने के प्रस्ताव मंजूर किया था. इसके लिए इच्छुक इकाइयों से बोलियां आमंत्रित की गयी थी.

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अधिकारी ने बताया कि इसमें दो सहाकारी फर्मों अमूल और कर्नाटक की नंदिनी से ही बोलियां मिली थी. लेकिन दोनों की बोलियां आरक्षित मूल्य से कम हैं. हालांकि, अधिकारी ने इन बोलियों का मूल्य नहीं बताया. वर्ष 1959 में स्थापित डीएमएस दिल्ली और अन्य राज्यों से दूध खरीद कर प्रतिदिन वितरण के लिए पांच लाख लीटर दूध तैयार करने और उसकी पैकेजिंग की क्षमता रखती है.

दिल्ली-एनसीआर में इसके 1298 दुग्ध वितरण केंद्र हैं. डीएमएस में 800 कर्मचारी हैं. यह दही, घी, मक्खन, पनीर जैसे उत्पाद का कारोबार भी करती है. अधिकारी ने कहा कि "डीएमएस को किसी सहाकारी कंपनी को बेचने का प्रयास दुर्भाग्य से सफल नहीं हुआ. हमें जो बोलियां मिलीं वे आरक्षित कीमत से इतनी कम रहीं कि उन पर बात भी नहीं की जा सकती थी."

अधिकारी ने डीएमएस के पुनरूत्थान की जरूरत पर जोर देते हुये कहा कि इसके लिये दूसरे विकल्पों पर विचार की जरूरत है और इस मामले में मंत्रिमंडल निर्णय लेगा.

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दिल्ली दुग्ध योजना के लिए मिली बोलियां आरक्षित मूल्य से भी कम

नई दिल्ली: राजधानी में दूध की आपूर्ति करने वाली सरकारी इकाई दिल्ली दुग्ध योजना (डीएमएस) को दीर्घकालिक पट्टे पर हासिल करने के लिए सहकारी संगठनों अमूल और नंदिनी की ओर से लगायी गयी बोलियां आरक्षित मूल्य से भी नीचे की मिलीं हैं. 

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि सरकार घाटे में चल रही इस इकाई को उबारने के लिये अब वैकल्पिक योजनाओं पर विचार कर रही है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2015 में डीएमएस को कंपनी का रूप देने के प्रस्ताव मंजूर किया था. इसके लिए इच्छुक इकाइयों से बोलियां आमंत्रित की गयी थी. 

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अधिकारी ने बताया कि इसमें दो सहाकारी फर्मों अमूल और कर्नाटक की नंदिनी से ही बोलियां मिली थी. लेकिन दोनों की बोलियां आरक्षित मूल्य से कम हैं. हालांकि, अधिकारी ने इन बोलियों का मूल्य नहीं बताया. वर्ष 1959 में स्थापित डीएमएस दिल्ली और अन्य राज्यों से दूध खरीद कर प्रतिदिन वितरण के लिए पांच लाख लीटर दूध तैयार करने और उसकी पैकेजिंग की क्षमता रखती है. 

दिल्ली-एनसीआर में इसके 1298 दुग्ध वितरण केंद्र हैं. डीएमएस में 800 कर्मचारी हैं. यह दही, घी, मक्खन, पनीर जैसे उत्पाद का कारोबार भी करती है. अधिकारी ने कहा कि "डीएमएस को किसी सहाकारी कंपनी को बेचने का प्रयास दुर्भाग्य से सफल नहीं हुआ. हमें जो बोलियां मिलीं वे आरक्षित कीमत से इतनी कम रहीं कि उन पर बात भी नहीं की जा सकती थी." 

अधिकारी ने डीएमएस के पुनरूत्थान की जरूरत पर जोर देते हुये कहा कि इसके लिये दूसरे विकल्पों पर विचार की जरूरत है और इस मामले में मंत्रिमंडल निर्णय लेगा.


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