इंदौर: देश में बैट्री चालित बसों को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त बुनियादी ढांचा विकसित किये जाने की जरूरत पर जोर देते हुए बस संचालकों के महासंघ ने मंगलवार को अनुमान जताया कि फिलहाल 19 लाख बसें सड़कों पर हैं जिनमें से 90 प्रतिशत वाहन डीजल के पारंपरिक ईंधन से ही दौड़ रहे हैं.
बस ऑपरेटर्स कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीओसीआई) के अध्यक्ष प्रसन्ना पटवर्धन ने बताया, "हमारे अनुमान के मुताबिक देश में अभी तकरीबन 19 लाख बसें दौड़ रही हैं जिनमें सरकारी क्षेत्र की 1.5 लाख बसें शामिल हैं. इनमें से 90 प्रतिशत बसें डीजल इंजन वाली हैं, जबकि बिजली से चलने वाली बसों की तादाद बहुत कम है."
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उन्होंने बताया कि मुंबई, कोलकाता और पुणे समेत कोई 10 शहरों में बिजली से चलने वाली करीब 500 बसों का स्थानीय लोक परिवहन में पायलट परियोजना के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है.
पटवर्धन ने कहा, "देश में बिजली से चलने वाले वाहनों को लेकर हालांकि, जागरूकता काफी बढ़ गयी है. लेकिन इन वाहनों के लिये पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है. देश भर में बड़ी तादाद में ऐसे चार्जिंग स्टेशन बनाये जाने चाहिये, जहां खासकर रात के वक्त बसों को बिजली से चार्ज किया जा सके."
लम्बी दूरी के गंतव्यों के लिये ई-बसों के परिचालन में अभी अन्य व्यावहारिक बाधाएं भी हैं. बीओसीआई अध्यक्ष ने बताया, "अव्वल तो देश में मौजूद तकनीकी ऐसी है जिससे ई-बसों की बैटरी चार्ज करने में लम्बा समय लगता है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार पूरी तरह बैटरी चार्ज करने के बावजूद ई-बस अधिकतम 150 किलोमीटर तक ही चल पाती है."
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पटवर्धन ने कहा, "इन हालात के मद्देनजर हमारी मजबूरी है कि हमें आने वाले कुछ सालों तक अधिकांश बसों को चलाने के लिये डीजल के पारंपरिक ईंधन का ही इस्तेमाल करना पड़ेगा. हालांकि, हमें उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक ई-बसों की तकनीक और इनके लिये देश में मौजूद बुनियादी ढांचे की स्थिति में काफी सुधार आयेगा."
गौरतलब है कि इलेक्ट्रिक एवं हाइब्रिड वाहनों के विनिर्माण और इन्हें अपनाये जाने की गति बढ़ाने के मकसद से शुरू किये गये कार्यक्रम "फेम इंडिया स्कीम" के दूसरे चरण (फेम-2) के तहत सरकार ने ई-बसों के लिये 3,545 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. इस रकम से वित्तीय प्रोत्साहन के जरिये सरकार 7,090 ई-बसों को सड़कों पर उतारने में मदद करना चाहती है.