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92 एकड़ की भलस्वा झील अब मात्र 35 एकड़ में सिमटी, ना सरकार को फिक्र है ना प्रशासन को! - polluted lake

92 एकड़ की प्राकृतिक झील कही जाने वाली भलस्वा झील की स्थिति काफी दयनीय है. झील के प्रदूषित होने की वजह से यहां पर अब कोई आना नहीं चाहता है.

भलस्वा झील
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Published : Jun 28, 2019, 11:36 PM IST

नई दिल्ली: भलस्वा डेरी इलाके में फैली 92 एकड़ की प्राकृतिक झील आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. इलाके की गंदगी और कूड़ा डाले जाने की वजह से 92 एकड़ की झील मात्र 35 एकड़ में ही रह गयी है. इस झील के अंदर भलस्वा डेरी इलाके का कूड़ा और मलवा लगातार डाला जा रहा है.


इस समस्या के लेकर दिल्ली टूरिज्म और डीडीए विभाग द्वारा कई बार दिल्ली पुलिस से शिकायत भी की गई लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ. इस बारे में कई बार संबंधित विभाग भी झील का दौरा कर चुके हैं लेकिन अभी तक कुछ हल नहीं निकाला जा सका.

भलस्वा झील का है बुरा हाल

डेरी की डाली जाती है गंदगी
स्थानीय लोगों का आरोप है कि भलस्वा झील में भैंसों की डेरी का मल मूत्र पिछले कई सालों से लगातार डाला जा रहा है. इसको डालने के लिए स्थानीय डेरी मालिक काफी हद तक जिम्मेदार है. इन लोगों ने अपनी भैंसों का मल मूत्र डालने के लिए झील की बाहरी दीवार को भी तोड़ दिया है जिससे गंदगी झील में डाली जा सके, झील में काम करने वाले कर्मचारियों ने इसकी शिकायत कई बार अपने शीर्ष अधिकारियों से भी की लेकिन इसका आज तक कोई हल नहीं निकल सका है. डीडीए विभाग और दिल्ली टूरिज्म विभाग कई बार स्थानीय पुलिस से भी शिकायत कर चुका है लेकिन हालात जस के तस हैं.

झील का इतिहास
यह झील पहली बार साल 1982 में अस्तित्व में आई थी. उस समय दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन किया गया था और इस झील के अंदर भी कई खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. उसके बाद से यह झील लगातार खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करती आ रही है और कई नेशनल लेवल की प्रतियोगिताएं इस झील में आयोजित की जा चुकी हैं. जैसे-जैसे समय बीतता गया झील का क्षेत्रफल लगातार घटता गया. काफी समय पहले इस झील का क्षेत्रफल भलस्वा से लेकर शालीमार बाग और हैदरपुर तक होता था लेकिन आसपास कॉलोनिया बसने की वजह से यह झील 92 एकड़ से लेकर मात्र 25 एकड़ में सिमट कर रह गई.

दूषित हो गई है झील
बोटिंग क्लब के कोच का और यहां सीखने आने वाले छात्रों का आरोप है कि इलाके के लोग झील को बहुत गंदा कर रहे हैं. ज्यादा गोबर डाले जाने से झील में दलदल हो गई है और इसका पानी भी काफी दूषित हो गया है. पहले यहां पर काफी खिलाड़ी प्रतियोगिता के लिए आते थे लेकिन प्रदूषित होने की वजह से यहां पर अब कोई आना नहीं चाहता.

'कई बार कटे है चालान'
भलस्वा इलाके से स्थानीय निगम पार्षद विजय कुमार भगत का कहना है कि कई बार अधिकारियों का दौरा हो चुके हैं. यह झील दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत नहीं आती. इस झील पर पूरा अधिकार दिल्ली सरकार और डीडीए विभाग का है. झील को गंदा करने के एवज में इलाके के लोगों का कई बार चालान भी काटा गया है.

नई दिल्ली: भलस्वा डेरी इलाके में फैली 92 एकड़ की प्राकृतिक झील आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. इलाके की गंदगी और कूड़ा डाले जाने की वजह से 92 एकड़ की झील मात्र 35 एकड़ में ही रह गयी है. इस झील के अंदर भलस्वा डेरी इलाके का कूड़ा और मलवा लगातार डाला जा रहा है.


इस समस्या के लेकर दिल्ली टूरिज्म और डीडीए विभाग द्वारा कई बार दिल्ली पुलिस से शिकायत भी की गई लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ. इस बारे में कई बार संबंधित विभाग भी झील का दौरा कर चुके हैं लेकिन अभी तक कुछ हल नहीं निकाला जा सका.

भलस्वा झील का है बुरा हाल

डेरी की डाली जाती है गंदगी
स्थानीय लोगों का आरोप है कि भलस्वा झील में भैंसों की डेरी का मल मूत्र पिछले कई सालों से लगातार डाला जा रहा है. इसको डालने के लिए स्थानीय डेरी मालिक काफी हद तक जिम्मेदार है. इन लोगों ने अपनी भैंसों का मल मूत्र डालने के लिए झील की बाहरी दीवार को भी तोड़ दिया है जिससे गंदगी झील में डाली जा सके, झील में काम करने वाले कर्मचारियों ने इसकी शिकायत कई बार अपने शीर्ष अधिकारियों से भी की लेकिन इसका आज तक कोई हल नहीं निकल सका है. डीडीए विभाग और दिल्ली टूरिज्म विभाग कई बार स्थानीय पुलिस से भी शिकायत कर चुका है लेकिन हालात जस के तस हैं.

झील का इतिहास
यह झील पहली बार साल 1982 में अस्तित्व में आई थी. उस समय दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन किया गया था और इस झील के अंदर भी कई खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. उसके बाद से यह झील लगातार खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करती आ रही है और कई नेशनल लेवल की प्रतियोगिताएं इस झील में आयोजित की जा चुकी हैं. जैसे-जैसे समय बीतता गया झील का क्षेत्रफल लगातार घटता गया. काफी समय पहले इस झील का क्षेत्रफल भलस्वा से लेकर शालीमार बाग और हैदरपुर तक होता था लेकिन आसपास कॉलोनिया बसने की वजह से यह झील 92 एकड़ से लेकर मात्र 25 एकड़ में सिमट कर रह गई.

दूषित हो गई है झील
बोटिंग क्लब के कोच का और यहां सीखने आने वाले छात्रों का आरोप है कि इलाके के लोग झील को बहुत गंदा कर रहे हैं. ज्यादा गोबर डाले जाने से झील में दलदल हो गई है और इसका पानी भी काफी दूषित हो गया है. पहले यहां पर काफी खिलाड़ी प्रतियोगिता के लिए आते थे लेकिन प्रदूषित होने की वजह से यहां पर अब कोई आना नहीं चाहता.

'कई बार कटे है चालान'
भलस्वा इलाके से स्थानीय निगम पार्षद विजय कुमार भगत का कहना है कि कई बार अधिकारियों का दौरा हो चुके हैं. यह झील दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत नहीं आती. इस झील पर पूरा अधिकार दिल्ली सरकार और डीडीए विभाग का है. झील को गंदा करने के एवज में इलाके के लोगों का कई बार चालान भी काटा गया है.

Intro:स्पेशल स्टोरी ।

नार्थ वेस्ट दिल्ली,

लोकेशन -- भलस्वा डेरी ।

बाईट -- स्थानीय निगम पार्षद विजय कुमार भगत, बोट क्लब कोच और स्थानीय निवासी ।

स्टोरी -- दिल्ली भलस्वा डेरी इलाके में फैली 92 एकड़ की प्राकृतिक झील आज अपने अस्तित्व की लड़ाई अधिकारियों और इलाके के लोगों से लड़ रही है । इलाके की गंदगी और कूड़ा डाले जाने की वजह से सिमट कर रह गई है मात्र 35 एकड़ में ही रह गयी है । इस झील के अंदर भलस्वा डेरी इलाके का कूड़ा और मलवा लगातार डाला जा रहा है । जिसको लेकर दिल्ली टूरिज्म और डीडीए विभाग द्वारा कई बार दिल्ली पुलिस से शिकायत भी की गई लेकिन स्थानीय लोगों पर उसका भी कोई असर नहीं है । इस बारे में कई बार संबंधित विभाग भी झील का दौरा कर चुके हैं लेकिन अभी तक कुछ हल नहीं निकाला जा सका ।
Body:स्थानीय लोगों का आरोप है कि भलस्वा झील में भलस्वा इलाके में भैंसों की डेरी का मल मूत्र पिछले कई सालों से लगातार डाला जा रहा है । इसको डालने के लिए स्थानीय डेरी मालिक काफी हद तक जिम्मेदार है । इन लोगों ने अपनी भैंसों का मल मूत्र डालने के लिए झील की बाहरी दीवार को भी तोड़ दिया है । जिससे भैंस डेरी की गंदगी झील में डाली जा सके, झील में काम करने वाले कर्मचारियों ने इसकी शिकायत कई बार अपने शीर्ष अधिकारियों से भी की । लेकिन इसका आज तक कोई हल नहीं निकल सका है । डीडीए विभाग और दिल्ली टूरिज्म विभाग कई बार स्थानीय पुलिस से भी शिकायत कर चुका है लेकिन हालात जस के तस हैं ।

यह झील पहली बार साल 1982 में अस्तित्व में आई थी । उस समय दिल्ली में एशियाई खेलों का आयोजन किया गया था और इस झील के अंदर भी कई खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया ।उसके बाद से यह झील लगातार खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करती आ रही है और कई नेशनल लेवल की प्रतियोगिताएं इस झील में आयोजित की जा चुकी हैं ।जैसे-जैसे समय बीतता गया झील का क्षेत्रफल लगातार घटता गया काफी समय पहले इस झील का क्षेत्रफल
भलस्वा से लेकर शालीमार बाग और हैदरपुर तक होता था लेकिन आसपास कालोनिया बसने की वजह से यह झील 92 एकड़ से लेकर मात्र 25 एकड़ में सिमट कर रह गई ।

बोटिंग क्लब के कोच का और यहां सीखने आने वाले छात्रों का आरोप है कि इलाके के लोग झील को बहुत गंदा कर रहे हैं । ज्यादा गोबर डाल आ जाने से झील में दलदल हो गई है और इसका पानी भी काफी दूषित हो गया है । पहले यहां पर काफी खिलाड़ी प्रतियोगिता के लिए आते थे लेकिन प्रदूषित होने की वजह से यहां पर अब कोई आना नहीं चाहता । पहले इस झील में नेशनल लेवल की कई बड़ी प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी लेकिन अब क्षेत्रीय लेवल पर भी प्रतियोगिता आयोजित करने के बारे में सोचा जाता है । यदि प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए तो खिलाड़ी भी आने से कतराते हैं ।
भलस्वा इलाके से स्थानीय निगम पार्षद विजय कुमार भगत का कहना है कि कई बार अधिकारियों का दौरा हो चुके हैं । यह झील दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत नहीं आती । इस झील पर पूरा अधिकार दिल्ली सरकार और डीडीए विभाग का है । झील को गंदा करने की एवज में इलाके के लोगों का कई बार चालान भी काटा गया है । खुद मैंने डीडीए के द्वारा इस झील की बाहरी दीवार को बनवाया है लेकिन उसके बावजूद भी यह लोग नीचे से दीवार तोड़कर झील को गंदा करने का काम लगातार कर रहे हैं ।

Conclusion:भलस्वा झील पर पहले भी कई बार अधिकारियों के दौरे हुए हैं कई समस्याओं को लेकर अधिकारियों को अवगत कराया गया लेकिन स्थानीय समस्याओं की वजह से अधिकारी भी कई बार अपने हाथ खड़े कर चुके हैं । इस बार स्थानीय निगम पार्षद का दावा है कि डेरी मालिकों के चालान भी काटे गए हैं लेकिन लगता नहीं कि सरकार इस झील का अस्तित्व बचाने में सफल हो पाएगी क्योंकि जब तक डेरी इलाके में रहेगी और भैंसों का अपशिष्ट पदार्थ झील में डाला जाएगा तो झील की खूबसूरती को दागदार भैस मालिकों द्वारा किया जाता रहेगा ।
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