नई दिल्ली: यमुनापार के बड़े सरकारी अस्पताल गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) में बेहद खर्चीले इंडोवेस्कुलर ट्रीटमेंट की शुरुआत की गई है. ये हाईटेक ट्रीटमेंट करने वाला जीटीबी दिल्ली का ऐसा तीसरा अस्पताल है और फ्री में ट्रीटमेंट देने वाला पहला अस्पताल. आने वाले समय में इस मशीन से किये जाने वाले इलाज का दायरा बढ़ाया जाएगा.
दिल्ली सरकार मरीजों के इलाज के लिए अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल अपने अस्पतालों में कर रही है. इसी कड़ी में दिल्ली सरकार के बड़े अस्पतालों में शुमार जीटीबी अस्पताल में गंभीर मरीजों के लिए एंडो वैस्कुलर ट्रीटमेंट के लिए दो डिजिटल सब्स्ट्रेक्शन एंजियोग्राफी (डीएसए) मशीनें लगाई गई हैं. फिलहाल इस मशीन की मदद से मस्तिष्क से संबंधित मरीजों का ट्रीटमेंट किया जा रहा है ताकि मरीज को होने वाली किसी बड़ी अनहोनी को टाला जा सके.
सिर्फ 3 अस्पतालों में है ये मशीन
मेडिकल डायरेक्टर डॉ.सुनील कुमार ने बताया कि मौजूदा समय में ये मशीन केवल एम्स और जीबी पंत अस्पताल में ही मौजूद है. तीसरी मशीन जीटीबी अस्पताल में लगाई गई है. उन्होंने बताया कि एम्स और जीबी पंत में इस ट्रीटमेंट के लिए मरीज को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. जबकि जीटीबी में इसके लिए कोई खर्चा नहीं होता है.
जीटीबी में इंडोवेस्कुलर ट्रीटमेंट फ्री
बिहार से आई एक महिला मरीज को दस लाख रुपये का खर्चा बताया गया था, जबकि जी.बी. पंत में इस मरीज को एडमिशन नहीं मिला. जिसके बाद मरीज को जीटीबी अस्पताल लाया गया. न्यूरो डिपार्टमेंट के एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम ने इस महिला का सफल ट्रीटमेंट किया और महिला को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
एक करोड़ रुपये की है डीएसए मशीन
डॉ सुनील कुमार ने बताया कि मरीजों के उपचार के लिए इटली से इंपोर्ट की गई इस मशीन की कीमत एक करोड़ रुपए है. लेकिन इस मशीन की जरूरत और मरीजों की संख्या को ध्यान में रखते हुए दो डीएसए मशीनें अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग में लगाई गई हैं. मौजूदा समय में मस्तिष्क का ट्रीटमेंट किया जा रहा है आने वाले समय में शरीर के दूसरे हिस्सों का इलाज भी शुरू कर दिया जाएगा.
डीएसए मशीन का ट्रीटमेंट प्रोसेस
इस मशीन के जरिये मरीज की बड़ी आंत से एक खास किस्म के तार को प्रवेश कराया जाता है, जिसे मस्तिष्क में उस नस तक ले जाया जाता है जिसके फूले होने से फटने की संभावना बनी होती है. तार के उस जगह पहुंचते ही दवाई को डाल कर जांच की जाती है और फिर खास किस्म की तकनीक से उक्त नस को बंद कर दिया जाता है. जिससे उसके फटने के चांस कम हो जाते हैं.