नई दिल्ली : भारत में पहली बार पाए गए कोरोनावायरस स्ट्रेन पर भारत का कलंक जारी है. भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों में 'भारतीय स्ट्रेन' पर लगभग 70 देशों ने गंभीर चिंता जताई थी, इसमें रूस भी शामिल हो गया है.
सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी में नैदानिक और विश्लेषणात्मक कार्य की उप निदेशक (deputy director for clinical and analytical work at the Central Research Institute of Epidemiology) नताल्या पशेनिचनाया (Natalya Pshenichnaya) ने शुक्रवार को एक रूसी समाचार एजेंसी को बताया की हम संक्रमण दर में एक और वृद्धि से बचने में असमर्थ थे, जो कि नोवल कोरोनावायरस प्रसार को रोकने वाले उपायों के लिए बड़े पैमाने पर उपेक्षा के कारण थे.
उन्होंने कहा कि इन उपायों का पालन करना अब विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब भारतीय स्ट्रेन फैल रहा है, और जब रूसी आबादी का सबसे सक्रिय हिस्सा युवा इसे आपस में और अन्य आयु समूहों में देश में फैला रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब तक, तीन मुख्य प्रकारों की पहचान की गई है जिसमें यूके स्ट्रेन, साउथ अफ्रीकन स्ट्रेन और इंडियन स्ट्रेन शामिल हैं.
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हालांकि मार्च में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ग्रीक अक्षरों के साथ कोरोनावायरस के विभिन्न रूपों का नामकरण करने की प्रथा शुरू की थी ताकि इसे मूल देश के साथ जोड़कर कलंक से बचा जा सके. डब्ल्यूएचओ ने यूके स्ट्रेन की अल्फा स्ट्रेन और दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन को बीटा स्ट्रेन के रूप में पहचान बताई थी. जबकि अधिकांश अभी भी इसे 'इंडियन स्ट्रेन' कहते हैं, जबकि बी 1.617.2 वेरिएंट को WHO द्वारा 'डेल्टा' स्ट्रेन नाम दिया गया है. इसे 'वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न' के रूप में लेबल किया गया था, जो 'वेरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट' से एक कदम आगे है. साथ ही यह महत्वपूर्ण ट्रांसमिशन और दुनिया भर में कोरोना के बढ़ते प्रसार को इंगित करता है जिसने भारत और यूके में कहर बरपाया था.
पशेनिचनाया ने बताया कि युवा लोगों सहित कई रूसी, बीमारी के हल्के लक्षणों के साथ या बिल्कुल भी कोई लक्षण नहीं होने के बावजूद, सांस संबंधी लक्षण होने के बावजूद समूहीकरण को जारी रखा. उन्होंने कहा कि जब लोग अधिक यात्रा करते थे तो गर्मी और छुट्टी की अवधि के कारण इसका प्रसार और भी बढ़ जाता था.
उन्होंने कहा कि घातक वायरस के खिलाफ हालांकि सामूहिक प्रतिरक्षा हासिल नहीं हुई थी, लेकिन फिर भी जनता को बहुत आराम दिया गया.