नई दिल्ली : एसबीआई के पूर्व चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि संकटग्रस्त यस बैंक ने पिछले साल भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के नेतृत्व में निवेशकों के चंगुल से बाहर निकलने में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है और इसे स्थिर होने में दो और साल लग सकते हैं.
उन्होंने कहा कि जिस स्थिति में यस बैंक था, आपको उसे स्थिर करने के लिए कम से कम तीन साल का समय देना होगा
'द कस्टोडियन ऑफ ट्रस्ट' नामक अपनी पुस्तक में कुमार ने कहा कि एसबीआई यस बैंक के लिए अंतिम उपाय की भूमिका निभाने के लिए अनिच्छुक था, लेकिन परिस्थितियों ने इसे देश के चौथे सबसे बड़े निजी क्षेत्र के ऋणदाता को बचाने के लिए मजबूर किया.
उन्होंने कहा कि शुरुआत में मुझे विश्वास था कि छह बैंकों के विलय करने के बाद एसबीआई को एक और बैंक को बचाने का काम छोड़ देगा. एसबीआई द्वारा आखिरी बेलआउट (1995 में) काशी नाथ सेठ बैंक, एक परिवार के स्वामित्व वाला बैंक था, उत्तर प्रदेश (यूपी) के कुछ जिलों में काम कर रहा है.
उन्होंने पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया (Penguin Random House India ) द्वारा प्रकाशित पुस्तक में उल्लेख किया है कि वित्तीय प्रणाली पर देश के चौथे सबसे बड़े निजी क्षेत्र के किसी भी व्यापक प्रभाव से बचने के लिए आरबीआई द्वारा 13 मार्च, 2020 तक अन्य निवेशकों को ढूंढने का दबाव था.
उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि जेट एयरवेज के मुद्दे से निपटना देश के सबसे बड़े बैंक के प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान सबसे कठिन कामों में से एक था.
उन्होंने एयरलाइन की समाधान योजना से जुड़े घटनाक्रमों को याद करते हुए लिखा है कि ज्यादातर बैंक जेट एयरवेज के लिए एक समाधान योजना का समर्थन करने से काफी बच रहे थे और यह बदकिस्मती से सफल नहीं हुआ क्योंकि प्रवर्तक निर्धारित जरूरी शर्तों को पूरा नहीं कर पाए.
पढ़ें - जेट एयरवेज की समाधान योजना को मंजूरी से पहले सरकार से समर्थन पत्र चाहते थे : SBI पूर्व चेयरमैन
कुमार ने लिखा है, 'मेरे लिए भी, यह सबसे चुनौतीपूर्ण मामलों में से एक था, यहां तक कि एसबीआई का निदेशक मंडल भी इस मुद्दे पर मेरा समर्थन करने में असहज महसूस कर रहा था. ऐसा नहीं था कि मेरे पास उनका समर्थन या सद्भावना नहीं थी, बल्कि इसकी वजह यह थी कि उन्हें लग रहा था कि इससे बैंक की प्रतिष्ठा पर काफी बड़ा जोखिम पैदा हो रहा था.'
उन्होंने किताब में आगे लिखा है, 'नतीजतन, वे वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) या नागर विमानन मंत्रालय से समर्थन का एक स्पष्ट पत्र हासिल किए बिना इस तरह के फैसले का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे.
मैंने एसबीआई के प्रमुख के अपने दो साल के कार्यकाल में कभी भी ऐसी मुश्किल स्थिति का सामना नहीं किया था, लेकिन मैंने इस अनुभव से काफी कुछ सीखा और यह बाद में यस बैंक के संकट का हल करने में मेरे काम आया.'