पलक्कड़ : यमन की जेल में बंद मलयाली नर्स निमिषा प्रिया को अपनी मौत की सजा से छूट के संबंध में राष्ट्रपति के अंतिम फैसले का इंतजार करना पड़ेगा. यमन की सुप्रीम अदालत ने हत्या के एक मामले में दी गई मौत की सजा के खिलाफ उसकी अपील खारिज कर दी. केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली हाई कोर्ट में यह जानकारी दी गई.
केंद्र सरकार के वकील ने अदालत में मौखिक रूप से बताया कि अब केवल यमन के राष्ट्रपति ही उसकी मौत की सजा से छूट दे सकते हैं. अदालत निमिषा प्रिया की मां प्रेमकुमारी द्वारा यमन जाने की अनुमति मांगने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बता दें कि निमिषा प्रिया और उनका परिवार वर्षों से यमन में था. अपने पति और बेटी के भारत लौटने के बाद भी निमिषा प्रिया को नौकरी की मजबूरी के कारण यमन में ही रहना पड़ा.
उन्होंने बाद में साल 2015 में यमन के एक नागरिक तलाल मेहदी के साथ साझेदारी में एक क्लिनिक शुरू किया. कुछ विवादों के कारण बाद में वे अलग हो गए और निमिषा प्रिया ने आरोप लगाया कि यमन नागरिक ने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया और इस वजह से वह भारत नहीं लौट पाईं. तलाल मेहदी से अपना पासपोर्ट वापस पाने की कोशिश में उसने साल 2017 में उसे नशीले पदार्थ का इंजेक्शन लगा दिया.
लेकिन इस इंजेक्शन से मेहदी की मौत हो गई. 25 जुलाई, 2017 को उसे पता चला कि यमन के नागरिक की मृत्यु हो गई है और फिर उसने शव को ठिकाने लगाने की कोशिश की. लेकिन वह पकड़ी गई और गिरफ्तार कर ली गई. बाद में कोर्ट ने निमिषा प्रिया को मौत की सजा सुनाई. पलक्कड़ के कोल्लेनगोडे की रहने वाली निमिषा प्रिया पिछले 6 साल से यमन की जेल में है.
यमन जाने की अनुमति: जैसे ही यमन सुप्रीम कोर्ट ने निमिषा की अपील खारिज कर दी, प्रेमाकुमारी की ओर से पेश हुए वकील केआर सुभाष चंद्रन ने उच्च न्यायालय से यमन जाने की अनुमति जारी करने की अपील की. इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से याचिकाकर्ता की मांग पर एक हफ्ते के भीतर फैसला लेने को कहा. हाई कोर्ट ने यह भी बताने का निर्देश दिया कि यमन कौन जा रहा है.
अपील की अप्रत्याशित अस्वीकृति: निमिषा प्रिया की मां की प्रतिक्रिया थी कि यह अप्रत्याशित था कि यमन के सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बेटी की अपील खारिज कर दी. उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वह अपनी बेटी को देख सकेंगी. हालांकि केंद्र का कहना है कि केवल यमन के राष्ट्रपति ही मौत की सजा से बचा सकते हैं. प्रेमकुमारी का तर्क है कि अगर मृतक व्यक्ति का परिवार शरिया कानून के अनुसार ब्लड मनी स्वीकार करता है, तो सजा से छूट मिलने की संभावना है.