नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2023 में कई बड़े फैसले सुनाए. इनमें से एक अनुच्छेद 370 पर फैसला देश के लिए बहुत महत्व रखता है. इन फैसलों की वजह से इस साल को याद रखा जाएगा. सरकार का दावा है कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश में आमूल- चूल परिवर्तन हुआ.
1. अनुच्छेद 370: देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जम्म्-कश्मीर के विशेष प्रावधान अनुच्छेद 370 को लेकर बड़ा फैसला सनाया. कोर्ट ने इस मामले में केद्र के फैसले पर मुहर लगा दी. इस फैसले से जम्मू-कश्मीर को लेकर लंबे अरसे से चले आ रहे विवाद पर विराम लग गया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था. अदालत ने कहा कि केंद्र का यह निर्णय संवैधानिक रूप से वैध है. अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य जम्मू- कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था. इसे फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में अगले साल सितंबर में चुनाव कराने के लिए कहा है.
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस इस फैसले के बाद कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मदद मिलेगी. वंचित वर्गों को न्याय प्रदान करने के केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा. उपराज्यपाल ने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को बदलाव का फैसला लिया था. शीर्ष अदालत के फैसले ने लोगों में एक नई आशा पैदा की है. इससे एकता और राष्ट्र की अखंडता की जड़ें और मजबूत होगी.
2. तीन तलाक: सामाजिक व्यवस्था के उत्थान में यह फैसला काफी अहम रहा. इससे सदियों पुरानी कुप्रथा से छुटकारा मिला. केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में ही इसे पास कर दिया था. हालांकि, बाद में कुछ लोगों ने कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सरकार के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि वह विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर विवाह को भंग कर सकती है, साथ ही यह भी कहा कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे दी गई विशेष शक्ति का उपयोग कर सकती है. बता दें कि इस कानून से मुस्लिम महिलाओं के जीवन में भारी बदलाव देखा गया.
3. राहुल गांधी की सदस्यता मामला: मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बड़ी राहत मिली थी. 136 दिनों बाद उनकी संसद की सदस्यता बहाल हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले में सजा पर रोक लगी दी. इसके बाद लोकसभा सचिवावलय ने उनकी सदस्यता को बहाल करने का फैसला लिया था.
इस फैसले से वह फिर से सांसद बन गए. इस फैसले से कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के राजनीतिक करियर के लिए अहम साबित हुआ. पेश मामले में राहुल गांधी में पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता के कथित बयान अच्छे नहीं थे. सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय कुछ हद तक संयम बरतने की अपेक्षा की जाती है.
4. समलैंगिक विवाह: सुप्रीम कोर्ट ने देश में समलैंगिक विवाह को लेकर मचे घमासान पर विराम लगा दिया. समलैंगिक समुदाय की ओर से सामाजिक उत्थान के नाम पर में समलैंगिक विवाह के अधिकार की मांग की थी. कई देशों में समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने के बाद भारत में भी इसकी आवाज उठने लगी थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद इसपर विराम लगा गया.
सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अक्टूबर में लंबी सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में यह 3:2 बहुमत के साथ फैसला सुनाया गया. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया और कहा कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर विवाह का कोई अयोग्य अधिकार नहीं है. संविधान पीठ ने सर्वसम्मत से फैसले में कहा कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
5. महाराष्ट्र सरकार फ्लोर टेस्ट : महाराष्ट्र में एक समय में बड़े स्तर पर राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया था. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को गिरा दिया गया था. उनकी जगह एकनाथ शिंदे की सरकार बनी. एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से अलग होकर सरकार बनाई थी. इस बीच इस्तीफा देने से पहले उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल से विश्वास मत बुलाने के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी.
सुप्रीम की पीठ ने महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे को उनकी पार्टी में संकट के मद्देनजर फ्लोर टेस्ट का सामना करने के फैसले को अनुचित ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने एक राजनीतिक दल और विधायक दल की शक्तियों के बीच अंतर करते हुए कहा कि केवल एक राजनीतिक दल ही सदन में सचेतक और पार्टी के नेता की नियुक्ति कर सकता है.
6. दिल्ली के उपराज्यपाल बनाम आप सरकार: दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से ऐतिहासिक फैसला दिया गया. शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि दिल्ली में नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही नियंत्रण है. इससे साफ हो गया कि नौकरशाहों की ट्रांसफर पोस्टिंग पर दिल्ली सरकार का अधिकार होगा. हालांकि, केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर कोर्ट का फैसला पलट दिया. सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि दिल्ली सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि प्रशासन से संबंधित मामलों को छोड़कर, सेवाओं के प्रबंधन से संबंधित विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं.
7. नोटबंदी: वर्ष 2023 की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की 2016 की नोटबंदी को बरकरार रखा. शीर्ष अदालत ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के केंद्र के फैसलों को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं को 4:1 के बहुमत से खारिज कर दिया.
8. 26 सप्ताह की गर्भावस्था: सुप्रीम कोर्ट ने 26 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी. विवाहित महिला ने यह याचिका दायर की थी. इसमें उसने अपनी बीमारी के कारण 26 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि गर्भावस्था की अवधि 24 सप्ताह से अधिक हो गई है. गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति की अनुमति नहीं दी जा सकती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि मां को तत्काल कोई खतरा नहीं है और यह भ्रूण की असामान्यता का मामला नहीं है.
9. सीईसी, ईसी की नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आदेश दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता की एक समिति की सलाह पर की जाएगी. केंद्र ने सीजेआई को पैनल से हटाकर एक कैबिनेट मंत्री को नियुक्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया.
10. भोपाल गैस त्रासदी मुआवजा याचिका: मार्च में शीर्ष अदालत ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अमेरिका स्थित कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन से बढ़े मुआवजे की मांग करने वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. केंद्र ने यूसीसी की उत्तराधिकारी कंपनियों से 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक 7,844 करोड़ रुपये की मांग की थी. उसे 1989 में समझौते के हिस्से के रूप में अमेरिकी कंपनी से मिला था.