हैदराबाद : हिजाब को लेकर विवाद की शुरुआत भले ही कर्नाटक से हुई हो, लेकिन इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी. राजनीतिक पार्टियों ने भी इस विवाद पर खुलकर राय रखी. विवाद इतना बढ़ा कि मामला कोर्ट में चला गया. इस समय यह मामला सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच के पास है, क्योंकि दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया. अभी हिजाब पर बैन जारी है.
वैसे तो इस विवाद की शुरुआत पिछले साल ही शुरू हो गई थी, जब कर्नाटक के उडुपी के एक जूनियर कॉलेज ने कैंपस में हिजाब पहनकर आने पर रोक लगा दी थी. लेकिन इस साल जनवरी महीने में विवाद का दायरा बढ़ गया. उसके बाद हिजाब के समर्थन में लगातार प्रदर्शन होते रहे. कर्नाटक के कई जिलों में इसके समर्थन में लोग सड़कों पर आए. उडुपी, शिवमोगा, बेलगावी, कोंडापुर, चिकमंगलूर समेत कई जिलों में उग्र प्रदर्शन हुए.
उडुपी में फरवरी महीने में प्रदर्शन को दबाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. कर्नाटक के मांड्या में मुस्कान खान का एक वीडियो खूब वायरल हुआ, जिसमें वह 'अल्लाह हू अकबर' का नारा लगाते हुए दिखीं. वह हिंदू भगवाधारी छात्रों का विरोध कर रहीं थीं. देश के दूसरे हिस्सों में भी इसकी गूंज सुनाई देती रही. विवाद की लपटें यूपी, महाराष्ट्र, बंगाल, आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में फैल गईं.
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर एक सिख लड़का पगड़ी पहन सकता है और एक हिंदू महिला मंगलसूत्र पहन सकती है और सिंदूर भी लगा सकती है, तो मुस्लिम लड़की की हिजाब पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं.
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस विवाद पर ट्वीट किया. उन्होंने कहा, 'स्टूडेंट के हिजाब को उनकी शिक्षा में आड़े आने देकर हम भारत की बेटियों का भविष्य लूट रहे हैं. मां सरस्वती सभी को ज्ञान देती हैं. वह भेद नहीं करती.' कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस विषय पर कहा कि बिकनी हो, घूंघट या हिजाब, महिलाओं को मर्जी के कपड़े पहनने का हक है.
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By letting students’ hijab come in the way of their education, we are robbing the future of the daughters of India.
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Ma Saraswati gives knowledge to all. She doesn’t differentiate. #SaraswatiPuja
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उत्तर प्रदेश की संभल लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी सांसद शफीकुर्रहमान का बयान तो और अधिक विवादास्पद रहा. उन्होंने कहा कि लड़कियां पर्दे में रहें तो अच्छा है, नहीं तो आवारगी बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध लगने से मुस्लिम समुदाय को समस्याएं होंगी.
कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने कहा कि वह अपनी जमीन और अपना पैसा लगाकर स्कूल खोलेंगे, जहां मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनकर स्कूल आ सकती हैं. जब कर्नाटक सरकार से इस बाबत पूछा गया, तो सरकार ने कहा कि उसे इस तरह के किसी प्रस्ताव की जानकारी नहीं है.
कर्नाटक के सीएम और भाजपा नेता बसवराज बोम्मई ने कहा कि छात्रों को हिजाब के इस मुद्दे को छोड़कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह कर्नाटक सरकार के फैसले को पूरी तरह से लागू करने के लिए कृतसंकल्प हैं.
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Strange! @Malala never spoke on other significant issues like forced conversion of minor Hindu Sikh girls in Pakistan but today she is tweeting without verifying facts!! https://t.co/fEq8PDR0Yi
— Manjinder Singh Sirsa (@mssirsa) February 8, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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आपको बता दें कि जनवरी महीने में ही कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ एक याचिका दाखिल की गई थी. कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया. राज्य सरकार ने हिजाब पर एक सरकारी आदेश जारी किया था. इसके तहत सभी छात्राओं के लिए कैंपस के भीतर हिजाब पहनने पर रोक लगा दी गई. उसके अनुसार स्कूल प्रशासन जो भी यूनीफॉर्म तय करेगा, उसे ही पहनना होगा. सरकार ने यह भी कहा कि यह प्रैक्टिस लंबे समय से चली आ रही है.
यह मामला जब कोर्ट में गया, तो कोर्ट ने भी इसे सही ठहरा दिया. कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां भी यूनीफॉर्म पहले से तय है, उन स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर रोक लगाई जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि यदि हिजाब नहीं पहना जाए, तो इसका यह मतलब नहीं है कि आप इस्लाम के गुनाहगार हैं. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. हिजाब के समर्थकों ने इस फैसले के प्रति अपनी असहमति जताई. उन्होंने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर लगातार सुनवाई चली.
कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि 2004 से ही छात्राएं हिजाब पहनकर कैंपस में नहीं आ रहीं थीं. अचानक ही दिसंबर 2021 में सबकुछ शुरू हुआ, इसके पीछे पीएफआई और कुछ अन्य संस्थाओं की सोची-समझी रणनीति थी. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया. एक जज ने याचिका को खारिज किया, जबकि दूसरे ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक सरकार के शिक्षण संस्थानों में हिजाब बैन को सही ठहराया, लेकिन जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इसे गलत ठहराया. दोनों जजों के अलग-अलग फैसले के बाद मामला फिर से एक बार सुप्रीम कोर्ट में ही रह गया है. अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इस पर फैसला सुनाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य रूप से तीन सवाल हैं. पहला सवाल यह कि क्या हिजाब इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा है, दूसरा सवाल यह कि अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है और तीसरा सवाल यह कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की सीमा क्या है.
निश्चित तौर पर किसे क्या पहनना है, यह निजी च्वॉइस हो सकती है. सरकारी संस्थान या फिर कोई संगठन यह थोपे, यह उचित नहीं लगता है. महिलाओं का अधिकार है कि वह इसे पहनें या न पहनें. लेकिन दूसरी ओर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि अगर भारत जैसे बहुविविध संस्कृति वाले देश में अलग-अलग वेश-भूषा को शैक्षणिक जगहों में इजाजत दी गई, तो शिक्षा का मूल उद्देश्य अवश्य ही प्रभावित होगा.
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