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मनोकामना पूर्ति के लिए ऐसे करें भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना, जानें इस दिन का महत्व

हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी या चौदस तिथि को भगवान नरसिंह जयंती मनाई जाती है. इस साल 2022 में यह पर्व 14 मई को शनिवार के दिन मनाया जाएगा. भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को राक्षस हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए धरती पर नरसिंह भगवान के रुप में अवतार लिया था. तब से ही इस तिथि नरसिंह जयंती के रूप में मनाई जा रही है.

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भगवान नरसिंह.
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Published : May 13, 2022, 4:31 PM IST

वाराणसी: जिनके नाम का उच्चारण करने वाला शख्स सनातन मोक्ष को प्राप्त होता है, वह परमात्मा कारणों के भी कारण हैं. वे संपूर्ण विश्व के आत्मा, विश्व स्वरूप और सत्य प्रभु हैं. वे ही भगवान भक्त प्रह्लाद का अभीष्ट सिद्ध करने के लिए नरसिंह रूप में प्रकट हुए थे. जिस तिथि को भगवान नरसिंह का प्राकट्य हुआ था. वह तिथि महोत्सव बन गयी. वहीं, इस बार नरसिंह जयंती का पर्व 14 मई को मनाया जाएगा... तो आइए जानते हैं इस दिन का क्या महत्व है.

ये हैं मान्यताएं : श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के सदस्य एवं ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि स्वयं प्रकाश परमात्मा जब भक्तों को सुख देने के लिए ग्रहण करते हैं. तब वह तिथि और मास भी पुण्य के कारण बन जाते हैं. जब हिरण्यकश्यप नामक दैत्य का वध करके देवाधिदेव जगद्गुरु भगवान नरसिंह सुखपूर्वक विराजमान हुए तब उनकी गोद में बैठे हुए ज्ञानियों में श्रेष्ठ प्रह्लाद जी ने उनसे इस प्रकार प्रश्न किया - 'सर्वव्यापी भगवान नारायण नरसिंह का अद्भुत रूप धारण करने वाले आपको नमस्कार है. सुरश्रेष्ठ मैं आपका भक्त हूं, अतः यथार्थ बात जानने के लिए आपसे पूछता हूं. प्रभु आपके प्रति मेरी अभेद भक्ति अनेक प्रकार से स्थिर हुई है. प्रभु मैं आपको इतना प्रिय कैसे हुआ ?इसका कारण बताने की कृपा करें'.

इस पर भगवान नरसिंह बोले, 'वत्स तुम पूर्व जन्म में ब्राह्मण के पुत्र थे. फिर भी तुमने वेदों का अध्ययन नहीं किया. उस समय तुम्हारा नाम वसुदेव था. उस जन्म में तुमसे कुछ भी पुण्य नहीं बन सका. केवल मेरे व्रत के प्रभाव से मेरे प्रति तुम्हारी भक्ति हुई. पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के लिए इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था. मेरे व्रत के प्रभाव से ही उन्होंने चराचर जगत की रचना की है और भी बहुत से देवताओं, प्राचीन ऋषियों तथा परम बुद्धिमान राजाओं ने मेरे उत्तम व्रत का पालन किया है, उस व्रत के प्रभाव से उन्हें सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हुई हैं. स्त्री या पुरुष जो कोई भी इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करते हैं उन्हें मैं सुख, भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता हूं'.

यह भी पढ़े-काशी में खिचड़ी से बना ये शिवलिंग, पूजन से पांच देवी-देवताओं की मिलती कृपा

पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि तब प्रह्लाद ने पूछा, 'प्रभु मैं आपकी प्रीति और भक्ति प्रदान करने वाले नरसिंह चतुर्दशी नामक उत्तम व्रत की विधि को सुनना चाहता हूं. किस महीने में और किस दिन को यह व्रत आता है ? आप कृपया बताने की कृपा करें'. भगवान नरसिंह बोले, 'बेटा प्रह्लाद तुम्हारा कल्याण हो. एकाग्रचित्त होकर इस व्रत को श्रवण करो. यह व्रत मेरे प्रादुर्भाव से संबंध रखता है. अतः वैशाख के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को इसका अनुष्ठान करना चाहिए. इससे मुझे बड़ा संतोष होता है. पुत्र भक्तों को सुख देने के लिए जिस प्रकार मेरा आविर्भाव हुआ वह प्रसंग सुनो. पश्चिम दिशा में एक विशेष कारण से मैं प्रकट हुआ था, वह स्थान मुल्तान क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. यह परम पवित्र और समस्त पापों का नाशक है'.

ऐसे प्रसन्न होगें प्रभु : व्रत का दिन आने पर प्रातः काल दंतधावन करके इंद्रियों को काबू में रखते हुए प्रभु के सामने व्रत का संकल्प करें. फिर मध्याह्न काल में नदी आदि के निर्मल जल में, घर पर, देव संबंधि कुंड में अथवा किसी सुंदर तालाब के बीच वैदिक मंत्र से स्नान करें. मिट्टी गोबर, आंवले का फल और तिल लेकर उनसे सब पापों की शांति के लिए विधि पूर्वक स्नान करें. उसके बाद पूजा स्थल में सुंदर अष्टदल कमल बनाएं. कमल के ऊपर पंचरत्न सहित तांबे का कलश स्थापित करें. कलश के ऊपर चावल से भरे हुए पात्र में अपनी शक्ति के अनुसार सोने की लक्ष्मी सहित मेरी प्रतिमा बनवा कर स्थापित करें फिर उस पंचामृत से स्नान कराएं.

इसके बाद शास्त्र के अनुसार ब्राह्मणों को बुलाकर आचार्य बनाएं तथा उसे आगे रखकर भगवान की अर्चना करें. पूजा के स्थान पर एक मंडप बनवाकर उसे फूल के गुच्छे से सजा दें. फिर उस ऋतु में सुलभ होने वाले फलों से और षोडशोपचार की सामग्रियों से विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें. इससे अत्यधिक प्रसन्न होता हूं जो भक्तगण श्री नरसिंह के बताए अनुसार षोडशोपचार पूजन करते हैं. उन्हें मरणोपरांत बैकुंठ लोक की प्राप्ति अवश्य होती है.

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वाराणसी: जिनके नाम का उच्चारण करने वाला शख्स सनातन मोक्ष को प्राप्त होता है, वह परमात्मा कारणों के भी कारण हैं. वे संपूर्ण विश्व के आत्मा, विश्व स्वरूप और सत्य प्रभु हैं. वे ही भगवान भक्त प्रह्लाद का अभीष्ट सिद्ध करने के लिए नरसिंह रूप में प्रकट हुए थे. जिस तिथि को भगवान नरसिंह का प्राकट्य हुआ था. वह तिथि महोत्सव बन गयी. वहीं, इस बार नरसिंह जयंती का पर्व 14 मई को मनाया जाएगा... तो आइए जानते हैं इस दिन का क्या महत्व है.

ये हैं मान्यताएं : श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के सदस्य एवं ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि स्वयं प्रकाश परमात्मा जब भक्तों को सुख देने के लिए ग्रहण करते हैं. तब वह तिथि और मास भी पुण्य के कारण बन जाते हैं. जब हिरण्यकश्यप नामक दैत्य का वध करके देवाधिदेव जगद्गुरु भगवान नरसिंह सुखपूर्वक विराजमान हुए तब उनकी गोद में बैठे हुए ज्ञानियों में श्रेष्ठ प्रह्लाद जी ने उनसे इस प्रकार प्रश्न किया - 'सर्वव्यापी भगवान नारायण नरसिंह का अद्भुत रूप धारण करने वाले आपको नमस्कार है. सुरश्रेष्ठ मैं आपका भक्त हूं, अतः यथार्थ बात जानने के लिए आपसे पूछता हूं. प्रभु आपके प्रति मेरी अभेद भक्ति अनेक प्रकार से स्थिर हुई है. प्रभु मैं आपको इतना प्रिय कैसे हुआ ?इसका कारण बताने की कृपा करें'.

इस पर भगवान नरसिंह बोले, 'वत्स तुम पूर्व जन्म में ब्राह्मण के पुत्र थे. फिर भी तुमने वेदों का अध्ययन नहीं किया. उस समय तुम्हारा नाम वसुदेव था. उस जन्म में तुमसे कुछ भी पुण्य नहीं बन सका. केवल मेरे व्रत के प्रभाव से मेरे प्रति तुम्हारी भक्ति हुई. पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के लिए इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था. मेरे व्रत के प्रभाव से ही उन्होंने चराचर जगत की रचना की है और भी बहुत से देवताओं, प्राचीन ऋषियों तथा परम बुद्धिमान राजाओं ने मेरे उत्तम व्रत का पालन किया है, उस व्रत के प्रभाव से उन्हें सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हुई हैं. स्त्री या पुरुष जो कोई भी इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करते हैं उन्हें मैं सुख, भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता हूं'.

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पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि तब प्रह्लाद ने पूछा, 'प्रभु मैं आपकी प्रीति और भक्ति प्रदान करने वाले नरसिंह चतुर्दशी नामक उत्तम व्रत की विधि को सुनना चाहता हूं. किस महीने में और किस दिन को यह व्रत आता है ? आप कृपया बताने की कृपा करें'. भगवान नरसिंह बोले, 'बेटा प्रह्लाद तुम्हारा कल्याण हो. एकाग्रचित्त होकर इस व्रत को श्रवण करो. यह व्रत मेरे प्रादुर्भाव से संबंध रखता है. अतः वैशाख के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को इसका अनुष्ठान करना चाहिए. इससे मुझे बड़ा संतोष होता है. पुत्र भक्तों को सुख देने के लिए जिस प्रकार मेरा आविर्भाव हुआ वह प्रसंग सुनो. पश्चिम दिशा में एक विशेष कारण से मैं प्रकट हुआ था, वह स्थान मुल्तान क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. यह परम पवित्र और समस्त पापों का नाशक है'.

ऐसे प्रसन्न होगें प्रभु : व्रत का दिन आने पर प्रातः काल दंतधावन करके इंद्रियों को काबू में रखते हुए प्रभु के सामने व्रत का संकल्प करें. फिर मध्याह्न काल में नदी आदि के निर्मल जल में, घर पर, देव संबंधि कुंड में अथवा किसी सुंदर तालाब के बीच वैदिक मंत्र से स्नान करें. मिट्टी गोबर, आंवले का फल और तिल लेकर उनसे सब पापों की शांति के लिए विधि पूर्वक स्नान करें. उसके बाद पूजा स्थल में सुंदर अष्टदल कमल बनाएं. कमल के ऊपर पंचरत्न सहित तांबे का कलश स्थापित करें. कलश के ऊपर चावल से भरे हुए पात्र में अपनी शक्ति के अनुसार सोने की लक्ष्मी सहित मेरी प्रतिमा बनवा कर स्थापित करें फिर उस पंचामृत से स्नान कराएं.

इसके बाद शास्त्र के अनुसार ब्राह्मणों को बुलाकर आचार्य बनाएं तथा उसे आगे रखकर भगवान की अर्चना करें. पूजा के स्थान पर एक मंडप बनवाकर उसे फूल के गुच्छे से सजा दें. फिर उस ऋतु में सुलभ होने वाले फलों से और षोडशोपचार की सामग्रियों से विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें. इससे अत्यधिक प्रसन्न होता हूं जो भक्तगण श्री नरसिंह के बताए अनुसार षोडशोपचार पूजन करते हैं. उन्हें मरणोपरांत बैकुंठ लोक की प्राप्ति अवश्य होती है.

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