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500 फीट ऊंची पहाड़ी पर बन रहा दुनिया का सबसे बड़ा जैन मंदिर, जानिए क्या है खासियत

मध्य प्रदेश के दमोह स्थित विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ कुण्डलपुर में दुनिया का सबसे बड़ा जैन मंदिर बन रहा है. 16 साल से इसका निर्माण जारी है. इसे बनाने में सीमेंट और सरिया का इस्तेमाल नहीं किया गया है. जानिए क्या है इसकी खासियत.(Worlds largest Jain temple being constructed in Kundalpur)

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जैन मंदिर
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Published : Feb 16, 2022, 4:58 PM IST

दमोह : कुण्डलपुर धाम के धार्मिक महत्व को देखते हुए यहां विश्व का सबसे ऊंचा जैन मंदिर बन रहा है. कुण्डलपुर में बड़े बाबा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का नागर शैली में दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बनाया जा रहा है. जो अपनी दिव्यता और भव्यता के चलते अभी से लाखों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बनता जा रहा है. इस भव्य जैन मंदिर का कार्य पिछले 16 सालों से जारी है. 12 लाख घन मीटर पत्थरों का उपयोग किया जा चुका है. इस मंदिर में बड़े बाबा की तकरीबन एक हजार साल पुरानी प्रतिमा स्थापित की जा रही है.

लोहा, सरिया और सीमेंट के बिना बन रहा मंदिर, 189 फीट का है शिखर

कुण्डलपुर में जैन मंदिर 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित
कुण्डलपुर में जैन मंदिर 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित
दमोह जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर स्थित जैन तीर्थ क्षेत्र कुण्डलपुर में बड़े बाबा के मंदिर को भव्य तौर पर बनाया जा रहा है. 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर बन रहे इस मंदिर का शिखर 189 फीट ऊंचा है. कहा जा रहा है की दुनिया में अब तक नागर शैली में इतनी ऊंचाई वाला मंदिर नहीं है. मंदिर की ड्राइंग डिजाइन अक्षरधाम मंदिर की डिजाइन बनाने वाले सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है. मंदिर की खासियत है कि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है. इसे गुजरात और राजस्थान के लाल-पीले पत्थरों से तराशा गया है. एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोडऩे के लिए भी खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे
जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे

पूरे निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे
189 फीट ऊंचे इस जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होने हैं. करीब 400 करोड़ रुपए अबतक खर्च भी हो चुके हैं. पत्थरों से बने इस मंदिर पर दिलवाड़ा और खजुराहो की तर्ज पर शानदार नक्काशी की गई है. कुण्डलपुर के इस भव्य जैन मंदिर का कार्य पिछले 16 वर्षों से जारी है. इस मंदिर में 12 लाख घन मीटर पत्थरों का उपयोग किया जा चुका है. इस मंदिर में मुख्य शिखर, नृत्य मंडप, रंग मंडप सहित अनेक प्रकार के भव्य स्थल का निर्माण हुआ है.

63 मंदिर हैं स्थापित
प्राचीन स्थान कुण्डलपुर को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहां 63 मंदिर हैं जो 5वीं, 6वीं शताब्दी के बताए जाते हैं. क्षेत्र को 2,500 साल पुराना बताया जाता है. कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है. यहां 1,500 साल पुरानी पद्मासन श्री 1008 आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है, जिन्हें बड़ेबाबा कहते हैं.

2500 साल पुराना नाता है भगवान महावीर का
भगवान महावीर के 500 शिष्य हुए हैं, जिनमें इंद्रभूति गौतम के भट्टारक ने भ्रमण किया था. भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने कुण्डलगिरी क्षेत्र से भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खोजी थी. तब से यह माना जा रहा है कि भगवान महावीर का समवशरण 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व कुण्डलपुर आया था. इस इलाके की पहाड़ियां कुंडली आकार में होने के कारण पहले इसका नाम कुण्डलगिरी था. बाद में धीरे-धीरे इसका नामकरण कुण्डलपुर पड़ गया, जो अब सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है. यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है.

स्वप्न में दिखे थे महावीर स्वामी
वैसे तो कुण्डलपुर में विराजित भगवान आदिनाथ की 15 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा की खोज करने वाले के रूप में भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति का नाम आता है, लेकिन एक किवदंती यह भी है कि पटेरा गांव में एक व्यापारी प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था. रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर से ठोकर लगती थी, एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा, लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थकर मूर्ति है. स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा. उसने दूसरे दिन वैसा ही किया. बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई, जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्य, ध्वनियां सुनाई दीं. जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई.

पढ़ें- दमोह के कुण्डलपुर में पंचकल्याणक महा महोत्सव का आगाज़, देशभर से पहुंच रहे हैं लाखों श्रद्धालु

छत्रसाल ने कराया था जीर्णोद्धार
कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. नए मंदिर निर्माण के पूर्व तक पत्थर की मोटी-मोटी सिलाओं से मंदिर की दीवारें बनाई गईं थीं. केवल एक विशालकाय चट्टान को काटकर बगैर जोड़ वाली छतरी से मंदिर की गुंबद बनाया गया था.

चारों तरफ हैं मंदिर, बीच में बना है तालाब
मुख्य मंदिर के चारों तरफ विशालकाय पहाड़ियों पर विभिन्न मंदिर हैं. इनमें से एक मंदिर में माता रुकमणी की पाषाण प्रतिमा स्थापित थी, जिसे कुछ समय पूर्व चोरी कर लिया गया था. बाद में प्रतिमा की बरामदगी पर संग्रहालय में रखवा दिया गया. इसी तरह हनुमान जी की पाषाण पर गिर गई एक अन्य प्रतिमा भी स्थापित है. वहीं कुण्डलपुर मुख्य द्वार के भीतर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर चलने पर एक विशालकाय तालाब भी है. उस तालाब की बगल से ही ऊपर जाने के लिए एक रास्ता है जो मुख्य मंदिर की ओर ले जाता है. इस तालाब की सुंदरता इस क्षेत्र को और भी रमणीक बना देती है.

दमोह : कुण्डलपुर धाम के धार्मिक महत्व को देखते हुए यहां विश्व का सबसे ऊंचा जैन मंदिर बन रहा है. कुण्डलपुर में बड़े बाबा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का नागर शैली में दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बनाया जा रहा है. जो अपनी दिव्यता और भव्यता के चलते अभी से लाखों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बनता जा रहा है. इस भव्य जैन मंदिर का कार्य पिछले 16 सालों से जारी है. 12 लाख घन मीटर पत्थरों का उपयोग किया जा चुका है. इस मंदिर में बड़े बाबा की तकरीबन एक हजार साल पुरानी प्रतिमा स्थापित की जा रही है.

लोहा, सरिया और सीमेंट के बिना बन रहा मंदिर, 189 फीट का है शिखर

कुण्डलपुर में जैन मंदिर 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित
कुण्डलपुर में जैन मंदिर 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित
दमोह जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर स्थित जैन तीर्थ क्षेत्र कुण्डलपुर में बड़े बाबा के मंदिर को भव्य तौर पर बनाया जा रहा है. 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर बन रहे इस मंदिर का शिखर 189 फीट ऊंचा है. कहा जा रहा है की दुनिया में अब तक नागर शैली में इतनी ऊंचाई वाला मंदिर नहीं है. मंदिर की ड्राइंग डिजाइन अक्षरधाम मंदिर की डिजाइन बनाने वाले सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है. मंदिर की खासियत है कि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है. इसे गुजरात और राजस्थान के लाल-पीले पत्थरों से तराशा गया है. एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोडऩे के लिए भी खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे
जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे

पूरे निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे
189 फीट ऊंचे इस जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होने हैं. करीब 400 करोड़ रुपए अबतक खर्च भी हो चुके हैं. पत्थरों से बने इस मंदिर पर दिलवाड़ा और खजुराहो की तर्ज पर शानदार नक्काशी की गई है. कुण्डलपुर के इस भव्य जैन मंदिर का कार्य पिछले 16 वर्षों से जारी है. इस मंदिर में 12 लाख घन मीटर पत्थरों का उपयोग किया जा चुका है. इस मंदिर में मुख्य शिखर, नृत्य मंडप, रंग मंडप सहित अनेक प्रकार के भव्य स्थल का निर्माण हुआ है.

63 मंदिर हैं स्थापित
प्राचीन स्थान कुण्डलपुर को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहां 63 मंदिर हैं जो 5वीं, 6वीं शताब्दी के बताए जाते हैं. क्षेत्र को 2,500 साल पुराना बताया जाता है. कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है. यहां 1,500 साल पुरानी पद्मासन श्री 1008 आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है, जिन्हें बड़ेबाबा कहते हैं.

2500 साल पुराना नाता है भगवान महावीर का
भगवान महावीर के 500 शिष्य हुए हैं, जिनमें इंद्रभूति गौतम के भट्टारक ने भ्रमण किया था. भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने कुण्डलगिरी क्षेत्र से भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खोजी थी. तब से यह माना जा रहा है कि भगवान महावीर का समवशरण 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व कुण्डलपुर आया था. इस इलाके की पहाड़ियां कुंडली आकार में होने के कारण पहले इसका नाम कुण्डलगिरी था. बाद में धीरे-धीरे इसका नामकरण कुण्डलपुर पड़ गया, जो अब सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है. यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है.

स्वप्न में दिखे थे महावीर स्वामी
वैसे तो कुण्डलपुर में विराजित भगवान आदिनाथ की 15 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा की खोज करने वाले के रूप में भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति का नाम आता है, लेकिन एक किवदंती यह भी है कि पटेरा गांव में एक व्यापारी प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था. रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर से ठोकर लगती थी, एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा, लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थकर मूर्ति है. स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा. उसने दूसरे दिन वैसा ही किया. बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई, जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्य, ध्वनियां सुनाई दीं. जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई.

पढ़ें- दमोह के कुण्डलपुर में पंचकल्याणक महा महोत्सव का आगाज़, देशभर से पहुंच रहे हैं लाखों श्रद्धालु

छत्रसाल ने कराया था जीर्णोद्धार
कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. नए मंदिर निर्माण के पूर्व तक पत्थर की मोटी-मोटी सिलाओं से मंदिर की दीवारें बनाई गईं थीं. केवल एक विशालकाय चट्टान को काटकर बगैर जोड़ वाली छतरी से मंदिर की गुंबद बनाया गया था.

चारों तरफ हैं मंदिर, बीच में बना है तालाब
मुख्य मंदिर के चारों तरफ विशालकाय पहाड़ियों पर विभिन्न मंदिर हैं. इनमें से एक मंदिर में माता रुकमणी की पाषाण प्रतिमा स्थापित थी, जिसे कुछ समय पूर्व चोरी कर लिया गया था. बाद में प्रतिमा की बरामदगी पर संग्रहालय में रखवा दिया गया. इसी तरह हनुमान जी की पाषाण पर गिर गई एक अन्य प्रतिमा भी स्थापित है. वहीं कुण्डलपुर मुख्य द्वार के भीतर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर चलने पर एक विशालकाय तालाब भी है. उस तालाब की बगल से ही ऊपर जाने के लिए एक रास्ता है जो मुख्य मंदिर की ओर ले जाता है. इस तालाब की सुंदरता इस क्षेत्र को और भी रमणीक बना देती है.

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