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IVF: निसंतान दंपति के लिए वरदान लेकिन इन बातों का रखें ध्यान

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Published : Jul 25, 2021, 6:10 AM IST

आज की दुनिया में इनफर्टिलिटी बहुत आम समस्या हो चुकी है. जिसके कारण कई दंपति संतान सुख नहीं प्राप्त कर पाते लेकिन ऐसे लोगों के लिए विज्ञान ने एक रास्ता आज से 4 दशक पहले 25 जुलाई 1978 को खोल दिया था. जिसके बाद से इस दिन को वर्ल्ड आईवीएफ डे (World IVF Day) के रूप में मनाते हैं. आखिर क्या है ये आईवीएफ तकनीक, किसके लिए है ये वरदान और क्या हैं इससे जुड़े मिथक ? जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

ivf
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हैदराबाद: कहते हैं मां बनने का एहसास बहुत खास होता है लेकिन आज के दौर में बांझपन (infertility) कई लोग माता-पिता नहीं बन पाते. ऐसे लोगों के लिए विज्ञान ने 43 साल पहले एक ऐसा रास्ता खोजा, जो आज कई दंपतियों को माता-पिता बनने का सुख दे रहा है. इस तकनीक का नाम आईवीएफ (IVF) या टेस्ट ट्यूब बेबी है.

25 जुलाई 1978 का वो दिन

25 जुलाई 1978 को वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ. जिसका नाम लुईस ब्राउन था. इस बच्ची का जन्म इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के क्षेत्र में सबसे बड़ा मील का पत्थर है. जिसके बाद बीते 43 सालों में दुनियाभर में लाखों बच्चों का जन्म इस तकनीक से हो चुका है. हर साल 25 जुलाई को इस महान आविष्कार की याद में वर्ल्ड आईवीएफ डे के रूप में मनाया जाता है.

IVF तकनीक में लैब में कराया जाता है अंडे और शुक्राणु का मिलन
IVF तकनीक में लैब में कराया जाता है अंडे और शुक्राणु का मिलन

IVF (आईवीएफ) या टेस्ट ट्यूब बेबी

IVF यानि In vitro fertilization (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) या टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से दुनियाभर में लाखों बच्चों का जन्म हो चुका है. इस तकनीक में महिला के अंडे और पुरुष के शुक्राणु का मिलन लैब में कराया जाता है. जिसके बाद (फर्टिलाइजेशन) तैयार हुए भ्रूण को महिला के गर्भाश्य में डाला जाता है. इसके बाद गर्भधारण से लेकर प्रसव तक की पूरी प्रक्रिया ठीक वैसी ही होती है जैसी कि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण होने पर होती है.

IVF किसके लिए है वरदान ?

ये तकनीक उन निसंतान दंपतियों के लिए वरदान है जो किन्हीं स्वास्थ्य कारणों या उम्रदराज होने के कारण मां-बाप नहीं बन पाते. महिला की उम्र अधिक होने या अंडे ना बनने के स्थिति में भी इस तकनीक का सहारा गर्भधारण के लिए होता है. महिला के बच्चेदानी में रोग से लेकर पुरुष के शुक्राणु कम या नहीं होने की स्थिति में भी इस तकनीक के जरिये संतान प्राप्ति हो सकती है.

निसंतान दंपति के लिए वरदान है आईवीएफ
निसंतान दंपति के लिए वरदान है आईवीएफ

IVF से जुड़े मिथक और तथ्य

मिथक- आईवीएफ के जरिये पैदा होने वाले बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं होते.

सच- सामान्य बच्चों जैसे ही होते हैं आईवीएफ तकनीक से जन्में बच्चे, ऑस्ट्रेलिया में हुए एक अध्ययन में ये पाया गया कि आईवीएफ से जन्मे बच्चे शारीरिक से लेकर मानसिक और भावनात्मक रूप से उतने ही स्वस्थ होते हैं जितने कि प्राकृतिक गर्भधारण से जन्मे बच्चे होते हैं.

मिथक- आईवीएफ के जरिये गर्भधारण के बाद डिलीवरी (प्रसव) ऑपरेशन (सिजेरियन) से ही होती है.

सच- इस तकनीक में केवल भ्रूण को शरीर से बाहर लैब में तैयार किया जाता है. इसका विकास उसी तरह गर्भाश्य में होता है, जैसा कि प्राकृतिक गर्भधारण में होता है. इसलिये इस तकनीक से गर्भधारण के बाद डिलीवरी के नॉर्मल और ऑपरेशन से होने की उतनी ही संभावना है, जितनी कि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण की स्थिति में होती है.

IVF से गर्भधारण से जुड़े कई मिथ है
IVF से गर्भधारण से जुड़े कई मिथ है

मिथक- इस तकनीक से सिर्फ युवाओं को फायदा हो सकता है उम्रदराज को नहीं.

सच- IVF तकनीक से 70 साल की महिला भी गर्भधारण कर सकती है. भारत में ही 70 साल से अधिक उम्र की महिलाएं आईवीएफ तकनीक से संतान सुख प्राप्त कर चुकी हैं. हालांकि दुनियाभर की सरकारों ने महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसके लिए उम्र सीमा तय कर रखी है. प्राकृतिक रूप से मासिक धर्म रुक जाने की स्थिति (मेनोपॉज) में महिला को अंड़ों के लिए डोनर की जरूरत होती है.

मिथक- इस तकनीक में अबॉर्शन की संभावना ज्यादा होती है इसलिये 9 महीने का बेड रेस्ट करना होता है.

सच- प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में अबॉर्शन का जितना खतरा होता है उतना ही खतरा आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण के बाद भी रहता है. इस तकनीक से सिर्फ गर्भधारण करवाया जाता है, इसके बाद गर्भाश्य में भ्रूण का विकास प्राकृतिक रूप से गर्भधारण की तरह ही होता है. ऐसे में ये जरूरी नहीं है कि 9 महीने का बेड रेस्ट कहा जाए. गर्भधारण करने वाली महिला के स्वास्थ्य और उम्र को देखते हुए डॉक्टर कुछ हिदायत दे सकती हैं, जैसा कि नॉर्मल प्रेगनेंसी में भी होता है.

जुड़वां बच्चों के लिए IVF कितना सही ?

कई लोग ऐसे हैं जो जुड़वां बच्चों की चाह भी रखते हैं और आईवीएफ के जरिये एक लड़का और एक लड़की (जुड़वां बच्चों) की चाह रखते हैं. आईवीएफ तकनीक के विशेषज्ञों के मुताबिक ये तकनीक उन जोड़ों के लिए मददगार होती है जो किन्हीं मेडिकल कारणों की वजह से माता-पिता नहीं बन पा रहे. आईवीएफ गर्भधारण का एक तरीका है, ना कि जुड़वां बच्चे पैदा करने का.

इस तकनीक में एक से ज्यादा भ्रूण ट्रांसफर करने पर जुड़वां बच्चे होने के चांस तो बढ़ जाते हैं लेकिन जानकार इसे बच्चों और मां की सेहत के लिए खतरा बताते हैं. इसलिये कई देशों में ऐसे कानून हैं जो सिर्फ एक भ्रूण को ही ट्रांसफर करने की अनुमति देते हैं. कुल मिलाकर आईवीएफ से जुड़वां बच्चों के पैदा होने की कोई गारंटी नहीं है इसकी संभावना कम होती है लेकिन इसकी सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इससे जच्चा बच्चा दोनों की जान को खतरा भी हो सकता है.

आईवीएफ तकनीक
आईवीएफ तकनीक

किन समस्याओं में आईवीएफ उपचार है फायदेमंद

-फैलोपियन ट्यूब में रुकावट.

-ऐसा बांझपन जिसके कारणों को ज्ञात नहीं किया जा सका हो, यानी सभी जांचों के नतीजों के सामान्य आने के बावजूद भी गर्भधारण में समस्या होने पर.

-पुरुषों में स्पर्म से जुड़ी और समस्याएं, विशेषकर स्पर्म की संख्या में कमी और उनकी गुणवत्ता में कमी होने पर.

- महिलाओं में अंडोत्सर्ग संबंधी समस्याएं/ ओवरी या अंडाश्य से जुड़ी समस्याएं होने पर.

-मध्यम या गंभीर एंडोमेट्रियोसिस- एंडोमेट्रियोसिस गर्भाशय में होने वाली एक बीमारी है, जिसमे गर्भाशय की आंतरिक परत बनाने वाले एन्डोमेट्रियल ऊतक में असमान्य बढ़ोतरी होने लगती है और वह गर्भाशय के बाहर अन्य अंगो में फैलने लगता है. ये एक बहुत ही सामान्य समस्या है. Endometriosis Society Of India के अनुसार लगभग 2.5 करोड़ भारतीय महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस पाया गया है फिर भी आज भी बहुत सी महिलाओं को इस बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

ये भी पढ़ें: आईवीएफ करवाने से पहले लें प्रक्रिया की पूरी जानकारी

हैदराबाद: कहते हैं मां बनने का एहसास बहुत खास होता है लेकिन आज के दौर में बांझपन (infertility) कई लोग माता-पिता नहीं बन पाते. ऐसे लोगों के लिए विज्ञान ने 43 साल पहले एक ऐसा रास्ता खोजा, जो आज कई दंपतियों को माता-पिता बनने का सुख दे रहा है. इस तकनीक का नाम आईवीएफ (IVF) या टेस्ट ट्यूब बेबी है.

25 जुलाई 1978 का वो दिन

25 जुलाई 1978 को वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ. जिसका नाम लुईस ब्राउन था. इस बच्ची का जन्म इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के क्षेत्र में सबसे बड़ा मील का पत्थर है. जिसके बाद बीते 43 सालों में दुनियाभर में लाखों बच्चों का जन्म इस तकनीक से हो चुका है. हर साल 25 जुलाई को इस महान आविष्कार की याद में वर्ल्ड आईवीएफ डे के रूप में मनाया जाता है.

IVF तकनीक में लैब में कराया जाता है अंडे और शुक्राणु का मिलन
IVF तकनीक में लैब में कराया जाता है अंडे और शुक्राणु का मिलन

IVF (आईवीएफ) या टेस्ट ट्यूब बेबी

IVF यानि In vitro fertilization (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) या टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से दुनियाभर में लाखों बच्चों का जन्म हो चुका है. इस तकनीक में महिला के अंडे और पुरुष के शुक्राणु का मिलन लैब में कराया जाता है. जिसके बाद (फर्टिलाइजेशन) तैयार हुए भ्रूण को महिला के गर्भाश्य में डाला जाता है. इसके बाद गर्भधारण से लेकर प्रसव तक की पूरी प्रक्रिया ठीक वैसी ही होती है जैसी कि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण होने पर होती है.

IVF किसके लिए है वरदान ?

ये तकनीक उन निसंतान दंपतियों के लिए वरदान है जो किन्हीं स्वास्थ्य कारणों या उम्रदराज होने के कारण मां-बाप नहीं बन पाते. महिला की उम्र अधिक होने या अंडे ना बनने के स्थिति में भी इस तकनीक का सहारा गर्भधारण के लिए होता है. महिला के बच्चेदानी में रोग से लेकर पुरुष के शुक्राणु कम या नहीं होने की स्थिति में भी इस तकनीक के जरिये संतान प्राप्ति हो सकती है.

निसंतान दंपति के लिए वरदान है आईवीएफ
निसंतान दंपति के लिए वरदान है आईवीएफ

IVF से जुड़े मिथक और तथ्य

मिथक- आईवीएफ के जरिये पैदा होने वाले बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं होते.

सच- सामान्य बच्चों जैसे ही होते हैं आईवीएफ तकनीक से जन्में बच्चे, ऑस्ट्रेलिया में हुए एक अध्ययन में ये पाया गया कि आईवीएफ से जन्मे बच्चे शारीरिक से लेकर मानसिक और भावनात्मक रूप से उतने ही स्वस्थ होते हैं जितने कि प्राकृतिक गर्भधारण से जन्मे बच्चे होते हैं.

मिथक- आईवीएफ के जरिये गर्भधारण के बाद डिलीवरी (प्रसव) ऑपरेशन (सिजेरियन) से ही होती है.

सच- इस तकनीक में केवल भ्रूण को शरीर से बाहर लैब में तैयार किया जाता है. इसका विकास उसी तरह गर्भाश्य में होता है, जैसा कि प्राकृतिक गर्भधारण में होता है. इसलिये इस तकनीक से गर्भधारण के बाद डिलीवरी के नॉर्मल और ऑपरेशन से होने की उतनी ही संभावना है, जितनी कि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण की स्थिति में होती है.

IVF से गर्भधारण से जुड़े कई मिथ है
IVF से गर्भधारण से जुड़े कई मिथ है

मिथक- इस तकनीक से सिर्फ युवाओं को फायदा हो सकता है उम्रदराज को नहीं.

सच- IVF तकनीक से 70 साल की महिला भी गर्भधारण कर सकती है. भारत में ही 70 साल से अधिक उम्र की महिलाएं आईवीएफ तकनीक से संतान सुख प्राप्त कर चुकी हैं. हालांकि दुनियाभर की सरकारों ने महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसके लिए उम्र सीमा तय कर रखी है. प्राकृतिक रूप से मासिक धर्म रुक जाने की स्थिति (मेनोपॉज) में महिला को अंड़ों के लिए डोनर की जरूरत होती है.

मिथक- इस तकनीक में अबॉर्शन की संभावना ज्यादा होती है इसलिये 9 महीने का बेड रेस्ट करना होता है.

सच- प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में अबॉर्शन का जितना खतरा होता है उतना ही खतरा आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण के बाद भी रहता है. इस तकनीक से सिर्फ गर्भधारण करवाया जाता है, इसके बाद गर्भाश्य में भ्रूण का विकास प्राकृतिक रूप से गर्भधारण की तरह ही होता है. ऐसे में ये जरूरी नहीं है कि 9 महीने का बेड रेस्ट कहा जाए. गर्भधारण करने वाली महिला के स्वास्थ्य और उम्र को देखते हुए डॉक्टर कुछ हिदायत दे सकती हैं, जैसा कि नॉर्मल प्रेगनेंसी में भी होता है.

जुड़वां बच्चों के लिए IVF कितना सही ?

कई लोग ऐसे हैं जो जुड़वां बच्चों की चाह भी रखते हैं और आईवीएफ के जरिये एक लड़का और एक लड़की (जुड़वां बच्चों) की चाह रखते हैं. आईवीएफ तकनीक के विशेषज्ञों के मुताबिक ये तकनीक उन जोड़ों के लिए मददगार होती है जो किन्हीं मेडिकल कारणों की वजह से माता-पिता नहीं बन पा रहे. आईवीएफ गर्भधारण का एक तरीका है, ना कि जुड़वां बच्चे पैदा करने का.

इस तकनीक में एक से ज्यादा भ्रूण ट्रांसफर करने पर जुड़वां बच्चे होने के चांस तो बढ़ जाते हैं लेकिन जानकार इसे बच्चों और मां की सेहत के लिए खतरा बताते हैं. इसलिये कई देशों में ऐसे कानून हैं जो सिर्फ एक भ्रूण को ही ट्रांसफर करने की अनुमति देते हैं. कुल मिलाकर आईवीएफ से जुड़वां बच्चों के पैदा होने की कोई गारंटी नहीं है इसकी संभावना कम होती है लेकिन इसकी सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इससे जच्चा बच्चा दोनों की जान को खतरा भी हो सकता है.

आईवीएफ तकनीक
आईवीएफ तकनीक

किन समस्याओं में आईवीएफ उपचार है फायदेमंद

-फैलोपियन ट्यूब में रुकावट.

-ऐसा बांझपन जिसके कारणों को ज्ञात नहीं किया जा सका हो, यानी सभी जांचों के नतीजों के सामान्य आने के बावजूद भी गर्भधारण में समस्या होने पर.

-पुरुषों में स्पर्म से जुड़ी और समस्याएं, विशेषकर स्पर्म की संख्या में कमी और उनकी गुणवत्ता में कमी होने पर.

- महिलाओं में अंडोत्सर्ग संबंधी समस्याएं/ ओवरी या अंडाश्य से जुड़ी समस्याएं होने पर.

-मध्यम या गंभीर एंडोमेट्रियोसिस- एंडोमेट्रियोसिस गर्भाशय में होने वाली एक बीमारी है, जिसमे गर्भाशय की आंतरिक परत बनाने वाले एन्डोमेट्रियल ऊतक में असमान्य बढ़ोतरी होने लगती है और वह गर्भाशय के बाहर अन्य अंगो में फैलने लगता है. ये एक बहुत ही सामान्य समस्या है. Endometriosis Society Of India के अनुसार लगभग 2.5 करोड़ भारतीय महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस पाया गया है फिर भी आज भी बहुत सी महिलाओं को इस बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

ये भी पढ़ें: आईवीएफ करवाने से पहले लें प्रक्रिया की पूरी जानकारी

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