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वर्ल्ड हंगर डे : जानें इसका इतिहास और लॉकडाउन में कितनी बढ़ी भुखमरी

'वर्ल्ड हंगर डे' की शुरुआत साल 2011 में 'हंगर प्रोजेक्ट' की एक पहल के तहत हुई थी और इसी साल दसवां वार्षिक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें भूख जैसे ठोस मुद्दे पर बातचीत की गई थी.

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Published : May 28, 2021, 6:00 AM IST

वर्ल्ड हंगर डे
वर्ल्ड हंगर डे

हैदराबाद : वर्ल्ड हंगर डे (World Hunger Day) हर साल 28 मई को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनिया भर में भूखे रहने वाले 690 मिलियन से अधिक लोगों के बारे में जागरूकता फैलाना है. इस दिन की शुरुआत साल 2011 में हुई थी और तब से यह न केवल भुखमरी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है, बल्कि स्थायी उपक्रमों के माध्यम से भुखमरी और गरीबी जैसी विराट समस्या को जड़ से खत्म करना इसका खास मकसद है.

इतिहास

'वर्ल्ड हंगर डे' की शुरुआत साल 2011 में 'हंगर प्रोजेक्ट' की एक पहल के तहत हुई थी और इसी साल दसवां वार्षिक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें भूख जैसे ठोस मुद्दे पर बातचीत की गई थी.

वर्ल्ड हंगर डे 2021 की थीम

इस साल की थीम 'एक्सेस एंड्स हंगर' यानी, जो भूख को मिटाने में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और प्रौद्योगिकी तक पहुंच के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालता है.

विश्व स्तर पर भुखमरी के बारे में तथ्य

  • दुनियाभर में 690 मिलियन लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं.
  • दुनिया की कुल 60 फीसदी महिलाएं भुखमरी में जी रही हैं.
  • एक दशक तक कमी के बावजूद, दुनिया में भुखमरी बढ़ी है, जो विश्व स्तर पर 8.9 प्रतिशत लोगों को प्रभावित कर रही है.
  • कोविड-19 महामारी के कारण 130 मिलियन लोग भुखमरी का सामना कर सकते हैं.
  • दुनिया में एड्स, मलेरिया और टीबी के मुकाबले भूख से ज्यादा मौतें होती हैं.

भारत में भूख के बारे में मुख्य तथ्य

  • भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी कुपोषित है.
  • देश में 189.2 मिलियन यानी की जनसंख्या का 14 फीसदी हिस्सा कुपोषण का शिकार है.
  • 5 साल से कम उम्र के 20 फीसदी बच्चों का औसतन वजन कम है.
  • 5 साल से कम उम्र के 34.7 फीसदी बच्चे अविकसित हैं.
  • प्रजनन आयु (15-49 वर्ष) में 51.4 फीसदी महिलाएं रक्तहीनता का शिकार हैं.

खाद्य संकट पर संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रिपोर्ट (2021)

खाद्य संकट पर आई संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल खाद्य संकट की भयावहता और गंभीरता, इस साल कोविड-19 महामारी के कारण चरमराई विश्व अर्थव्यवस्था और लंबे समय से चले आ रहे विवाद के कारण समान बनी हुई है.

साल 2020 में 155 मिलियन लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा, जिसमें 133,000 लोगों को जीने के लिए भोजन की आवश्यकता थी. वहीं, मौजूदा साल 2021 में भी भुखमरी की स्थिति और गंभीरता में कोई ज्यादा फर्क नहीं आया है.

संयुक्त राष्ट्र खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट (2021)

विश्व स्तर पर औसत वार्षिक अपव्यय 121 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है, जिसमें घरों में बर्बाद होने वाले खाने के भोजन का हिस्सा 74 किलोग्राम है. यह रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई, जब कोविड-19 के कारण सरकार अपनी तमाम खाद्य योजनाओं के बावजूद, बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए संघर्ष में जुटी है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (2020) में भारत का स्कोर 27.2 है, जिसका मतलब है कि भारत में भुखमरी के आंकडे़ चिंताजनक हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का 94वां स्थान है, जबकि पाकिस्तान (88), नेपाल (73), बांग्लादेश (45) और इंडोनेशिया का 70वां स्थान है. श्रीलंका और म्यांमार की स्थिति भी भारत से अच्छी है. इंडेक्स में भारत की स्थिति रावांडा, नाईजीरिया, अफगानिस्तान, लीबिया, मोजाम्बिक और चाड से सुधरी हुई है. चीन सूची में सबसे ऊपर है.

भारत में खाने की बर्बादी

भारत में हर साल प्रति व्यक्ति 50 किलो भोजन की बर्बादी होती है. भारत में 2011 की जनगणना के मुताबिक जनसंख्या का 14 फीसदी (169.4 मिलियन) हिस्सा कुपोषित है. इसके बावजूद, पिछले चार वर्षों में खराब सिस्टम के कारण 11,520 टन खाद्यान्न बर्बाद हुआ.

दक्षिण एशियाई देशों में, सबसे अधिक खाने की बर्बादी करने में अफगानिस्तान (82 किग्रा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष) सबसे आगे है. इसके बाद नेपाल में 79 किग्रा, श्रीलंका में 76 किग्रा, पाकिस्तान में 74 किग्रा और बांग्लादेश में 65 किग्रा खाने की बर्बादी होती है. खाने की बर्बादी के मामले में भारत सबसे निचले पायदान पर है.

भारत में अनाज की बर्बादी

2 फरवरी, 2021 को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए, उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने कहा था कि भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न गोदामों में 2017 और 2020 के बीच 11,520 टन अनाज सड़ गया था, जिसके परिणामस्वरूप करीब 150 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

भारत में लॉकडाउन और भुखमरी (हंगर वॉच रिपोर्ट)

दिसंबर 2020 में 'राईट टू फूड फाउंडेशन' की 'द हंगर वॉच रिपोर्ट' में खुलासा हुआ था कि, लॉकडाउन में कई परिवारों को भूखा सोना पड़ा था. इसमें कहा गया था कि 2015 से अब तक देश में करीब 100 लोगों की भूख से मौत हो चुकी है.

भुखमरी मिटाने में शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी का महत्व

जब बच्चे शिक्षित होते हैं, तो महिलाओं की पहुंच स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं और तकनीकी तक आसानी से होने लगती होती है और उनमें अपने और समुदायों के बेहतर भविष्य का निर्माण करने की क्षमता विकसित होती है.

शिक्षा तक पहुंच

गरीबी को मिटाने में शिक्षा का बड़ा महत्व होता है, लेकिन लाखों लोग इससे वंचित हैं, लेकिन

  • कोरोना महामारी के कारण 20 मिलियन से भी ज्यादा सेकेंडरी स्कूल की छात्राओं ने निश्चित रूप से स्कूल छोड़ दिया है.
  • 8 फीसदी राशि, जो प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के लिए छात्र की संभावित आय में जोड़ी जाती है, वह छह सालों में 50 फीसदी से ऊपर पहुंच चुकी है.
  • 171 मिलियन लोग गरीबी से बच सकते थे, यदि निम्न-आय वाले देशों के सभी छात्रों को बुनियादी और बेहतर शिक्षा दी जाती.
  • दुनिया भर में 132 मिलियन लड़कियां स्कूल ही नहीं जाती हैं.

स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच

सभी लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और उनके कल्याण को बढ़ावा देना, भुखमरी को जड़ से मिटाने में आवश्यक है. जब लोगों की स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच आसानी से होती है, तो वे स्वस्थ और आत्मनिर्भर जीवन जीने में समर्थ होते हैं, लेकिन...

  • 3.5 मिलियन लोग उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं.
  • निम्न आय वाले देशों में चार में से एक महिला को आधुनिक गर्भनिरोधक की जरूरत है.
  • इलाज में अधिक खर्च होने के कारण हर साल 100 मिलियन लोग गरीब हो रहे हैं.
  • गर्भावस्था और जन्म से संबंधित इलाज में हर दिन 810 महिलाओं की मौत हो रही है.

तकनीकी तक पहुंच

प्रौद्योगिकी के जरिए आवश्यक जानकारी, ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवाएं, जीवन रक्षक आपदा चेतावनियां और शिक्षा के अवसरों तक पहुंचने में मदद मिलती है, लेकिन...

  • 3.7 बिलियन लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है.
  • 1 जीबी डेटा, उप-सहारा अफ्रीका में औसत मासिक वेतन का 40 फीसदी खर्च होता है.
  • 144 देशों में ऑनलाइन आने वाली 600 मिलियन महिलाएं वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद में 18 बिलियन डॉलर तक का योगदान देंगी.
  • 500 मिलियन छात्रों की दूरस्थ शिक्षा (Remort Learing) तक पहुंच नहीं है.

हैदराबाद : वर्ल्ड हंगर डे (World Hunger Day) हर साल 28 मई को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनिया भर में भूखे रहने वाले 690 मिलियन से अधिक लोगों के बारे में जागरूकता फैलाना है. इस दिन की शुरुआत साल 2011 में हुई थी और तब से यह न केवल भुखमरी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है, बल्कि स्थायी उपक्रमों के माध्यम से भुखमरी और गरीबी जैसी विराट समस्या को जड़ से खत्म करना इसका खास मकसद है.

इतिहास

'वर्ल्ड हंगर डे' की शुरुआत साल 2011 में 'हंगर प्रोजेक्ट' की एक पहल के तहत हुई थी और इसी साल दसवां वार्षिक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें भूख जैसे ठोस मुद्दे पर बातचीत की गई थी.

वर्ल्ड हंगर डे 2021 की थीम

इस साल की थीम 'एक्सेस एंड्स हंगर' यानी, जो भूख को मिटाने में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और प्रौद्योगिकी तक पहुंच के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालता है.

विश्व स्तर पर भुखमरी के बारे में तथ्य

  • दुनियाभर में 690 मिलियन लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं.
  • दुनिया की कुल 60 फीसदी महिलाएं भुखमरी में जी रही हैं.
  • एक दशक तक कमी के बावजूद, दुनिया में भुखमरी बढ़ी है, जो विश्व स्तर पर 8.9 प्रतिशत लोगों को प्रभावित कर रही है.
  • कोविड-19 महामारी के कारण 130 मिलियन लोग भुखमरी का सामना कर सकते हैं.
  • दुनिया में एड्स, मलेरिया और टीबी के मुकाबले भूख से ज्यादा मौतें होती हैं.

भारत में भूख के बारे में मुख्य तथ्य

  • भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी कुपोषित है.
  • देश में 189.2 मिलियन यानी की जनसंख्या का 14 फीसदी हिस्सा कुपोषण का शिकार है.
  • 5 साल से कम उम्र के 20 फीसदी बच्चों का औसतन वजन कम है.
  • 5 साल से कम उम्र के 34.7 फीसदी बच्चे अविकसित हैं.
  • प्रजनन आयु (15-49 वर्ष) में 51.4 फीसदी महिलाएं रक्तहीनता का शिकार हैं.

खाद्य संकट पर संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रिपोर्ट (2021)

खाद्य संकट पर आई संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल खाद्य संकट की भयावहता और गंभीरता, इस साल कोविड-19 महामारी के कारण चरमराई विश्व अर्थव्यवस्था और लंबे समय से चले आ रहे विवाद के कारण समान बनी हुई है.

साल 2020 में 155 मिलियन लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ा, जिसमें 133,000 लोगों को जीने के लिए भोजन की आवश्यकता थी. वहीं, मौजूदा साल 2021 में भी भुखमरी की स्थिति और गंभीरता में कोई ज्यादा फर्क नहीं आया है.

संयुक्त राष्ट्र खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट (2021)

विश्व स्तर पर औसत वार्षिक अपव्यय 121 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है, जिसमें घरों में बर्बाद होने वाले खाने के भोजन का हिस्सा 74 किलोग्राम है. यह रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई, जब कोविड-19 के कारण सरकार अपनी तमाम खाद्य योजनाओं के बावजूद, बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए संघर्ष में जुटी है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (2020) में भारत का स्कोर 27.2 है, जिसका मतलब है कि भारत में भुखमरी के आंकडे़ चिंताजनक हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का 94वां स्थान है, जबकि पाकिस्तान (88), नेपाल (73), बांग्लादेश (45) और इंडोनेशिया का 70वां स्थान है. श्रीलंका और म्यांमार की स्थिति भी भारत से अच्छी है. इंडेक्स में भारत की स्थिति रावांडा, नाईजीरिया, अफगानिस्तान, लीबिया, मोजाम्बिक और चाड से सुधरी हुई है. चीन सूची में सबसे ऊपर है.

भारत में खाने की बर्बादी

भारत में हर साल प्रति व्यक्ति 50 किलो भोजन की बर्बादी होती है. भारत में 2011 की जनगणना के मुताबिक जनसंख्या का 14 फीसदी (169.4 मिलियन) हिस्सा कुपोषित है. इसके बावजूद, पिछले चार वर्षों में खराब सिस्टम के कारण 11,520 टन खाद्यान्न बर्बाद हुआ.

दक्षिण एशियाई देशों में, सबसे अधिक खाने की बर्बादी करने में अफगानिस्तान (82 किग्रा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष) सबसे आगे है. इसके बाद नेपाल में 79 किग्रा, श्रीलंका में 76 किग्रा, पाकिस्तान में 74 किग्रा और बांग्लादेश में 65 किग्रा खाने की बर्बादी होती है. खाने की बर्बादी के मामले में भारत सबसे निचले पायदान पर है.

भारत में अनाज की बर्बादी

2 फरवरी, 2021 को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए, उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने कहा था कि भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न गोदामों में 2017 और 2020 के बीच 11,520 टन अनाज सड़ गया था, जिसके परिणामस्वरूप करीब 150 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

भारत में लॉकडाउन और भुखमरी (हंगर वॉच रिपोर्ट)

दिसंबर 2020 में 'राईट टू फूड फाउंडेशन' की 'द हंगर वॉच रिपोर्ट' में खुलासा हुआ था कि, लॉकडाउन में कई परिवारों को भूखा सोना पड़ा था. इसमें कहा गया था कि 2015 से अब तक देश में करीब 100 लोगों की भूख से मौत हो चुकी है.

भुखमरी मिटाने में शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रौद्योगिकी का महत्व

जब बच्चे शिक्षित होते हैं, तो महिलाओं की पहुंच स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं और तकनीकी तक आसानी से होने लगती होती है और उनमें अपने और समुदायों के बेहतर भविष्य का निर्माण करने की क्षमता विकसित होती है.

शिक्षा तक पहुंच

गरीबी को मिटाने में शिक्षा का बड़ा महत्व होता है, लेकिन लाखों लोग इससे वंचित हैं, लेकिन

  • कोरोना महामारी के कारण 20 मिलियन से भी ज्यादा सेकेंडरी स्कूल की छात्राओं ने निश्चित रूप से स्कूल छोड़ दिया है.
  • 8 फीसदी राशि, जो प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के लिए छात्र की संभावित आय में जोड़ी जाती है, वह छह सालों में 50 फीसदी से ऊपर पहुंच चुकी है.
  • 171 मिलियन लोग गरीबी से बच सकते थे, यदि निम्न-आय वाले देशों के सभी छात्रों को बुनियादी और बेहतर शिक्षा दी जाती.
  • दुनिया भर में 132 मिलियन लड़कियां स्कूल ही नहीं जाती हैं.

स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच

सभी लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और उनके कल्याण को बढ़ावा देना, भुखमरी को जड़ से मिटाने में आवश्यक है. जब लोगों की स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच आसानी से होती है, तो वे स्वस्थ और आत्मनिर्भर जीवन जीने में समर्थ होते हैं, लेकिन...

  • 3.5 मिलियन लोग उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं.
  • निम्न आय वाले देशों में चार में से एक महिला को आधुनिक गर्भनिरोधक की जरूरत है.
  • इलाज में अधिक खर्च होने के कारण हर साल 100 मिलियन लोग गरीब हो रहे हैं.
  • गर्भावस्था और जन्म से संबंधित इलाज में हर दिन 810 महिलाओं की मौत हो रही है.

तकनीकी तक पहुंच

प्रौद्योगिकी के जरिए आवश्यक जानकारी, ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवाएं, जीवन रक्षक आपदा चेतावनियां और शिक्षा के अवसरों तक पहुंचने में मदद मिलती है, लेकिन...

  • 3.7 बिलियन लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है.
  • 1 जीबी डेटा, उप-सहारा अफ्रीका में औसत मासिक वेतन का 40 फीसदी खर्च होता है.
  • 144 देशों में ऑनलाइन आने वाली 600 मिलियन महिलाएं वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद में 18 बिलियन डॉलर तक का योगदान देंगी.
  • 500 मिलियन छात्रों की दूरस्थ शिक्षा (Remort Learing) तक पहुंच नहीं है.
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