लखनऊ : अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) ने लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 2002 से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) के रूप में मनाने की शुरुआत की. इसके पीछे का मकसद हर साल विश्व में बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या को रोकना है. यूनिसेफ (UNICEF) के आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में 16 करोड़ बाल श्रमिक (Child Labour) हैं. इसमें पिछले साल की तुलना में 84 लाख की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका एक बड़ा कारण कोरोना संक्रमण (Corona Infection) है. हर साल हमारी सरकार के द्वारा इस दिन बाल श्रम पर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन आज भी बाल श्रम का उन्मूलन नहीं किया जा सका है.
कानून में बाल श्रम को खतरनाक और गैर खतरनाक दो श्रेणियों में बांटा गया है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बाल श्रम निषेध के लिए कानून को और मजबूत किया है. 1986 के बाल श्रम कानून (Child Labour Act 1986) में संशोधन किया गया. खतरनाक माने जाने वाले ईंट-भट्ठा, होटल और गैराज में 18 साल तक के लड़कों के काम करने पर रोक लगाई गई. वहीं पकड़े जाने पर 50 हजार का जुर्माना और 2 साल तक की सजा का प्रावधान भी रखा गया ताकि कानून के डर से बाल मजदूरी पर रोक लगाई जा सके.
बढ़ती जा रही है बाल श्रमिकों की संख्या
साल 2002 से बाल श्रम निषेध दिवस को मनाने की शुरुआत हुई. इन दो दशकों के भीतर विश्व में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़कर अब 16 करोड़ पहुंच गई है. पिछले साल के मुकाबले इस साल 84 लाख बाल श्रमिक बढ़े हैं. वही यूनिसेफ की रिपोर्ट में बाल मजदूरी में 5 साल से 11 साल की बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जबकि देश में एक करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल श्रमिक हैं. वहीं केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 1986 के बाल श्रम निषेध कानून को और मजबूती प्रदान की है. 2016 में इस कानून में बड़े बदलाव किए गए, जिस वजह से यह कानून पहले से भी ज्यादा सख्त हुआ है.
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क्या है बाल श्रम निषेध दिवस
विश्व स्तर पर बाल श्रम उन्मूलन (Abolition of Child Labour) के लिए यह दिवस मनाया जाता है. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा विश्व स्तर पर 5 से 17 साल की उम्र तक के बच्चों के काम करने से रोकने के लिए 2002 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई. बाल श्रम की वजह से बच्चों को पर्याप्त शिक्षा, उचित स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं, जिसकी वजह से उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी बाधित होता है.
बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व
12 जून को मनाए जाने वाले बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व काफी व्यापक है. बाल श्रम की समस्या को मिटाने और बच्चों को खतरनाक श्रम की परिस्थितियों से बाहर निकालने के लिए यह दिवस विशेष तौर पर मनाया जाता है. मादक पदार्थों की तस्करी और वेश्यावृत्ति जैसी अवैध गतिविधियों में बच्चों को इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है. ऐसी स्थितियों से बच्चों को मुक्त कराना इस दिवस को मनाए जाने का विशेष उद्देश्य है.
आर्थिक परिस्थितियों की वजह से बढ़ रहा बाल श्रम
स्कूल जाने और खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों की एक बड़ी आबादी दो जून की रोटी के लिए बाल मजदूरी करने को मजबूर है. आज भी देश में ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिनसे जबरन बाल मजदूरी कराई जाती है. वहीं बच्चों की बड़ी संख्या परिस्थितियों के आगे भी अपने बचपन को भुलाकर खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर होते हैं.
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उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बाल श्रमिक
देश में बाल श्रम, बाल शोषण और बाल व्यापार एक बड़ी समस्या बन चुका है. इसके लिए आर्थिक तंगी, भुखमरी जैसे कारण जिम्मेदार हैं. यूनिसेफ के मुताबिक, दुनिया भर के कुल बाल मजदूरों में 12 फीसदी की हिस्सेदारी भारत की है. पूरी दुनिया में बाल मजदूरी लगातार बढ़ रही है. इसकी एक बड़ी वजह आर्थिक परिस्थितियां भी हैं. विश्व में अफ्रीका एक ऐसा देश है, जहां पर 7 करोड़ से भी ज्यादा बाल श्रमिक है. वहीं देश में उत्तर प्रदेश बाल श्रमिकों की संख्या के मामले में आगे है. यहां 21.80 लाख बाल श्रमिक मौजूद हैं, जबकि दूसरे नंबर पर बिहार है.
कोरोना की वजह से बढ़े बाल श्रमिक
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 की वजह से लाखों बच्चे बाल श्रम के दलदल में ढकेले जा रहे हैं. इसी वजह से पहली बार विश्व में पिछले साल के मुकाबले इस साल बाल श्रमिकों की संख्या में 84 लाख का इजाफा हुआ है, जो इस बात का सबूत है कि परिवारों की खराब हो रही आर्थिक हालत के चलते बच्चों से मदद ली जा रही है. इस वैश्विक महामारी के कारण जहां स्कूल बंद हैं तो वहीं बाल श्रम बढ़ रहा है. कोविड-19 के संकट काल में गरीबी बढ़ी है क्योंकि बेरोजगारी की दर भी पहले के मुकाबले बढ़ी है. इससे दो जून की रोटी कमाने वाले परिवारों पर मुसीबत आन पड़ी है.
बाल श्रम को रोकने के लिए सरकार के प्रयास
उत्तर प्रदेश में बाल श्रम को रोकने के लिए यूनिसेफ के द्वारा 'नया सवेरा' योजना 2017 से चलाई जा रही है. फिलहाल यह योजना प्रथम चरण में 14 जिलों में काम कर रही है जिसके अंतर्गत 25 से अधिक कामकाजी बच्चों को चिन्हित करके उनका शैक्षिक और बौद्धिक विकास के माध्यम से मुख्यधारा से जोड़ने का काम हो रहा है. वहीं दूसरी प्रमुख योजना बाल श्रमिक विद्या योजना है, जिसके अंतर्गत ऐसे बाल श्रमिक, जिनके माता पिता ना हो या माता-पिता में से कोई एक ना हो. वही इनकी पहचान करके इन्हें शैक्षिक संस्थाओं से जोड़ा जाता है. वहीं ऐसे बच्चों को सरकार 3 साल तक ₹1000 महीने की छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है.
लखनऊ परिक्षेत्र में चलाया गया बाल श्रम निषेध अभियान
राजधानी लखनऊ के अपर श्रम आयुक्त बी.के राय (Additional Labour Commissioner BK Rai) ने बताया, बाल श्रम निषेध के लिए समय-समय पर टास्क फोर्स के द्वारा अभियान चलाया जा रहा है. श्रम विभाग के द्वारा गठित टास्क फोर्स खतरनाक श्रेणी के फैक्ट्रियों में काम करने वाले बाल श्रमिकों को मुक्त कराया जा रहा है. वहीं इन्हें समाज की मुख्यधारा से जुड़कर इनका शैक्षिक और बौद्धिक विकास भी किया जा रहा है.
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बाल श्रम के खिलाफ चलाए गए अभियान
अगर लखनऊ मण्डल में पिछले तीन सालों में बाल श्रम के खिलाफ चलाए गए अभियान की बात करें तो 2018 में 264, 2019 में 426 और 2020 में 247 बच्चों को मुक्त कराया गया.