मैसूर: विद्यारण्यपुरम जिले के वीरशिव रुद्र भूमि पर रहने वाली एक बुजुर्ग महिला पिछले 17 सालों से शवों का अंतिम संस्कार (Funeral) कर रही है. नीलम्मा अपनी शादी के बाद से ही कब्रिस्तान में रह रही है. वह एचडी कोटे की रहने वाली थीं. उनके पति भी दफनाने का काम (Working For The Burial) करते थे. 2005 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई. जब उनके पति की मृत्यु हुई तो वह भविष्य को लेकर असमंजस में थीं. वह और कोई काम नहीं जानती थी इसलिए उसने अंतिम संस्कार का काम शुरू किया जो उनके पति कर रहे थे. वह कब्रिस्तान के अंदर ही काम करती है.
पढे़: International Women's Day : एशिया की पहिला महिला लोको पायलट सुरेखा यादव
उनके काम पर किसी ने आपत्ति नहीं की. वह पिछले 17 साल से कब्रिस्तान (Living In The Cemetery) में रह रही है. शुरूआत में उसे सिर्फ 200 रुपए मिलते थे. अब 1000 रुपए मिलने लगे हैं. एक कब्र खोदने में 3 से 3:30 घंटे का समय लगता है. वह अब बूढ़ी हो गई है. तो कभी-कभी उसका बेटा उसकी मदद करता है. एक बार खुदाई करते समय वह कुदाल से घायल हो गई. अस्पताल से पट्टी कराने के बाद ही वह कब्रिस्तान में काम करने लगी. मोतियाबिंद की तकलीफ थी, ऑपरेशन के बाद ठीक हो गई. वह 65 साल की उम्र में स्वस्थ है. वह कब्रिस्तान में ही रह रही है. नीलम्मा अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ खुश हैं. उन्होंने कहा कि कोई डर नहीं है. जब तक पति जीवित थे मैं उनके साथ रही.
लोगों के पास सुख और संतुष्टि के अलावा सब कुछ है. तनाव और झगड़े के कारण वे आत्महत्या कर लेते हैं. यह पूरी तरह गलत है. हमारे पास जो है उसी में खुश रहना चाहिए. हमारे पास कोई संपत्ति नहीं है. यह कब्रिस्तान हमारा नहीं है. पर मैं खुश हूं. धूप या बारिश के मौसम में भी मैं कब्रिस्तान में काम करती हूं. मैं इस काम से सहज और खुश हूं. मैंने जीवित रहते हुए कुछ भी दान नहीं किया. हां लेकिन मैंने और मेरे बच्चों ने मेडिकल छात्रों की मदद के लिए अपना शरीर मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया है. कई संगठनों ने नीलम्मा को उनके काम के लिए सम्मानित भी किया है.