चंडीगढ़ PGI एडवांस आई सेंटर में ना सिर्फ चंडीगढ़ बल्कि अन्य राज्यों से आने वाले मरीजों का भी इलाज किया है. लेकिन नेत्रदान प्रक्रिया में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की भागीदारी आश्चर्यजनक रूप से है. बीते 1 साल में पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 51 प्रतिशत महिलाओं द्वारा ही नेत्रदान किया गया है. वहीं डॉक्टरों की मानें तो नेत्रदान जैसे नेक काम को ना कर पाने की वजह परिवार का दबाव और कई तरह के भ्रम हैं.
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क्या कहती है नेत्रदान सर्वे रिपोर्ट: चंडीगढ़ पीजीआई जैसा संस्थान जहां बड़े स्तर पर रिसर्च और गंभीर बीमारियों का इलाज किया जाता है.साथ ही एडवांस आई सेंटर के डॉक्टरों द्वारा आंखों से जुड़ी हर समस्या का हल किया जाता है. इन्हीं समस्याओं को देखते हुए. पीजीआई और चंडीगढ़ के कॉलेज द्वारा पिछले साल नेत्रदान आंकड़ों से संबंधित सर्वे किया गया था. सर्वे विशेष तौर पर लड़कियों पर किया गया था. इस सर्वे में चंडीगढ़ की एमसीएम डीएवी कॉलेज की 1000 से अधिक छात्राओं ने हिस्सा लिया था. जहां उनसे तकरीबन 40 सवाल पूछे गए थे.
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कम करती हैं नेत्रदान: इस सर्वे की रिपोर्ट को 2023 जून में इंडियन जर्नल आप्थाल्मालॉजिस्ट में प्रकाशित किया गया था. पीजीआई एडवांस आई सेंटर के डॉक्टरों की मानें तो महिलाओं की तुलना में पुरुषों के नेत्रदान का प्रतिशत ज्यादा है. लेकिन एक बात यह भी देखी गयी है कि पुरुषों को नेत्रदान करने के लिए महिलाओं द्वारा ही जागरूक किया जाता है. जबकि महिलाएं खुद नेत्रदान करने की संख्या में पीछे है. इस सर्वे को कराने वाले पीजीआई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर पारुल चावला और एमसीएम डी ए वी कॉलेज के सोशियोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी राना द्वारा इस सर्वे को लेकर विशेष बातचीत की गई.
लोगों में जागरूकता की कमी: वर्तमान में भारत में लगभग 102 मिलियन लोग कार्नल ब्लाइंड है और देश में वार्षिक तौर पर 25 से 30 हजार लोगों की आंखों को लेकर मांग रहती है. वहीं, पीजीआई में लगभग 2200 मरीज अपने कॉर्निया का प्रत्यारोपण यानि आई ट्रांसप्लांट के लिए इंतजार कर रहे हैं. लेकिन अस्पताल को हर साल केवल 400 से 500 कार्निया ही मिल पाते हैं. जिसमें पुरुषों की ही नेत्रदान की ज्यादा भागीदारी रहती है. ऐसे में करवाए जा रहे सर्वे का मुख्य उद्देश्य बड़े पैमाने पर जन जागरूकता पैदा करना है और कॉर्निया की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को मिटाने का है.
ज्यादातर लोग नहीं करना चाहते नेत्रदान: सर्वे के मुताबिक कॉलेज जाने वाली लड़कियों को नेत्रदान से संबंधित जागरूकता या तो उन्हें डॉक्टर और हेल्थ वर्कर की तरफ से मिली है, या उन्हें किसी सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त हुई है. लेकिन उन्हें परिवार और दोस्तों के बीच नेत्रदान करने की जानकारी सांझी नहीं की गई. वहीं सर्वे के दौरान एक सवाल जो हैरान करने वाला था जिसमें पूछा गया था कि क्या वे अपनी आंखों को डोनेट करना चाहते हैं? ऐसे में 80% के करीब छात्राओं ने उत्तर ना में दिया. सिर्फ 36% छात्राओं ने ही अपनी आंखों को डोनेट करने की इच्छा जाहिर की.
नेत्रदान पर क्या कहती है युवा पीढ़ी: जींद की रहने वाली बीए भाग 2 की छात्रा निशा ने बताया कि सर्वे में काफी छात्रों द्वारा हिस्सा लिया गया था. इस सर्वे में हम सभी से नेत्रदान से संबंधित सवाल किए गए थे. जिसका सभी छात्रों द्वारा जवाब दिया गया. इस सर्वे के दौरान हमें कई तरह की जानकारी प्राप्त हुई. परिवार की अनुमति के बिना कुछ नहीं करना चाहिए. क्योंकि वह हमारा अच्छा भला सब समझते हैं. वहीं नेत्रदान जैसे बड़े फैसले को लेकर आगे की जिंदगी पर असर हो सकता है.
सर्वे में छात्राओं को किया शामिल: पीजीआई एडवांस आई सेंटर की एसोसिएट प्रोफेसर पारूल चावला ने बताया कि पीजीआई और चंडीगढ़ के कॉलेज के साथ करवाए गए सर्वे को स्नो बोलिंग टेक्निक का नाम दिया गया था. ऐसे में सर्वे में छात्राओं को ही शामिल करने की बड़ी वजह यह थी कि एक लड़की ही होती है, जो एक परिवार से दूसरे परिवार को अपने विचारों अपनी अच्छी आदतों और अपनी सूझबूझ के आगे बढ़ती है. इस माध्यम से सर्वे में शामिल होने वाली लड़कियां अपने परिवार व आस पड़ोस को भी जागरूक कर पाएंगी. सर्वे के दौरान कई बातें सामने आई इनमें से एक कि अगर नेत्रदान की जागरूकता महिलाओं और लड़कियों में होगी, तो वह नेत्रदान में सहयोग कर पाएंगी.
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शिक्षण संस्थानों पर सर्वे: एमसीएम DAV कॉलेज के सोशियोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी राणा ने बताया इस तरह का सर्वे पहले एमसीएम दव कॉलेज में करवाया गया था, जहां पीजीआई का बराबर सहयोग रहा था. वहीं इस सर्वे को करवाने और इसे ऑब्जर्व करने का काम मेरा था. मैंने पाया कि इस सर्वे के दौरान महिला छात्रों में जागरूकता की बड़े स्तर पर कमी है. इस सर्वे में 18 साल की उम्र से अधिक छात्राओं को शामिल किया गया था. डॉ. मीनाक्षी ने बताया कि कॉलेज में पढ़ने वाले अधिकतर छात्रों को डोनेशन से संबंधित जानकारी की कमी रहती है.