देहरादूनः भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में रक्तदान को लेकर लोगों की उदासीनता चिंता का सबब रही है. इसी तरह भारत समेत कई देशों में महिलाओं का रक्तदान में पीछे रहना भी आश्चर्यजनक रहा है. उत्तराखंड में महिलाओं को लेकर कुछ ऐसे ही आंकड़े सामने आते रहे हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) समेत भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से संबंधित संस्थाएं रक्तदान को लेकर न केवल जागरूकता और रक्तदान शिविर आयोजन पर काम करती है, बल्कि इससे संबंधित स्थितियों पर भी नजर रखती है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि खून की जरूरत पर WHO द्वारा तय मानक के लिहाज से भारत ब्लड कलेक्शन नहीं कर पाता. आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल जरूरत के करीब 95 प्रतिशत सालाना रक्त का ही कलेक्शन हो पा रहा है. उधर उत्तराखंड के स्तर पर देखें तो यहां भी स्थिति संतोषजनक नहीं है. जानिए उत्तराखंड समेत देश के महत्वपूर्ण राज्यों में खून की उपलब्धता को लेकर स्थिति...
रक्तदान को लेकर महिलाएं जागरूक नहीं है, यह कहना शायद सही नहीं होगा. लेकिन आंकड़ों पर विश्वास करें तो महिलाएं इस मामले में पुरुषों से कुछ पीछे रह जाती है. हालांकि, इसके पीछे महिलाओं की शारीरिक दिक्कतों को भी माना जा रहा है. समाजसेवी और महिलाओं के उत्थान से जुड़े काम करने वाली डॉ. साधना शर्मा का कहना है कि महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी के साथ ही ऐसे कई शारीरिक समस्याएं होती हैं, जिसके कारण महिलाओं को रक्तदान करने में समस्या आती है.
उन्होंने कहा कि महिलाएं रक्तदान को लेकर पूरी तरह से जागरूक हैं और रक्तदान के महत्व को भी समझती हैं. लेकिन क्योंकि खून की कमी समेत तमाम दूसरी दिक्कतों के कारण उनका रक्त नहीं लिया जा सकता. इसलिए वह इस मामले में पुरुषों से पीछे रह जाती हैं.
उत्तराखंड महिला एसोसिएशन की तरफ से कराए गए सर्वे में भी काफी चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. करीब 300 से ज्यादा महिलाओं पर किए गए सर्वे में 200 महिलाओं में हीमोग्लोबिन 10 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम रहा. इस तरह शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को भी अलग-अलग वर्गीकृत किया गया, जिसमें पाया गया कि शहरी क्षेत्रों की महिलाओं में हीमोग्लोबिन 7 से 8 ग्राम प्रति डेसीलीटर के बीच औसतन रहा, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में हीमोग्लोबिन 10 से अधिक औसतन पाया गया. इस तरह खानपान में भिन्नता भी महिलाओं में खून की कमी की वजह दिखाई दी.
महिलाओं में खून की कमी है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता, सरकार भी इस बात को मानती है, लेकिन महिलाओं में विभिन्न कारणों से शारीरिक कमी का तर्क देकर सरकारें मामले में बचने की कोशिश करती हैं. अब जानिए महिलाओं का रक्तदान को लेकर पुरुषों के मुकाबले योगदान कम क्यों है?
राज्य सरकारी रक्तदान के लिए कई नई कार्यक्रम चलाती है. इसी कड़ी में उत्तराखंड सरकार ने तो एक कॉलेज को पूरी तरह ब्लड डोनेशन कॉलेज के रूप में स्थापित करने और सीएमओ द्वारा हर जिले में एक ब्लड डोनेशन से जुड़े गांव को गोद लेने तक की स्कीम निकाली है. लेकिन अब तक की स्थिति देखें तो राज्य में महिलाओं का रक्तदान को लेकर आंकड़ा संतोषजनक नहीं है. इस पर स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत कहते हैं कि प्रयास किया जा रहा है कि सभी वर्ग को रक्तदान में जोड़ा जा सके, हालांकि रक्तदान किसी एक वर्ग का विषय नहीं है, लेकिन फिर भी महिलाओं की इसमें सहभागिता बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास किए जाएंगे.
रक्तदान का क्या महत्व है इस बात को बताने के लिए भी डब्ल्यूएचओ के आंकड़े ही आंखें खोलने वाले हैं. भारत में रक्तदान और इसकी जरूरतों को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े जानिए.
इस मामले पर चिकित्सक मानते हैं कि ऐसी स्थितियों के लिए महिलाओं को अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है और उन्हें खानपान में सुधार रखना चाहिए ताकि वह शारीरिक रूप से मजबूत हो सके. दून मेडिकल कॉलेज की चिकित्सक शशि उप्रेती का कहना है कि महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है कि वह आयरन के साथ न्यूट्रिशन का भी खास ध्यान रखें और अपने जीवन में खानपान पर भी विशेष ध्यान दें.
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