हैदराबाद : 11 अगस्त को मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा में जबरदस्त हंगामा हुआ था. उस दिन इंश्योरेंस बिल पर चर्चा के दौरान सरकार और विपक्ष में तीखी नोकझोंक हो गई थी. उस दौरान उपसभापति हरिवंश सदन को नियंत्रित कर रहे थे. हालात इतने बुरे हो गए कि मार्शल को बुलाना पड़ा. इस दौरान सांसदों पर मार्शल से हाथापाई के आरोप लगे थे.
सभापति को है निलंबित करने का अधिकार : शीतकालीन सत्र (Winter Session 2021) की शुरूआत भी हंगामेदार रही और सभापति वैंकेया नायडू ने पिछले सत्र में की गई अनुशासनहीनता के आरोप में टीएमसी, सीपीआई, शिवसेना और कांग्रेस के कुल 12 सांसदों को निलंबित कर दिया. सभापति वैंकेया नायडू ने राज्यसभा के नियम 256 (rule 256) के तहत निलंबन की कार्रवाई की. ऊपरी सदन यानी राज्यसभा के रूल बुक के मुताबिक, सभापति के पास किसी सदस्य को एक दिन या कुछ दिन या फिर पूरे सत्र के लिए निलंबित करने का अधिकार होता है. राज्यसभा के रूल बुक के नियम 255 के तहत किसी सदस्य को एक दिन के लिए निलंबित किया जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि राज्यसभा में निलंबन की कार्रवार्ई पहली बार हुई है. इसकी शुरूआत नेहरू युग में हो गई थी. राज्य सभा में असंसदीय व्यवहार के कारण सबसे पहले 3 सितंबर 1962 को सांसद गोडे मुरहरी को निलंबित किया गया था. गोडे मुरहरी इसके बाद भी10 सितंबर 1966 को शेष सत्र के लिए निलंबित किए गए. उनके साथ सांसद भूपेश गुप्ता पर भी निलंबन की कार्रवाई हुई.
राजनारायण को भी किया गया था तीन बार सस्पेंड : 25 जुलाई, 1966 को तीसरी बार गोडे मुरहरी एक सप्ताह के लिए राज्यसभा से निलंबित किए गए. उनके साथ प्रख्यात समाजवादी नेती राज नारायण को भी निलंबित किया गया. राजनारायण कुल तीन बार 1966, 1967 और 1974 में भी निलंबित किए गए. इसके अलावा बी एन मंडल भी 1966 में राज्यसभा से निलंबित किए गए. यह वही बी एन मंडल थे, जनता पार्टी के शासन के दौरान मंडल कमीशन के चेयरमैन बनाया गया था. 29 जुलाई, 1987 को पुट्टापागा राधाकृष्ण को एक हफ्ते के लिए निलंबित किया गया था.
9 मार्च 2010 को मंत्री से महिला आरक्षण बिल छीनने वालों 7 सांसदों कमल अख्तर, वीर पाल सिंह यादव, एजाज अली, साबिर अली, सुभाष प्रसाद यादव, आमिर आलम खान, नंद किशोर यादव को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था. हालांकि बाद में कुछ सदस्यों का निलंबन वापस हो गया. 22 सितंबर 2020 को भी राज्यसभा में कृषि बिल पारित करने को लेकर हुए हंगामे के बाद 8 सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था.
लोकसभा में भी होती रही है निलंबन की कार्रवार्ई : राज्यसभा के अलावा लोकसभा में भी पहले सांसदों के निलंबन (suspension of mps) की कार्रवाई की गई. लोकसभा अध्यक्ष भी नियमावली 374 (ए) के तहत सांसद को निलंबित कर सकते हैं. अगस्त 2015 में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस पार्टी के 25 सांसदों को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया था. ये सांसद काली पट्टी बांधकर संसद की कार्रवाई में शामिल हुए थे. फ़रवरी 2014 में लोकसभा के शीतकालीन सत्र (Winter Session) में 17 सांसदों को 374 (ए) के तहत ही निलंबित कर दिया गया था. 23 अगस्त 2013 को मानसून सत्र के दौरान हंगामा करने वाले 12 सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष ने सस्पेंड कर दिया था.
संसद के इतिहास में सबसे बड़ा निलंबन 1989 में लोकसभा में हुआ था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने के दौरान सांसद हंगामा कर रहे थे. अध्यक्ष ने 63 सांसदों को निलंबित कर दिया था. इस कार्रवाई के बाद संसदों के लिए नियम-कायदे भी तय किए गए. जिसमें बैनर-पोस्टर पर बैन लगाया गया.
क्या इन सांसदों का निलंबन (suspension of mps) रद्द हो सकता है : लोकसभा हो या राज्यसभा. लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति माफी मांगने पर निलंबन रद्द कर सकते हैं. वह निलंबन की अवधि कम भी कर सकते हैं.