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West Bengal: क्या संगठनात्मक चुनाव तृणमूल कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र ला पाएंगे ?

तृणमूल कांग्रेस का गठन 1998 में हुआ था. लेकिन तब से लेकर आज तक पार्टी में कभी भी संगठनात्मक चुनाव नहीं हुए हैं. यह पहली बार है कि पार्टी ने संगठनात्मक चुनाव कराने का फैसला किया है.

Trinamool Congress
तृणमूल कांग्रेस
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Published : Jan 20, 2022, 3:55 PM IST

कोलकाता: 1998 में अपनी स्थापना के बाद से, शायद पहली बार तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) में संगठनात्मक चुनाव होंगे. ममता बनर्जी ने खुद को कांग्रेस से अलग करने के बाद तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. एक पार्टी के रूप में तृणमूल कांग्रेस को स्थापित होने के दौरान कई उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा. अब तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी है. ऐसे में संगठनात्मक चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. मंगलवार को पार्टी महासचिव पार्थ चट्टोपाध्याय ने कहा कि संगठनात्मक चुनाव (Organizational Polls) 2 फरवरी, 2022 को होंगे.

क्या बदल जायेगा संगठनात्मक स्वरूप

अगले तीन महीने तक पार्टी के सांगठनिक ढांचे में फेरबदल होगा. प्रतिनिधियों और मतदाता सूची को 25 जनवरी तक अंतिम रूप दिया जाएगा और चुनाव पर्यवेक्षक के नाम की घोषणा की जाएगी. 31 मार्च 2022 तक पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. जल्द ही संगठनात्मक चुनावों की अधिसूचना जारी की जाएगी.

राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी स्वीकार्यता

तृणमूल कांग्रेस की राजनीति को लेकर कुछ सवाल उठते रहे हैं. पहला यह कि क्या इस साल के संगठनात्मक चुनावों में जो नया होने जा रहा है, वह तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर अधिक स्वीकार्य बनाएगा. क्योंकि अभी तक तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी की ही पार्टी मानी जाती है.

कितनी लोकतांत्रिक होगी चुनावों की प्रक्रिया

हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों और विशेषज्ञों को इस बात पर संदेह है कि तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टी में संगठनात्मक चुनावों की प्रक्रिया कितनी लोकतांत्रिक (Democratic) होगी. इस मामले में कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार राजगोपाल धर चक्रवर्ती को लगता है कि संगठनात्मक चुनाव निश्चित रूप से इस बार पार्टी को एक अलग आयाम देंगे.

पढ़ें : 'शुभेंदु को रोके जाने पर भड़के गवर्नर', मुख्य सचिव से सात दिनों के अंदर मांगा जवाब

बंगाल से बाहर विस्तार का सपना

अब पार्टी गंभीरता से पश्चिम बंगाल के बाहर अपना आधार फैलाने की कोशिश कर रही है. इसके लिए नेताओं के बीच जिम्मेदारियों का बंटवारा और महत्वपूर्ण समितियों का गठन जरूरी है. इसके बिना पश्चिम बंगाल (West Bengal) के बाहर के नेताओं के बीच भावनात्मक संबंध विकसित नहीं हो सकते हैं.

अंतिम फैसला ममता बनर्जी का ही

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री, सोवंडेब चट्टोपाध्याय ने ईटीवी भारत से कहा कि यह स्वाभाविक है कि किसी भी फैसले में अंतिम फैसला ममता बनर्जी का ही होगा. लेकिन साथ ही वह हमेशा निर्णय लेने से पहले पार्टी के अन्य नेताओं से सलाह लेती हैं. वह हमेशा संगठन में संतुलन बनाती हैं.

कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृतियों में समानता

हालांकि, कुछ जानकारों को लगता है कि तृणमूल कांग्रेस में राजनीतिक माहौल अभी भी केंद्रित और एक परिवार तक सीमित रहेगा. राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर, राजीव चौधरी ने कहा कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृतियों में समानता है. जिस तरह गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की राजनीति अधूरी है, उसी तरह तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी और उनके परिवार के बिना सब कुछ अधूरा है.

कोलकाता: 1998 में अपनी स्थापना के बाद से, शायद पहली बार तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) में संगठनात्मक चुनाव होंगे. ममता बनर्जी ने खुद को कांग्रेस से अलग करने के बाद तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. एक पार्टी के रूप में तृणमूल कांग्रेस को स्थापित होने के दौरान कई उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा. अब तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी है. ऐसे में संगठनात्मक चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. मंगलवार को पार्टी महासचिव पार्थ चट्टोपाध्याय ने कहा कि संगठनात्मक चुनाव (Organizational Polls) 2 फरवरी, 2022 को होंगे.

क्या बदल जायेगा संगठनात्मक स्वरूप

अगले तीन महीने तक पार्टी के सांगठनिक ढांचे में फेरबदल होगा. प्रतिनिधियों और मतदाता सूची को 25 जनवरी तक अंतिम रूप दिया जाएगा और चुनाव पर्यवेक्षक के नाम की घोषणा की जाएगी. 31 मार्च 2022 तक पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. जल्द ही संगठनात्मक चुनावों की अधिसूचना जारी की जाएगी.

राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी स्वीकार्यता

तृणमूल कांग्रेस की राजनीति को लेकर कुछ सवाल उठते रहे हैं. पहला यह कि क्या इस साल के संगठनात्मक चुनावों में जो नया होने जा रहा है, वह तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर अधिक स्वीकार्य बनाएगा. क्योंकि अभी तक तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी की ही पार्टी मानी जाती है.

कितनी लोकतांत्रिक होगी चुनावों की प्रक्रिया

हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों और विशेषज्ञों को इस बात पर संदेह है कि तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टी में संगठनात्मक चुनावों की प्रक्रिया कितनी लोकतांत्रिक (Democratic) होगी. इस मामले में कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार राजगोपाल धर चक्रवर्ती को लगता है कि संगठनात्मक चुनाव निश्चित रूप से इस बार पार्टी को एक अलग आयाम देंगे.

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बंगाल से बाहर विस्तार का सपना

अब पार्टी गंभीरता से पश्चिम बंगाल के बाहर अपना आधार फैलाने की कोशिश कर रही है. इसके लिए नेताओं के बीच जिम्मेदारियों का बंटवारा और महत्वपूर्ण समितियों का गठन जरूरी है. इसके बिना पश्चिम बंगाल (West Bengal) के बाहर के नेताओं के बीच भावनात्मक संबंध विकसित नहीं हो सकते हैं.

अंतिम फैसला ममता बनर्जी का ही

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री, सोवंडेब चट्टोपाध्याय ने ईटीवी भारत से कहा कि यह स्वाभाविक है कि किसी भी फैसले में अंतिम फैसला ममता बनर्जी का ही होगा. लेकिन साथ ही वह हमेशा निर्णय लेने से पहले पार्टी के अन्य नेताओं से सलाह लेती हैं. वह हमेशा संगठन में संतुलन बनाती हैं.

कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृतियों में समानता

हालांकि, कुछ जानकारों को लगता है कि तृणमूल कांग्रेस में राजनीतिक माहौल अभी भी केंद्रित और एक परिवार तक सीमित रहेगा. राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर, राजीव चौधरी ने कहा कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृतियों में समानता है. जिस तरह गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की राजनीति अधूरी है, उसी तरह तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी और उनके परिवार के बिना सब कुछ अधूरा है.

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