नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) मल्लिकार्जुन खरगे ने बुधवार को कहा कि विपक्ष महिला आरक्षण विधेयक पर बहस में पूरा सहयोग करेगा. हालांकि, उन्होंने सरकार के 'इरादों' पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस केंद्र सरकार के उन्होंने इरादों पर बहस करना चाह रही है. मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र सरकार पर चुनाव को देखते हुए इस विधेयक का प्रचार करने का आरोप लगा रही है. खरगे ने कहा कि विधेयक के खामियों और कमियों को दूर करके इसे जल्द से जल्द कार्यान्वयन में लाने पर जोर दिया जाना चाहिए.
खरगे ने कहा कि 2010 में, हमने राज्यसभा में विधेयक पारित किया था. लेकिन यह लोकसभा द्वारा पारित होने में विफल रहा. इसलिए, यह कोई नया विधेयक नहीं है. अगर उन्होंने उस विधेयक को आगे बढ़ाया होता, तो यह जल्द ही पूरा हो गया होता. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि वे इसे चुनावों के मद्देनजर प्रचारित कर रहे हैं.
खरगे ने कहा कि इस बीच, पिछड़े और अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय की महिलाओं को शामिल नहीं करने पर केंद्र की आलोचना करते हुए, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने बुधवार को केंद्र से लोकसभा में 2010 विधेयक पारित करने और आरक्षण शुरू करने का आग्रह किया. सांसद तिवारी ने कहा कि मैं चुनौती देता हूं कि अगर बीजेपी की नीति और नियत ईमानदार है, तो गारंटी दें कि 2024 के चुनाव में महिलाओं को आरक्षण मिलेगा. हम पूरी ताकत से आपके साथ खड़े रहेंगे.
तिवारी ने आगे कहा कि क्या पिछड़े और एससी महिलाएं नहीं हैं? उन्हें शामिल किए बिना आप महिला आरक्षण कैसे लेंगे? मैं केवल यह कहता हूं कि यदि आप ईमानदार थे, तो 2010 का विधेयक जो राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था वह अभी भी मौजूद हैं. आपको उसे लोकसभा में पारित करना चाहिए था और आरक्षण शुरू करना चाहिए था.
इससे पहले विधेयक के कुछ प्रावधानों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस के मीडिया प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महिला सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने की कोई वास्तविक मंशा होती, तो महिला आरक्षण विधेयक तुरंत लागू किया गया होता.
जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया कि अगर प्रधानमंत्री की महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता देने की कोई वास्तविक मंशा होती, तो महिला आरक्षण विधेयक बिना किसी किंतु-परंतु और अन्य सभी शर्तों के तुरंत लागू कर दिया गया होता. उनके और भाजपा के लिए, यह केवल एक चुनावी जुमला है जो कुछ भी ठोस नहीं देता है.