कोलकाता : राजीब बनर्जी और प्रबीर घोषाल के बाद अब दिनेश त्रिवेदी ने तृणमूल कांग्रेस के सदस्य के साथ-साथ राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि वे घुटन महसूस कर रहे थे, क्योंकि वह चुपचाप पश्चिम बंगाल में अतिवादी शासन देख रहे थे. उन्होंने कहा कि इसलिए मैंने दिल की पुकार सुनी और इस्तीफा दे दिया.
उन्होंने कहा कि अब मैं अपने राज्य के लोगों के लिए काम करना चाहता हूं. जहां नेताजी, रवींद्रनाथ टैगोर और विवेकानंद जैसी कई दिग्गज हस्तियों का प्रभाव रहा है. मुकुल रॉय या शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के विवाद में रॉय जैसे नेता थे जो वित्तीय घोटाले में सीबीआई या ईडी से बचने के लिए भगवा खेमे में शामिल हो गए. जब राजीब बनर्जी और प्रोबीर घोषाल भाजपा में शामिल हुए, तब तृणमूल कांग्रेस नेताओं का यह तर्क उनकी स्वच्छ छवि की समग्र स्वीकार्यता की वजह से काम नहीं आया. तब राजीब बनर्जी के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस का तर्क यह था कि राज्य विधानसभा चुनावों से ठीक चार महीने पहले मंत्री पद छोड़ना नैतिक नहीं है.
सपाट और साफ छवि के नेता हैं त्रिवेदी
बनर्जी या घोषाल के मामले में कुछ तृणमूल नेताओं ने यह भी कहा कि कुछ लोग तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को यह समझा रहे हैं कि उन्हें इस बार उम्मीदवारी नहीं मिलेगी. लेकिन तृणमूल नेताओं में से कोई भी तर्क त्रिवेदी के मामले में फिट नहीं बैठता, क्योंकि वे सपाट और साफ पहचान के हैं और तृणमूल कांग्रेस में बहुत कम बोलने वालों में से एक हैं. उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में चुना गया था. राज्यसभा में उनका मौजूदा कार्यकाल का एक साल भी पूरा नहीं हुआ है. इसलिए तृणमूल नेता उनपर हमला नहीं कर पा रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल के अंत में इस्तीफा दिया है. इसलिए शुक्रवार को त्रिवेदी के इस्तीफे पर तृणमूल नेताओं की शुरुआती प्रतिक्रियाएं काफी भद्दी थीं.
तृणमूल के नेताओं ने की आलोचना
तृणमूल के लोकसभा सदस्य कल्याण बंदोपाध्याय ने कहा कि त्रिवेदी गद्दार हैं जिन्होंने चुनाव से पहले तृणमूल का समर्थन छोड़ा है. वहीं तृणमूल सांसद सौगत राय ने कहा कि दिनेश को पार्टी के भीतर अपनी शिकायतों के बारे में चर्चा करनी चाहिए थी. चुनाव से पहले उनका इस्तीफा दुर्भाग्यपूर्ण है. हालांकि अभी तक कोई भी आक्रामक जवाबी हमला त्रिवेदी की ओर से नहीं हुआ है.
तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि त्रिवेदी ने कभी भी पार्टी के भीतर किसी तरह का विद्रोह नहीं दिखाया. लेकिन वह प्रशांत किशोर के पार्टी के रणनीतिकार के रूप में काम करने के फैसले से नाखुश थे. यहां तक कि उन्होंने अपने कुछ विश्वासपात्रों से कहा कि तृणमूल कांग्रेस केवल संघर्ष के वर्षों में ही जनता के लिए स्वीकार्य है. इसलिए वे खुश नहीं थे.
मुकुल राॅय दे रहे तृणमूल को झटका
त्रिवेदी शुरू से ही तृणमूल के साथ थे. 2011 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने से पहले ममता बनर्जी ने अपने द्वारा खाली की गई रेल मंत्री की कुर्सी के लिए त्रिवेदी को नियुक्त किया. हालांकि, यात्री भाड़ा बढ़ने के कारण त्रिवेदी के पार्टी के साथ मतभेद थे और उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था. इसके बाद त्रिवेदी को मुकुल रॉय ने जीत दिलाई. उन्होंने कहा था कि मुकुल रॉय चुनावों में पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रमुख नेतृत्व चेहरों में से एक हैं और मुख्य रूप से उनकी पहल और रणनीति के कारण तृणमूल नेता और मंत्री एक के बाद एक भगवा खेमे में शामिल हो रहे हैं. आज त्रिवेदी ने भी खुद को अलग कर लिया है.
प्रभावशाली व्यक्ति हैं दिनेश त्रिवेदी
तृणमूल और सबका लगभग एक निष्कर्ष है कि वह भी भाजपा में शामिल हो रहे हैं. एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि ऐसा लगता है कि एक राजनीतिक चक्र अब पूरा हो गया है. वैसे त्रिवेदी का शैक्षणिक और पेशेवर करियर भी काफी प्रभावशाली है. उन्होंने कोलकाता के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर्स कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक और ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय से एमबीएस किया है. उन्होंने शिकागो में डेटेक्स के साथ पेशेवर करियर की शुरूआत की. उसके बाद वे भारत लौट आए और ली एंड मुइरहेड (Lee and Muirhead) में शामिल हो गए.
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1984 से उन्होंने अपना एयर फ्रेट बिजनेस शुरू किया. साथ ही वे एक योग्य पायलट भी हैं. ललित कला और संगीत में उनकी रुचि है और वह सितार वादक भी हैं.