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बंगाल चुनाव के अंतिम चरण में क्या कांग्रेस गनी खान चौधरी के किले को बरकरार रख पाएगी - 2019 के लोकसभा चुनाव

पश्चिम बंगाल में मालदा जिले को हमेशा कांग्रेस के किले के रूप में माना जाता रहा है. यह जिले में पार्टी के सांसद रहे एबीए गनी खान चौधरी का किला अधिक माना जाता है. उस जिले के विधानसभा क्षेत्र 29 अप्रैल 2021 को अंतिम चरण के मतदान हुए हैं. पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपने इल किले को बरकरार रख पाएगी.

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Published : May 1, 2021, 1:42 AM IST

कोलकाता : दिवंगत कांग्रेस नेता गनी खान चौधरी के करिश्मे के कारण उनकी मृत्यु के बाद भी कांग्रेस कुछ समय के लिए इस जिले में मौजूद रही. जब वे जीवित थे तो उनकी बहन रूबी नूर के अलावा कोई भी परिवार सक्रिय राजनीति में नहीं आया था.

लेकिन उनकी मृत्यु के बाद केवल उसी परिवार ने जिले में कई सांसदों और विधायकों का उपहार दिया. इस सूची में गनी खान चौधरी के दो भाई, एक भतीजा और एक भतीजी शामिल हैं. यह दुर्लभ संयोग है कि एक दिवंगत नेता के करिश्मे ने लंबे समय तक विभिन्न चुनावों में जीत हासिल करने के लिए उनके परिवार के कई सदस्यों की मदद की.

अभी भी दिवंगत नेता जिले के में एक कारक हैं. अभियान शुरू करने से पहले सभी पक्ष उनके सम्मान में आगे आते हैं. वाम मोर्चे के शासन के दौरान माकपा शायद ही मालदा में सेंध लगा सकी. तृणमूल कांग्रेस के शासन के दौरान भी ममता बनर्जी की पार्टी जिले में ज्यादा बढ़त नहीं बना सकीं.

केवल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जिले से दो लोकसभा क्षेत्रों में से एक पर कब्जा करके मालदा में अच्छी खासी सेंध लगाई है. इसलिए 2021 में मालदा के लोगों को तीन सीटों पर दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल रही है. अब सवाल यह है कि क्या भगवा खेमा इस बार मालदा में और बढ़त बनाएगा?

यह भी पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों

बीजेपी इस बार वहां व्यापक प्रचार के लिए गई थी. लेकिन अपने अभियानों में भी भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के दिवंगत नेता का उल्लेख किया. इस पर एक और सवाल है कि क्या कांग्रेस का इस बार लेफ्ट फ्रंट और ऑल इंडिया सेक्युलर फ्रंट के साथ गठबंधन के साथ मालदा में अपना किला बरकरार रख पाएगी? उत्तर केवल 2 मई 2021 को ही मिल पाएगा.

कोलकाता : दिवंगत कांग्रेस नेता गनी खान चौधरी के करिश्मे के कारण उनकी मृत्यु के बाद भी कांग्रेस कुछ समय के लिए इस जिले में मौजूद रही. जब वे जीवित थे तो उनकी बहन रूबी नूर के अलावा कोई भी परिवार सक्रिय राजनीति में नहीं आया था.

लेकिन उनकी मृत्यु के बाद केवल उसी परिवार ने जिले में कई सांसदों और विधायकों का उपहार दिया. इस सूची में गनी खान चौधरी के दो भाई, एक भतीजा और एक भतीजी शामिल हैं. यह दुर्लभ संयोग है कि एक दिवंगत नेता के करिश्मे ने लंबे समय तक विभिन्न चुनावों में जीत हासिल करने के लिए उनके परिवार के कई सदस्यों की मदद की.

अभी भी दिवंगत नेता जिले के में एक कारक हैं. अभियान शुरू करने से पहले सभी पक्ष उनके सम्मान में आगे आते हैं. वाम मोर्चे के शासन के दौरान माकपा शायद ही मालदा में सेंध लगा सकी. तृणमूल कांग्रेस के शासन के दौरान भी ममता बनर्जी की पार्टी जिले में ज्यादा बढ़त नहीं बना सकीं.

केवल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जिले से दो लोकसभा क्षेत्रों में से एक पर कब्जा करके मालदा में अच्छी खासी सेंध लगाई है. इसलिए 2021 में मालदा के लोगों को तीन सीटों पर दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल रही है. अब सवाल यह है कि क्या भगवा खेमा इस बार मालदा में और बढ़त बनाएगा?

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बीजेपी इस बार वहां व्यापक प्रचार के लिए गई थी. लेकिन अपने अभियानों में भी भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के दिवंगत नेता का उल्लेख किया. इस पर एक और सवाल है कि क्या कांग्रेस का इस बार लेफ्ट फ्रंट और ऑल इंडिया सेक्युलर फ्रंट के साथ गठबंधन के साथ मालदा में अपना किला बरकरार रख पाएगी? उत्तर केवल 2 मई 2021 को ही मिल पाएगा.

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