नई दिल्ली : भगवान श्रीराम लंबे समय से बीजेपी के तारणहार रहे हैं, अगर इतिहास में भी देखा जाए तो जब जब बीजेपी ने राम का सहारा लिया है तब तब पार्टी सत्ता में आई. इसका फायदा बीजेपी को सिर्फ लोकसभा के चुनाव में नहीं बल्कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, यूपी,बिहार जैसे राज्यों के चुनाव में भी हुआ है. इसी को देखते हुए एकबार फिर ऐसा लगता है कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले ये तैयारियां शुरू की कर दी हैं. ऐसे में क्या बीजेपी की नैया इस बार भी भगवान श्रीराम के हाथों में दे दी गई है.
अगर देखा जाए तो चुनावों की तारीखों की घोषणा के बाद जैसे ही राम मंदिर में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा की तारीख निश्चित कर मंदिर ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निमंत्रण दिया, तभी पीएम मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर एक भावनात्मक संदेश लिखा जिसमें उन्होंने लिखा था की जय सियाराम! साथ ही उन्होंने लिखा था कि आज का दिन बहुत भावनाओं से भरा हुआ है. अभी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी मुझसे मेरे निवास स्थान पर मिलने आए थे. उन्होंने मुझे श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या आने के लिए निमंत्रित किया है. मैं खुद को बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं. ये मेरा सौभाग्य है कि अपने जीवनकाल में मैं इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनूंगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये संदेश ही चुनावों की दशा और दिशा तय कर रहा है. यही नहीं इसमें ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि हो सकता है पीएम अगला चुनाव अयोध्या से लड़ने की भीं घोषणा कर दें. हालांकि इस पर कोई आधिकारिक तौर पर अभी बोलने को राजी नहीं है. मगर माहौल एकबार फिर से राममय बनाने की पूरी तैयारी कर ली गई है. अलग-अलग हिंदू संगठनों के अलावा वीएचपी, आरएसएस और बीजेपी के अन्य संस्थाएं राम मंदिर से जुड़े कार्यक्रमों को सफल बनाने में भागीदार होंगी.
इतना ही नहीं मकर संक्रांति से शुरू होकर फरवरी के मध्य तक चलने वाले समारोह में लगभग 50 लाख श्रद्धालुओं के दर्शन करने का अनुमान है. वहीं वीएचपी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को देशभर के पांच लाख गांव और शहरों में इस कार्यक्रम के लाइव प्रसारण की व्यवस्था करेगी. इससे पहले देश के अलग-अलग भागों से आए साधु संतों द्वारा शोभा यात्रा और झांकियां निकालकर राम मंदिर आंदोलन जैसा माहौल देश में तैयार करने की भी योजना है. राम मंदिर पर फैसला आने के बाद वीएचपी ने जब समर्पण अभियान चलाया था तो उस अभियान से बासठ करोड़ लोग जुड़े थे, इससे लोगों की भावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अंदरखाने यदि देखा जाए तो जब त्रिपुरा चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह ने पहली जनवरी को राम मंदिर को जनता के लिए खोलने की बात कहीं थी तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए तल्ख टिप्पणी की थी. खड़गे ने कहा था कि अमित शाह कैसे ये घोषणा कर सकते हैं, क्या वो मंदिर के महंत हैं. इसपर बीजेपी ने कांग्रेस को मंदिर निर्माण में रोड़ा अटकाने वाला कहकर काफी प्रचारित भी किया था. ठीक इसी तरह अभी भी जैसे ही मंदिर ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री को गर्भगृह के आयोजन का मुख्य अतिथि बनाया, राजनीति शुरू हो गई. शायद बीजेपी भी इसी अवसर को तलाश रही थी कि विपक्ष राम मंदिर से संबंधित टिप्पणी करे और खुद पार्टी के बिछाए जाल में फंसे, ताकि जनता की भावनाएं आहत हों और उसका जवाब पार्टी नहीं बल्कि जनता दे.
ना सिर्फ लोकसभा बल्कि जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, उनमें भी पहले राम के नाम का फायदा बीजेपी को मिल चुका है. यदि बात करें मध्य प्रदेश,राजस्थान की तो 1990 में मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 220 सीटें जीतकर कांग्रेस से कहीं आगे रहीं और सत्ता में आई थी. उस समय कांग्रेस 56 सीटों में सिमट गई थी. हालांकि बाबरी ढांचा गिरने के बाद पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने मध्य प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दिया था और दिग्विजय सिंह की अगुआई में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. वहीं 2003 में मध्य प्रदेश में बीजेपी पुनः मजबूती से लौटकर आई और उसमें भी हिंदुत्व का योगदान था और इसका असर छत्तीसगढ़ पर भी पड़ा.
इसी तरह राजस्थान में राम मंदिर के बाद बीजेपी की सीटें 39 से बढ़कर 85 तक हो गईं थीं मगर सरकार बर्खास्त होने के बाद 2003 में बीजेपी पुनः सत्ता में आ गई थी और भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में सरकार बनी थी. कुल मिलाकर यदी देखा जाए तो चाहे वो राज्य का चुनाव हो या फिर लोकसभा का प्रभु श्रीराम बीजेपी की नैया पार लगाते रहे हैं और ये पार्टी को बखूबी पता है. शायद इसी वजह से तमाम विकास योजनाओं के बावजूद एकबार फिर से चुनाव से पहले चुनाव प्रचार में प्रभु श्रीराम की एंट्री हो चुकी है. पार्टी सूत्रों की माने तो सभी नेताओं को चुनाव प्रचार में मंदिर निर्माण की तारीख और दर्शन की बात भी प्रचारित करने के निर्देश दे दिए गए हैं.
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