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अनौपचारिकता के कारण कोविड-19 से नहीं उबर पा रहे विकासशील देश - Corona Virus

न्यू वर्ल्ड बैंक की एक स्टडी में पता चला है कि विकासशील देशों में कोरोना महामारी पर बरती जा रही अनौपचारिकता के कारण इससे उबरने में समय लग रहा है.

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Published : May 14, 2021, 1:36 PM IST

हैदराबाद : बीते एक साल से भी ज्यादा समय से कोरोना महामारी ने विश्व को अपनी चपेट में लिया हुआ है. यह वैश्विक महामारी अपने दूसरे और खतरनाक चरण में है. एक स्टडी के मुताबिक, विकासशील देशों में इसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिसका कारण यहां बरती जा रही अनौपचारिकता को माना गया है. न्यू वर्ल्ड बैंक की एक अध्ययन में पता चला है कि इन देशों में कोरोना महामारी पर दिख रही अनौपचारिकता के कारण इससे उबरने में भी समय लग रहा है.

सरकार के दायरे से बाहर रहकर की जा रही एक-तिहाई आर्थिक गतिविधियां

  • उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDEs) में सरकारों के दायरे से हटकर श्रमिकों और फर्मों का एक बड़ा प्रतिशत काम कर रहा है. स्टडी में कहा गया है कि जब तक यहां की सरकारें अनौपचारिक क्षेत्रों की कमियों को दूर करने के लिए व्यापक नीतियां नहीं अपनाती, तब तक कोरोना के खिलाफ लड़ने में यह बड़ी चुनौती होगी.
  • अध्ययन में पाया गया है कि इन देशों में अनौपचारिक क्षेत्र कुल रोजगार का 70 प्रतिशत से अधिक और जीडीपी का तकरीबन एक तिहाई है. यह पैमाना इन देशों में संकट में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, प्रभावी व्यापक आर्थिक नीतियों का संचालन करने और दीर्घकालिक विकास के लिए मानव पूंजी बनाने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों को जुटाने की क्षमता को कम करता है.
  • ईएमडीई देशों में सरकारी राजस्व औसत से अधिक अनौपचारिकता के कारण सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20 प्रतिशत थे, जो अन्य ईएमडीई के मुकाबले 5 से 12 प्रतिशत अंक नीचे हैं. सरकारी व्यय भी सकल घरेलू उत्पाद के 10 प्रतिशत से भी कम रहे.
  • इसी तरह, केंद्रीय बैंकों की इन अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देने की क्षमता, व्यापक अनौपचारिकता से जुड़ी अविकसित वित्तीय प्रणालियों से बाधित होती है.

ये भी पढ़ें : टीकों का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो रहा तो क्या खुद को फांसी लगा लें : केंद्रीय मंत्री

जानिए अनौपचारिकता कोविड-19 महामारी से उबरने में कैसे प्रभावित कर रही

  • अनौपचारिकता COVID-19 के संचरण को धीमा करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के नीतिगत प्रयासों को कमजोर करती है.
  • सामाजिक सुरक्षा तक सीमित पहुंच के कारण अनौपचारिक क्षेत्र के कई भागीदार न तो घर पर रह पा रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पा रहे हैं।
  • ईएमडीई देशों में अनौपचारिक उद्यम, सर्विस सेक्टर में 72 फीसदी फर्मों के लिए जिम्मेदार हैं.
  • ईएमडीई में अनौपचारिकता, क्षेत्रों और देशों में व्यापक रूप से अलग-अलग होती है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में यह उप सहारा अफ्रीका क्षेत्रों में सबसे उच्च 36 फीसदी है. वहीं, मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका में सबसे कम 22 फीसदी है.
  • दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका क्षेओं में व्यापक अनौपचारिकता मोटे तौर पर कम मानव पूंजी और बड़े कृषि क्षेत्रों का परिणाम है. यूरोप, लेटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्रों के साथ मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों में भारी नियामक, कर बोझ और कमजोर संस्थान अनौपचारिकता के अहम कारण हैं.

कोविड-19 महामारी से पहले ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता घट रही थी

स्टडी के मुताबिक, ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता पर काबू पाया जा सकता है. क्योंकि स्टडी में कहा गया है कि कोरोना माहामारी से पिछले तीन दशक पहले यह समस्या घट रही थी. 1990 से 2018 के बीच औसतन अनौपचारिकता जीडीपी के लगभग 7 फीसदी अंकों से गिरकर 32 फीसदी हो गई.

ये भी पढ़ें : रैनसमवेयर अटैक से निपटने में काम आएंगे RTF के ये पांच प्रभावी उपाय

ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता से कैसे निपटें

ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता से निपटने के लिए यहां के नीति-निर्माताओं के लिए निम्नलिखित पांच सामान्य सुझाव दिए गए हैं.

  • पहला, इससे निपटने के लिए इन देशों को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा, क्योंकि अनौपचारिकता व्यापक-आधारित अविकसितता को दर्शाती है और अलगाव में रहकर इसका सामना नहीं किया जा सकता है.
  • इन देशों की परिस्थितियों को देखते हुए गहन अध्ययन की जरूरत है, क्योंकि अनौपचारिकता के कारण व्यापक रूप से अलग-अलग होते हैं.
  • शिक्षा, बाजार और वित्त तक की पहुंच में सुधार करना होगा ताकि अनौपचारिक श्रमिकों और फर्म औपचारिक क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए पर्याप्त रूप से उत्पादक बन सकें.
  • शासन और व्यवसाय को बेहतर बनाना होगा, ताकि औपचारिक क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके.
  • औपचारिक रूप से परिचालन की लागत कम करने और अनौपचारिक रूप से परिचालन की लागत बढ़ाने के लिए स्ट्रीमलाइन कर विनियमन की जरूरत है.

विकास नीति और साझेदारी के विश्व बैंक के प्रबंध निदेशक मैरी पंगेस्टू ने कहा, अनौपचारिक श्रमिक जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं और युवा शामिल हैं, इनमें कौशल की कमी होती है. भयानक कोविड-19 संकट के बीच ऐसे लोग पीछे छूट जाते हैं और जब ऐसी स्थिति में यह अपनी नौकरी गवां देते हैं तो दूसरी नौकरी की तलाश में उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ख्याल नहीं रहता है.

हैदराबाद : बीते एक साल से भी ज्यादा समय से कोरोना महामारी ने विश्व को अपनी चपेट में लिया हुआ है. यह वैश्विक महामारी अपने दूसरे और खतरनाक चरण में है. एक स्टडी के मुताबिक, विकासशील देशों में इसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिसका कारण यहां बरती जा रही अनौपचारिकता को माना गया है. न्यू वर्ल्ड बैंक की एक अध्ययन में पता चला है कि इन देशों में कोरोना महामारी पर दिख रही अनौपचारिकता के कारण इससे उबरने में भी समय लग रहा है.

सरकार के दायरे से बाहर रहकर की जा रही एक-तिहाई आर्थिक गतिविधियां

  • उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDEs) में सरकारों के दायरे से हटकर श्रमिकों और फर्मों का एक बड़ा प्रतिशत काम कर रहा है. स्टडी में कहा गया है कि जब तक यहां की सरकारें अनौपचारिक क्षेत्रों की कमियों को दूर करने के लिए व्यापक नीतियां नहीं अपनाती, तब तक कोरोना के खिलाफ लड़ने में यह बड़ी चुनौती होगी.
  • अध्ययन में पाया गया है कि इन देशों में अनौपचारिक क्षेत्र कुल रोजगार का 70 प्रतिशत से अधिक और जीडीपी का तकरीबन एक तिहाई है. यह पैमाना इन देशों में संकट में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, प्रभावी व्यापक आर्थिक नीतियों का संचालन करने और दीर्घकालिक विकास के लिए मानव पूंजी बनाने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों को जुटाने की क्षमता को कम करता है.
  • ईएमडीई देशों में सरकारी राजस्व औसत से अधिक अनौपचारिकता के कारण सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20 प्रतिशत थे, जो अन्य ईएमडीई के मुकाबले 5 से 12 प्रतिशत अंक नीचे हैं. सरकारी व्यय भी सकल घरेलू उत्पाद के 10 प्रतिशत से भी कम रहे.
  • इसी तरह, केंद्रीय बैंकों की इन अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देने की क्षमता, व्यापक अनौपचारिकता से जुड़ी अविकसित वित्तीय प्रणालियों से बाधित होती है.

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जानिए अनौपचारिकता कोविड-19 महामारी से उबरने में कैसे प्रभावित कर रही

  • अनौपचारिकता COVID-19 के संचरण को धीमा करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के नीतिगत प्रयासों को कमजोर करती है.
  • सामाजिक सुरक्षा तक सीमित पहुंच के कारण अनौपचारिक क्षेत्र के कई भागीदार न तो घर पर रह पा रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पा रहे हैं।
  • ईएमडीई देशों में अनौपचारिक उद्यम, सर्विस सेक्टर में 72 फीसदी फर्मों के लिए जिम्मेदार हैं.
  • ईएमडीई में अनौपचारिकता, क्षेत्रों और देशों में व्यापक रूप से अलग-अलग होती है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में यह उप सहारा अफ्रीका क्षेत्रों में सबसे उच्च 36 फीसदी है. वहीं, मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका में सबसे कम 22 फीसदी है.
  • दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका क्षेओं में व्यापक अनौपचारिकता मोटे तौर पर कम मानव पूंजी और बड़े कृषि क्षेत्रों का परिणाम है. यूरोप, लेटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्रों के साथ मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों में भारी नियामक, कर बोझ और कमजोर संस्थान अनौपचारिकता के अहम कारण हैं.

कोविड-19 महामारी से पहले ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता घट रही थी

स्टडी के मुताबिक, ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता पर काबू पाया जा सकता है. क्योंकि स्टडी में कहा गया है कि कोरोना माहामारी से पिछले तीन दशक पहले यह समस्या घट रही थी. 1990 से 2018 के बीच औसतन अनौपचारिकता जीडीपी के लगभग 7 फीसदी अंकों से गिरकर 32 फीसदी हो गई.

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ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता से कैसे निपटें

ईएमडीई देशों में अनौपचारिकता से निपटने के लिए यहां के नीति-निर्माताओं के लिए निम्नलिखित पांच सामान्य सुझाव दिए गए हैं.

  • पहला, इससे निपटने के लिए इन देशों को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा, क्योंकि अनौपचारिकता व्यापक-आधारित अविकसितता को दर्शाती है और अलगाव में रहकर इसका सामना नहीं किया जा सकता है.
  • इन देशों की परिस्थितियों को देखते हुए गहन अध्ययन की जरूरत है, क्योंकि अनौपचारिकता के कारण व्यापक रूप से अलग-अलग होते हैं.
  • शिक्षा, बाजार और वित्त तक की पहुंच में सुधार करना होगा ताकि अनौपचारिक श्रमिकों और फर्म औपचारिक क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए पर्याप्त रूप से उत्पादक बन सकें.
  • शासन और व्यवसाय को बेहतर बनाना होगा, ताकि औपचारिक क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके.
  • औपचारिक रूप से परिचालन की लागत कम करने और अनौपचारिक रूप से परिचालन की लागत बढ़ाने के लिए स्ट्रीमलाइन कर विनियमन की जरूरत है.

विकास नीति और साझेदारी के विश्व बैंक के प्रबंध निदेशक मैरी पंगेस्टू ने कहा, अनौपचारिक श्रमिक जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं और युवा शामिल हैं, इनमें कौशल की कमी होती है. भयानक कोविड-19 संकट के बीच ऐसे लोग पीछे छूट जाते हैं और जब ऐसी स्थिति में यह अपनी नौकरी गवां देते हैं तो दूसरी नौकरी की तलाश में उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ख्याल नहीं रहता है.

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