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Ban On Rice Export : 'क्या भारत के पास चावल की कमी हो गई', मोदी सरकार ने निर्यात पर क्यों लगाया बैन, जानें वजह - world rice market and india

भारत द्वारा चावल निर्यात पर पाबंदी की घोषणा के बाद वैश्विक व्यापार में हलचल मच गई है. अमेरिका समेत कई देशों में चावल की खरीदारी को लेकर होर्डिंग होने लगी. थाईलैंड, वियतनाम और पाकिस्तान जैसे देश इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं. वैश्विक बाजार में इस तरह से निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से भारत की साख भी प्रभावित होती है. हालांकि, इस मामले पर मोदी सरकार की दलील कुछ और है.

ban on rice export
चावल निर्यात पर प्रतिबंध
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Published : Jul 27, 2023, 5:05 PM IST

नई दिल्ली : भारत ने पिछले सप्ताह 20 जुलाई को चावल निर्यात पर बड़ा फैसला लिया. मोदी सरकार ने नॉन बासमती सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगाने की घोषणा कर दी. इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया गया. बासमती और बॉयल राइस कैटेगरी पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया. इसका निर्यात जारी है.

आपको यह जरूर लग रहा होगा कि बासमती और बॉयल कैटेगरी का निर्यात हो रहा है, तो इससे एक्सपोर्ट पर क्या असर पड़ेगा. लेकिन उत्पादन और बाजार के आंकड़े देखेंगे, तो आप भी यह कहने पर मजबूर होंगे कि सरकार ने जो फैसला लिया है, उस पर दोबारा विचार किया जा सकता है.

दरअसल, वैश्विक व्यापार में भारत 22 मिलियन टन चावल का निर्यात करता है. और 22 मि. टन चावल में से 18 मि.टन चावल नॉन बासमती कैटेगरी की ही है. चार मि.टन चावल बॉयल राइस या फिर बासमती कैटेगरी में आता है. पूरी दुनिया में 45 मिलियन टन चावल का निर्यात किया जाता है.

पिछले साल भारत ने टूट वाले चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. यह कदम घरेलू कीमतों पर नियंत्रण के लिए लगाया गया था. इसके बावजूद भारत ने इंडोनेशिया, सेनेगल, गांबिया, माली और इथियोपिया को चावल निर्यात किया.

प्रतिबंध की वजह - इसका कारण यह बताया गया कि क्योंकि त्योहार का मौसम आने वाला है, इसलिए घरेलू बाजार में आपूर्ति प्रभावित न हो, इसे सुनिश्चित किया गया है. साथ ही इसकी बढ़ती कीमत पर भी लगाम लगाने के लिए यह फैसला लिया गया है. विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. उनकी राय में इस तरह के मामले काफी संवेदनशील होते हैं और विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है. टमाटर की कीमत पहले ही आसमान को छू रही है.

पिछले एक साल में चावल की कीमतों में 11 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. सरकार ने पिछले साल भी अगस्त के महीने में इसी कैटेगरी के चावल के एक्सपोर्ट पर 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगा दिया था. वैसे, तब बाजार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और निर्यात भी पहले की भांति रहा. जानकार बताते हैं कि अल-नीनो और मौसम में बदलाव की वजह से दुनिया के दूसरे देशों में चावल उत्पादन प्रभावित हुआ है.

नॉन बासमती कैटेगरी में भारत ने साल 2021-2022 में 33.66 लाख टन, 2022-2023 में 42.12 लाख टन चावल का निर्यात किया था. इसके अगले साल 2023-24 में सिर्फ तीन महीने (अप्रैल-जून) में ही 15.54 लाख टन चावल का निर्यात कर दिया गया. यही वजह थी कि सरकार ने एक्सपोर्ट पर रोक की घोषणा कर दी.

लेकिन भारत के इस फैसले से चावल का वैश्विक बाजार प्रभावित हो गया. भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है. निर्यात पर पाबंदी के बाद वैश्विक बाजार में हलचल मच गई. भारत जितना चावल का निर्यात करता था, उसकी मात्रा आधी हो गई.

अमेरिकी बाजार और स्टोर्स में चावल खीरदने वालों की लंबी-लंबी कतारें देखी गईं. कई जगहों पर चावल की राशनिंग कर दी गई. कुछ जगह लूट की भी खबरें आईं. वहां रहने वाले भारतीयों ने चावल की कई बोरियां खरीदकर स्टोर कर लिया.

चावल निर्यात को लेकर वियतनाम और थाईलैंड का भारत से प्रतिस्पर्धा है. जैसे ही भारत ने चावल निर्यात पर रोक का ऐलान किया, वैसे ही इन दोनों देशों ने निर्यात पर 10 फीसदी कीमतें बढ़ा दीं. चावल निर्यात करने वालों में भारत के बाद दूसरा स्थान थाईलैंड और तीसरा स्थान वियतनाम का आता है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार आईएमएफ ने भारत से अपील की है कि वह चावल के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को वापस ले.

गेंहू के बाद चावल : एक्सपर्ट बताते हैं कि अनाज के उत्पादन और निर्यात को लेकर संकट बढ़ता जा रहा है. उनके मुताबिक यूक्रेन संकट की वजह से गेहूं निर्यात पहले ही पूरी दुनिया को संकट में डाल चुका है और अब चावल का मार्केट भी प्रभावित हुआ, तो संकट और अधिक गहरा सकता है. आखिरकार, गेंहू और चावल ही मेन स्टेपल फूड हैं. गेंहू की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी है.

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जब हम खुले बाजार और वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो इसका फायदा किसानों को क्यों न मिले. जब किसानों को इसका लाभ मिल रहा है, तो उस पर रोक लगाना उचित नहीं है. उनके अनुसा ऐसी स्थितियां बहुत कम ही आती हैं, जब किसानों को इस तरह की परिस्थिति में अच्छी कमाई करने का मौका मिलता है.

150 से ज्यादा देशों में भारत चावल निर्यात करता है. वैश्विक मार्केट में 42 फीसदी हिस्से पर भारत का कब्जा है. व्यापार का नियम है, खासकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अगर आप एक बार किसी को भी बाजार वाला स्पेस दे देते हैं, तो दोबारा से उस जगह को हासिल करना मुश्किल होता है. बहुत संभव है कि चावल के दूसरे उत्पादक देशों की इस पर नजर हो.

पाकिस्तान भी फायदा उठाने की फिराक में - थाईलैंड और वियतनाम तो इसका फायदा उठा ही रहे हैं, इस सूची में अब पाकिस्तान का भी नाम जुड़ गया है. वह भी इस मौके का फायदा उठाने में लगा हुआ है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय साख अलग से प्रभावित होती है.

इसके जवाब में भारत ने कहा कि वह अभी भी जरूरत के हिसाब से प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लेगा.

rice producing states in india
भारत में सबसे अधिक चावल उत्पादन करने वाले राज्य

एफसीआई के पास चावल का बफर स्टॉक ढाई गुना है. हम चावल का उत्पादन 130 मि. टन प्रति वर्ष करते हैं, जबकि हमारी अपनी खपत 108 मि. टन की है. चावल उत्पादन करने वाले राज्यों में प.बंगाल, यूपी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पंजाब प्रमुख हैं. बासमती चावल के खरीदारों में ईरान, इराक और सऊदी अरब प्रमुख देश हैं. नॉन बासमती कैटेगरी में ज्यादा देश शामिल हैं.

ये भी पढ़ें : Joha Rice Benefit : जानें जोहा चावल की खासियत, ब्लड ग्लूकोज कम करने व डायबिटीज रोकने में है प्रभावी

नई दिल्ली : भारत ने पिछले सप्ताह 20 जुलाई को चावल निर्यात पर बड़ा फैसला लिया. मोदी सरकार ने नॉन बासमती सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगाने की घोषणा कर दी. इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया गया. बासमती और बॉयल राइस कैटेगरी पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया. इसका निर्यात जारी है.

आपको यह जरूर लग रहा होगा कि बासमती और बॉयल कैटेगरी का निर्यात हो रहा है, तो इससे एक्सपोर्ट पर क्या असर पड़ेगा. लेकिन उत्पादन और बाजार के आंकड़े देखेंगे, तो आप भी यह कहने पर मजबूर होंगे कि सरकार ने जो फैसला लिया है, उस पर दोबारा विचार किया जा सकता है.

दरअसल, वैश्विक व्यापार में भारत 22 मिलियन टन चावल का निर्यात करता है. और 22 मि. टन चावल में से 18 मि.टन चावल नॉन बासमती कैटेगरी की ही है. चार मि.टन चावल बॉयल राइस या फिर बासमती कैटेगरी में आता है. पूरी दुनिया में 45 मिलियन टन चावल का निर्यात किया जाता है.

पिछले साल भारत ने टूट वाले चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था. यह कदम घरेलू कीमतों पर नियंत्रण के लिए लगाया गया था. इसके बावजूद भारत ने इंडोनेशिया, सेनेगल, गांबिया, माली और इथियोपिया को चावल निर्यात किया.

प्रतिबंध की वजह - इसका कारण यह बताया गया कि क्योंकि त्योहार का मौसम आने वाला है, इसलिए घरेलू बाजार में आपूर्ति प्रभावित न हो, इसे सुनिश्चित किया गया है. साथ ही इसकी बढ़ती कीमत पर भी लगाम लगाने के लिए यह फैसला लिया गया है. विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. उनकी राय में इस तरह के मामले काफी संवेदनशील होते हैं और विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है. टमाटर की कीमत पहले ही आसमान को छू रही है.

पिछले एक साल में चावल की कीमतों में 11 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. सरकार ने पिछले साल भी अगस्त के महीने में इसी कैटेगरी के चावल के एक्सपोर्ट पर 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगा दिया था. वैसे, तब बाजार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और निर्यात भी पहले की भांति रहा. जानकार बताते हैं कि अल-नीनो और मौसम में बदलाव की वजह से दुनिया के दूसरे देशों में चावल उत्पादन प्रभावित हुआ है.

नॉन बासमती कैटेगरी में भारत ने साल 2021-2022 में 33.66 लाख टन, 2022-2023 में 42.12 लाख टन चावल का निर्यात किया था. इसके अगले साल 2023-24 में सिर्फ तीन महीने (अप्रैल-जून) में ही 15.54 लाख टन चावल का निर्यात कर दिया गया. यही वजह थी कि सरकार ने एक्सपोर्ट पर रोक की घोषणा कर दी.

लेकिन भारत के इस फैसले से चावल का वैश्विक बाजार प्रभावित हो गया. भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है. निर्यात पर पाबंदी के बाद वैश्विक बाजार में हलचल मच गई. भारत जितना चावल का निर्यात करता था, उसकी मात्रा आधी हो गई.

अमेरिकी बाजार और स्टोर्स में चावल खीरदने वालों की लंबी-लंबी कतारें देखी गईं. कई जगहों पर चावल की राशनिंग कर दी गई. कुछ जगह लूट की भी खबरें आईं. वहां रहने वाले भारतीयों ने चावल की कई बोरियां खरीदकर स्टोर कर लिया.

चावल निर्यात को लेकर वियतनाम और थाईलैंड का भारत से प्रतिस्पर्धा है. जैसे ही भारत ने चावल निर्यात पर रोक का ऐलान किया, वैसे ही इन दोनों देशों ने निर्यात पर 10 फीसदी कीमतें बढ़ा दीं. चावल निर्यात करने वालों में भारत के बाद दूसरा स्थान थाईलैंड और तीसरा स्थान वियतनाम का आता है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार आईएमएफ ने भारत से अपील की है कि वह चावल के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को वापस ले.

गेंहू के बाद चावल : एक्सपर्ट बताते हैं कि अनाज के उत्पादन और निर्यात को लेकर संकट बढ़ता जा रहा है. उनके मुताबिक यूक्रेन संकट की वजह से गेहूं निर्यात पहले ही पूरी दुनिया को संकट में डाल चुका है और अब चावल का मार्केट भी प्रभावित हुआ, तो संकट और अधिक गहरा सकता है. आखिरकार, गेंहू और चावल ही मेन स्टेपल फूड हैं. गेंहू की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी है.

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जब हम खुले बाजार और वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो इसका फायदा किसानों को क्यों न मिले. जब किसानों को इसका लाभ मिल रहा है, तो उस पर रोक लगाना उचित नहीं है. उनके अनुसा ऐसी स्थितियां बहुत कम ही आती हैं, जब किसानों को इस तरह की परिस्थिति में अच्छी कमाई करने का मौका मिलता है.

150 से ज्यादा देशों में भारत चावल निर्यात करता है. वैश्विक मार्केट में 42 फीसदी हिस्से पर भारत का कब्जा है. व्यापार का नियम है, खासकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अगर आप एक बार किसी को भी बाजार वाला स्पेस दे देते हैं, तो दोबारा से उस जगह को हासिल करना मुश्किल होता है. बहुत संभव है कि चावल के दूसरे उत्पादक देशों की इस पर नजर हो.

पाकिस्तान भी फायदा उठाने की फिराक में - थाईलैंड और वियतनाम तो इसका फायदा उठा ही रहे हैं, इस सूची में अब पाकिस्तान का भी नाम जुड़ गया है. वह भी इस मौके का फायदा उठाने में लगा हुआ है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय साख अलग से प्रभावित होती है.

इसके जवाब में भारत ने कहा कि वह अभी भी जरूरत के हिसाब से प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लेगा.

rice producing states in india
भारत में सबसे अधिक चावल उत्पादन करने वाले राज्य

एफसीआई के पास चावल का बफर स्टॉक ढाई गुना है. हम चावल का उत्पादन 130 मि. टन प्रति वर्ष करते हैं, जबकि हमारी अपनी खपत 108 मि. टन की है. चावल उत्पादन करने वाले राज्यों में प.बंगाल, यूपी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पंजाब प्रमुख हैं. बासमती चावल के खरीदारों में ईरान, इराक और सऊदी अरब प्रमुख देश हैं. नॉन बासमती कैटेगरी में ज्यादा देश शामिल हैं.

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