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दो साल से रेप के मामलों में क्यों सबसे आगे है राजस्थान ? देश महिलाओं के खिलाफ अपराध की जड़ क्या है ? - Why Rajasthan is on top in rape cases

NCRB की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2020 के दौरान अपराध कम हुआ है और इसकी वजह लॉकडाउन है. अगर आपको भी ऐसा लगता है तो ये रिपोर्ट आपको सोचने पर मजबूर कर देगी. अब सवाल है कि आखिर क्यों बढ़ रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध ? इन अपराधों पर कैसे लगेगी लगाम ? एक्सपर्ट से जानेंगे इन सवालों का जवाब, ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में (etv bharat explainer)

एनसीआरबी
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Published : Sep 17, 2021, 9:45 PM IST

हैदराबाद: NCRB यानि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 15 सितंबर को साल 2020 में देशभर में अपराध के आंकड़े जारी किए. आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संकट काल में भी अपराध के मामलों में 28 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. हालांकि इनमें से ज्यादातर मामले कोविड़-19 के उल्लंघन के थे. रेप से लेकर, दहेज हत्या और घरेलू हिंसा, अपहरण समेत महिलाओं के खिलाफ जो आंकड़े आए हैं वो एक बार फिर सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर महिलाएं कब महफूज होंगी ? कुछ राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध से लेकर रेप के मामले हैरान करते हैं. जिसके बाद सवाल उठता है कि आखिर महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध की वजह क्या है और इसपर कैसे लगाम लगेगी.

लगातार दूसरे साल राजस्थान में सबसे ज्यादा रेप के मामले

एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट में रेप के मामलों में लगातार दूसरी बार राजस्थान पहले नंबर पर है. जहां साल 2020 में 5310 रेप के मामले दर्ज किए गए. राजस्थान के आंकड़े इसलिये भी हैरान करने वाले हैं क्योंकि रेप के मामले में दूसरी पायदान पर मौजूद उत्तर प्रदेश (2769) से ये आंकड़ा लगभग दोगुना है. साल 2019 की एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक भी राजस्थान पहले स्थान पर था. इस सूची में तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश (2,339), चौथे पर महाराष्ट्र (2061) और पांचवें नंबर पर असम (1657) है.

रेप के मामलों में टॉप-5 राज्य
रेप के मामलों में टॉप-5 राज्य

देशभर में साल 2020 में रेप के 28,046 मामले दर्ज हुए जो बीते साल 2019 से 13 फीसद कम है. 2019 में रेप के 32,033 मामले दर्ज किए गए थे.

रेप के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में क्यों ?

राजस्थान के एडीजी क्राइम डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा के मुताबिक एक आम नागरिक के लिए पुलिस थाने में जाकर एफआईआर दर्ज करवाना काफी मुश्किल होता है, इसलिये राजस्थान सरकार ने साल 2019 ने अपराध को दर्ज करना अनिवार्य कर दिया था. अगर कोई एसएचओ ऐसा नहीं करता है तो जांच होने पर उसके खिलाफ कानूनी और विभागीय कार्रवाई का प्रावधान किया गया. जिसके बाद अधिक मामले दर्ज किए गए, जो एनसीआरबी के आंकड़े भी दिखाते हैं.

दो साल से रेप के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान से क्यों आ रहे हैं ?

डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा कहते हैं कि अपराध और उसका पंजीकरण दोनों अलग-अलग चीजें हैं, इस बात को एनसीआरबी भी मानता है. इस तरह के दर्ज मामलों में से करीब 40 से 45 फीसदी मामले गलत साबित होते हैं, उसके अलग कारण हैं और उनका विश्लेषण भी किया गया है. लेकिन इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं और कमजोर वर्ग को हुआ है, क्योंकि ये दोनों कतार के आखिर में होते हैं और इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. मेहरड़ा के मुताबिक आंकड़ों को लेकर एक दूसरे राज्य पर छींटाकशी या इमेज पर सवाल नहीं उठना चाहिए क्योंकि इसका नुकसान आम जनता को होगा. अगर कम मामले दर्ज होने पर एसएचओ की पीठ थपथपाई जाएगी तो ज्यादा एफआईआर दर्ज नहीं होंगी. मामला दर्ज करने के बाद त्वरित कार्रवाई करना और नतीजे पर पहुंचना बड़ी बात है.

रेप के मामलों में 95% करीबी आरोपी

रेप के कुल दर्ज हुए 28,046 मामलों में 95 फीसदी मामलों में कोई करीबी ही आरोपी था. इनमें परिवार का सदस्य, दोस्त, पड़ोसी या पारिवारिक दोस्त शामिल है. सिर्फ 1,238 मामलों में ही कोई अनजान आरोपी था.

ये भी पढ़ें: एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामले में यूपी, एमपी सबसे ऊपर : एनसीआरबी

रेप के मामलों में 95 फीसदी करीबी ही आरोपी
रेप के मामलों में 95 फीसदी करीबी ही आरोपी

महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़े

एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 3,71,503 मामले दर्ज हुए जो पिछले साल (4,05,503) से 8.3 फीसदी कम है. महिला के खिलाफ अपराध में उत्तर प्रदेश (49,853) पहले, पश्चिम बंगाल (36,439) दूसरे, राजस्थान (34,535) तीसरे, महाराष्ट्र (31,954) चौथे और असम (26,352) पांचवें स्थान पर है.

देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले
देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले

मेट्रो सिटीज़ में रेप के मामले

देश के महानगरों में कुल 2,533 रेप के मामले दर्ज किए गए. इनमें से देश की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा 967 मामले दर्ज किए गए. दूसरे नंबर पर जयपुर (409), तीसरे पर मुंबई (322), चौथे नंबर पर बेंगलुरु (108) और पांचवे पर चेन्नई (31) है.

ये भी पढ़ें: महाराष्ट्र समेत तीन राज्यों में मानव तस्करी के मामले सबसे अधिक : एनसीआरबी

ऐसे में महिला आयोग या महिला संगठनों की क्या भूमिका है ?

महिलाओं के खिलाफ अपराध के बाद महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन या महिला आयोग जैसे संस्थानों की तरफ से निंदा या नोटिस की कार्रवाई की जाती है. सवाल है कि क्या महिलाओं के हितों को ध्यान में रखकर बनाए गए ऐसे संगठन अपनी भूमिका ठीक से निभा पाते हैं ? क्या उन्हें और शक्तियों की जरूरत है ?

हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष प्रीति भारद्वाज के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की बात करें तो आयोग के पास प्रदेश ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों और देश के बाहर से भी एनआरआई महिलाओं की भी शिकायतें आती हैं. जिसके बाद संबंधित इलाके के पुलिस अधिकारी को शिकायत भेजते हैं. फिर पुलिस उसपर कार्रवाई करके आयोग को एक्शन टेकन रिपोर्ट भेजती है. जिसके आधार पर दोनों पक्षों के साथ वेरिफाई किया जाता है. महिलाओं के खिलाफ अपराध की कितनी शिकायतें हुईं, उनमें से कितनी में एफआईआर दर्ज हुई, घरेलू हिंसा के कितने मामले आयोग के पास आए और पुलिस के पास कितने पहुंचे. दोनों में अंतर की जांच और कार्रवाई पर नजर रखी जाती है.

लेकिन सवाल है कि क्या महिला आयोग की शक्तियां ऐसे मामलों पर नकेल कसने के लिए काफी हैं ? प्रीति भारद्वाज कहती हैं कि महिला आयोग पूरी तरह से सशक्त है, भले ये एक अनुशंसा या सिफारिश करने वाली बॉडी हो लेकिन आयोग के पास किसी मामले में स्वत: संज्ञा से लेकर देशभर में किसी को भी नोटिस देने और सिविल कोर्ट तक की पावर है. साथ ही आयोग की हर सिफारिश सरकार के हर विभाग में मानी जाती है.

क्यों बढ़ रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध ?

लॉकडाउन में अपराध घटने पर पीठ ना थपथपाएं

लॉकडाउन में महिलाओं के खिलाफ अपराध ही नहीं हर तरह के अपराध कम हुए हैं लेकिन ये कोई पीठ थपथपाने वाली बात नहीं है. क्योंकि लॉकडाउन के बावजूद देशभर में 66 लाख से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं, 29,193 हत्या और 1,28,531 मामले बच्चों के खिलाफ अपराध के दर्ज हुए हैं. 3,71,503 महिला अपराध के मामले दर्ज हुए, 28,046 रेप और 62,300 अपहरण के मामले दर्ज हुए. 6996 मामले दहेज की वजह से मौत के तो 105 मामले तेजाब हमले के भी दर्ज हुए हैं.

हर राज्य, हर शहर से महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले आए हैं. राजस्थान में भले रेप के मामले सबसे अधिक दर्ज हुए हैं और महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले यूपी से सामने आए हों लेकिन महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल पूरे देश में है, हर राज्य में है. बीते साल (2019) के मुकाबले लॉकडाउन की वजह से मामले कम आए हैं, इसे ऐसे ना देखकर ऐसे देखें कि अगर लॉकडाउन ना होता तो अपराध के मामले बीते साल के मुकाबले कितने अधिक होते. या लॉकडाउन की वजह से ही अपराधियों पर थोड़ी सी लगाम लग सकी. एनसीआरबी के आंकड़े पुलिस से लेकर सरकार और समाज से लेकर परिवारों तक पर सवाल खड़े करते हैं. आंकड़ों के जरिये अपराध को कुछ कम और ज्यादा करके तो आंका जा सकता है लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध के लाखों मामले खासकर रेप के मामले बताते हैं कि कानून का डर अपराधियों में नहीं है.

NCRB की रिपोर्ट के आंकड़े
NCRB की रिपोर्ट के आंकड़े

'लॉकडाउन में घरेलू हिंसा बढ़ी है'

प्रीति भारद्वाज के मुताबिक रेप के मामले भले कम हुए हों लेकिन लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं. लॉकडाउन के दौरान लोग घर की चारदीवारी में कैद हुए, जिसके बाद आयोग के पास घरेलू हिंसा की शिकायतें आईं.

इंदौर के मनोचिकित्सक पवन राठी भी मानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान दफ्तर, फैक्ट्रियां बंद होने से घर में भीड़ बढ़ी जिसका असर घरेलू हिंसा के रूप में भी सामने आया. आज हर 4 में से एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है. कई बार महिलाएं अशिक्षित या समाज के डर के कारण अपनी शिकायत दर्ज नहीं करवाती है. अगर सभी घरेलू हिंसा या महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले पुलिस की चौखट तक पहुंचने लगें तो अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि अपराध का आंकड़ा कहां पहुंचेगा.

महिलाओं के खिलाफ अपराध पर कैसे लगेगी लगाम ?

हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष प्रीति भारद्वाज के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हर तरह के अपराध पर लगाम लगाने के लिए परिवार और समाज को पुरुषों को ये सिखाना होगा कि एक बच्ची, लड़की या महिला के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए. परिवार से संस्कार और स्कूल में नैतिक शिक्षा का ज्ञान बच्चों को मिलना बहुत जरूरी है.

पवन राठी के मुताबिक महिलाओं की अशिक्षा, पुरुषों की मानसिकता और नशा महिला अपराध और खासकर घरेलू हिंसा का मुख्य कारण हैं. ऐसे में सरकार की नीतियों के अलावा समाज की भागीदारी और हर शख्स का खुद को बेहतर करने के लिए कदम उठाना होगा. इसके अलावा मनोचिकित्सकों का भी रोल बहुत अहम है. मनोचिकित्सकों को आगे आकर इस क्षेत्र में नीति या ऐसे कार्यक्रम तैयार करने चाहिए जिससे महिलाओं के खिलाफ अपराध पर लगाम लग सके.

ये भी पढ़ें: राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के कारण अपराध घटे, लेकिन हत्या के मामले बढ़े

हैदराबाद: NCRB यानि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 15 सितंबर को साल 2020 में देशभर में अपराध के आंकड़े जारी किए. आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संकट काल में भी अपराध के मामलों में 28 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. हालांकि इनमें से ज्यादातर मामले कोविड़-19 के उल्लंघन के थे. रेप से लेकर, दहेज हत्या और घरेलू हिंसा, अपहरण समेत महिलाओं के खिलाफ जो आंकड़े आए हैं वो एक बार फिर सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर महिलाएं कब महफूज होंगी ? कुछ राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध से लेकर रेप के मामले हैरान करते हैं. जिसके बाद सवाल उठता है कि आखिर महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध की वजह क्या है और इसपर कैसे लगाम लगेगी.

लगातार दूसरे साल राजस्थान में सबसे ज्यादा रेप के मामले

एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट में रेप के मामलों में लगातार दूसरी बार राजस्थान पहले नंबर पर है. जहां साल 2020 में 5310 रेप के मामले दर्ज किए गए. राजस्थान के आंकड़े इसलिये भी हैरान करने वाले हैं क्योंकि रेप के मामले में दूसरी पायदान पर मौजूद उत्तर प्रदेश (2769) से ये आंकड़ा लगभग दोगुना है. साल 2019 की एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक भी राजस्थान पहले स्थान पर था. इस सूची में तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश (2,339), चौथे पर महाराष्ट्र (2061) और पांचवें नंबर पर असम (1657) है.

रेप के मामलों में टॉप-5 राज्य
रेप के मामलों में टॉप-5 राज्य

देशभर में साल 2020 में रेप के 28,046 मामले दर्ज हुए जो बीते साल 2019 से 13 फीसद कम है. 2019 में रेप के 32,033 मामले दर्ज किए गए थे.

रेप के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में क्यों ?

राजस्थान के एडीजी क्राइम डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा के मुताबिक एक आम नागरिक के लिए पुलिस थाने में जाकर एफआईआर दर्ज करवाना काफी मुश्किल होता है, इसलिये राजस्थान सरकार ने साल 2019 ने अपराध को दर्ज करना अनिवार्य कर दिया था. अगर कोई एसएचओ ऐसा नहीं करता है तो जांच होने पर उसके खिलाफ कानूनी और विभागीय कार्रवाई का प्रावधान किया गया. जिसके बाद अधिक मामले दर्ज किए गए, जो एनसीआरबी के आंकड़े भी दिखाते हैं.

दो साल से रेप के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान से क्यों आ रहे हैं ?

डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा कहते हैं कि अपराध और उसका पंजीकरण दोनों अलग-अलग चीजें हैं, इस बात को एनसीआरबी भी मानता है. इस तरह के दर्ज मामलों में से करीब 40 से 45 फीसदी मामले गलत साबित होते हैं, उसके अलग कारण हैं और उनका विश्लेषण भी किया गया है. लेकिन इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं और कमजोर वर्ग को हुआ है, क्योंकि ये दोनों कतार के आखिर में होते हैं और इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. मेहरड़ा के मुताबिक आंकड़ों को लेकर एक दूसरे राज्य पर छींटाकशी या इमेज पर सवाल नहीं उठना चाहिए क्योंकि इसका नुकसान आम जनता को होगा. अगर कम मामले दर्ज होने पर एसएचओ की पीठ थपथपाई जाएगी तो ज्यादा एफआईआर दर्ज नहीं होंगी. मामला दर्ज करने के बाद त्वरित कार्रवाई करना और नतीजे पर पहुंचना बड़ी बात है.

रेप के मामलों में 95% करीबी आरोपी

रेप के कुल दर्ज हुए 28,046 मामलों में 95 फीसदी मामलों में कोई करीबी ही आरोपी था. इनमें परिवार का सदस्य, दोस्त, पड़ोसी या पारिवारिक दोस्त शामिल है. सिर्फ 1,238 मामलों में ही कोई अनजान आरोपी था.

ये भी पढ़ें: एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामले में यूपी, एमपी सबसे ऊपर : एनसीआरबी

रेप के मामलों में 95 फीसदी करीबी ही आरोपी
रेप के मामलों में 95 फीसदी करीबी ही आरोपी

महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़े

एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 3,71,503 मामले दर्ज हुए जो पिछले साल (4,05,503) से 8.3 फीसदी कम है. महिला के खिलाफ अपराध में उत्तर प्रदेश (49,853) पहले, पश्चिम बंगाल (36,439) दूसरे, राजस्थान (34,535) तीसरे, महाराष्ट्र (31,954) चौथे और असम (26,352) पांचवें स्थान पर है.

देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले
देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले

मेट्रो सिटीज़ में रेप के मामले

देश के महानगरों में कुल 2,533 रेप के मामले दर्ज किए गए. इनमें से देश की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा 967 मामले दर्ज किए गए. दूसरे नंबर पर जयपुर (409), तीसरे पर मुंबई (322), चौथे नंबर पर बेंगलुरु (108) और पांचवे पर चेन्नई (31) है.

ये भी पढ़ें: महाराष्ट्र समेत तीन राज्यों में मानव तस्करी के मामले सबसे अधिक : एनसीआरबी

ऐसे में महिला आयोग या महिला संगठनों की क्या भूमिका है ?

महिलाओं के खिलाफ अपराध के बाद महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन या महिला आयोग जैसे संस्थानों की तरफ से निंदा या नोटिस की कार्रवाई की जाती है. सवाल है कि क्या महिलाओं के हितों को ध्यान में रखकर बनाए गए ऐसे संगठन अपनी भूमिका ठीक से निभा पाते हैं ? क्या उन्हें और शक्तियों की जरूरत है ?

हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष प्रीति भारद्वाज के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की बात करें तो आयोग के पास प्रदेश ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों और देश के बाहर से भी एनआरआई महिलाओं की भी शिकायतें आती हैं. जिसके बाद संबंधित इलाके के पुलिस अधिकारी को शिकायत भेजते हैं. फिर पुलिस उसपर कार्रवाई करके आयोग को एक्शन टेकन रिपोर्ट भेजती है. जिसके आधार पर दोनों पक्षों के साथ वेरिफाई किया जाता है. महिलाओं के खिलाफ अपराध की कितनी शिकायतें हुईं, उनमें से कितनी में एफआईआर दर्ज हुई, घरेलू हिंसा के कितने मामले आयोग के पास आए और पुलिस के पास कितने पहुंचे. दोनों में अंतर की जांच और कार्रवाई पर नजर रखी जाती है.

लेकिन सवाल है कि क्या महिला आयोग की शक्तियां ऐसे मामलों पर नकेल कसने के लिए काफी हैं ? प्रीति भारद्वाज कहती हैं कि महिला आयोग पूरी तरह से सशक्त है, भले ये एक अनुशंसा या सिफारिश करने वाली बॉडी हो लेकिन आयोग के पास किसी मामले में स्वत: संज्ञा से लेकर देशभर में किसी को भी नोटिस देने और सिविल कोर्ट तक की पावर है. साथ ही आयोग की हर सिफारिश सरकार के हर विभाग में मानी जाती है.

क्यों बढ़ रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध ?

लॉकडाउन में अपराध घटने पर पीठ ना थपथपाएं

लॉकडाउन में महिलाओं के खिलाफ अपराध ही नहीं हर तरह के अपराध कम हुए हैं लेकिन ये कोई पीठ थपथपाने वाली बात नहीं है. क्योंकि लॉकडाउन के बावजूद देशभर में 66 लाख से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं, 29,193 हत्या और 1,28,531 मामले बच्चों के खिलाफ अपराध के दर्ज हुए हैं. 3,71,503 महिला अपराध के मामले दर्ज हुए, 28,046 रेप और 62,300 अपहरण के मामले दर्ज हुए. 6996 मामले दहेज की वजह से मौत के तो 105 मामले तेजाब हमले के भी दर्ज हुए हैं.

हर राज्य, हर शहर से महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले आए हैं. राजस्थान में भले रेप के मामले सबसे अधिक दर्ज हुए हैं और महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले यूपी से सामने आए हों लेकिन महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल पूरे देश में है, हर राज्य में है. बीते साल (2019) के मुकाबले लॉकडाउन की वजह से मामले कम आए हैं, इसे ऐसे ना देखकर ऐसे देखें कि अगर लॉकडाउन ना होता तो अपराध के मामले बीते साल के मुकाबले कितने अधिक होते. या लॉकडाउन की वजह से ही अपराधियों पर थोड़ी सी लगाम लग सकी. एनसीआरबी के आंकड़े पुलिस से लेकर सरकार और समाज से लेकर परिवारों तक पर सवाल खड़े करते हैं. आंकड़ों के जरिये अपराध को कुछ कम और ज्यादा करके तो आंका जा सकता है लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध के लाखों मामले खासकर रेप के मामले बताते हैं कि कानून का डर अपराधियों में नहीं है.

NCRB की रिपोर्ट के आंकड़े
NCRB की रिपोर्ट के आंकड़े

'लॉकडाउन में घरेलू हिंसा बढ़ी है'

प्रीति भारद्वाज के मुताबिक रेप के मामले भले कम हुए हों लेकिन लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं. लॉकडाउन के दौरान लोग घर की चारदीवारी में कैद हुए, जिसके बाद आयोग के पास घरेलू हिंसा की शिकायतें आईं.

इंदौर के मनोचिकित्सक पवन राठी भी मानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान दफ्तर, फैक्ट्रियां बंद होने से घर में भीड़ बढ़ी जिसका असर घरेलू हिंसा के रूप में भी सामने आया. आज हर 4 में से एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है. कई बार महिलाएं अशिक्षित या समाज के डर के कारण अपनी शिकायत दर्ज नहीं करवाती है. अगर सभी घरेलू हिंसा या महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले पुलिस की चौखट तक पहुंचने लगें तो अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि अपराध का आंकड़ा कहां पहुंचेगा.

महिलाओं के खिलाफ अपराध पर कैसे लगेगी लगाम ?

हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष प्रीति भारद्वाज के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हर तरह के अपराध पर लगाम लगाने के लिए परिवार और समाज को पुरुषों को ये सिखाना होगा कि एक बच्ची, लड़की या महिला के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए. परिवार से संस्कार और स्कूल में नैतिक शिक्षा का ज्ञान बच्चों को मिलना बहुत जरूरी है.

पवन राठी के मुताबिक महिलाओं की अशिक्षा, पुरुषों की मानसिकता और नशा महिला अपराध और खासकर घरेलू हिंसा का मुख्य कारण हैं. ऐसे में सरकार की नीतियों के अलावा समाज की भागीदारी और हर शख्स का खुद को बेहतर करने के लिए कदम उठाना होगा. इसके अलावा मनोचिकित्सकों का भी रोल बहुत अहम है. मनोचिकित्सकों को आगे आकर इस क्षेत्र में नीति या ऐसे कार्यक्रम तैयार करने चाहिए जिससे महिलाओं के खिलाफ अपराध पर लगाम लग सके.

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