देहरादून: उत्तराखंड में सियासी संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मोदी लहर में शानदार जीत हासिल कर 57 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन डबल इंजन वाली सरकार में भी प्रदेश के नेतृत्व पर हमेशा ही सियासी संकट छाया रहा. पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने कार्यकाल से पहले ही सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी. वहीं, वर्तमान में सीएम तीरथ सिंह रावत पर भी सियासी संकट गहराता नजर आ रहा है. एक बार फिर से प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है.
उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट
उत्तराखंड में एक बार फिर से मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाएं जोरों पर हैं. 9 मार्च को जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से हटाया गया था तो नए सीएम के चेहरे को लेकर कई नेताओं का नाम चर्चाओं में था. आखिरकार पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद तीरथ रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. एक बार फिर से मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाएं जोरों पर हैं. सूत्रों के मुताबिक तीरथ सिंह रावत ने पार्टी आलाकमान के सामने इस्तीफे की पेशकश की है. अगर सीएम को बदला जाता है तो अब किसे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा यह सवाल उत्तराखंड के जनमानस के जेहन में है.
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संभावित चेहरे की तलाश
ऐसे में तीरथ के विकल्प के तौर पर जिस संभावित चेहरे पर मुहर लग सकती है, उस कतार में नेताओं की लंबी फौज खड़ी है. अगर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को पद से हटाया जाता है तो वह कौन-कौन से नेता हैं, जो इस लाइन में सबसे आगे खड़े हैं और इन नेताओं की क्या विशेषता है. वह कौन से विषय हैं, जो इनको एक दूसरे से आगे-पीछे करते हैं. आइए जानते हैं.
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रमेश पोखरियाल निशंक
जिस तरह से उत्तराखंड में इस वक्त हालात हैं, उससे आगामी चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है. ऐसे में बीजेपी के लिए कांग्रेस बड़ी चुनौती बन सकती है. कांग्रेस में इस वक्त हरीश रावत एक बड़ा चेहरा हैं और उनका सामना करने के लिए भाजपा को भी किसी बड़े चेहरे की जरूरत है, जो रमेश पोखरियाल निशंक के रूप में हो सकता है. कई लोगों का मानना है कि भाजपा के इंटरनल सर्वे में पार्टी की उत्तराखंड में बेहद बुरी स्थिति है, जिसे देखते हुए पार्टी एक बड़े चेहरे को प्रदेश में उतार सकती है. वह चेहरा रमेश पोखरियाल निशंक का भी हो सकता है, इस बात में कोई शक नहीं है.
धन सिंह रावत
धन सिंह रावत भी एक बहुत बड़ा चेहरा हैं, जिनका संभावित मुख्यमंत्री चेहरे के लिए हर बार नाम सामने आता रहा है. वहीं, राज्यमंत्री धन सिंह रावत संघ के बेहद करीबी माने जाते हैं. पूरी सरकार में अगर कोई इस वक्त अगर संघ के सबसे ज्यादा करीब है तो वह धन सिंह रावत हैं. हालांकि, धन सिंह रावत का भी एक ड्रॉ बैक है कि वह पहली बार के विधायक हैं, लेकिन भाजपा में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है. ऐसे में पार्टी कई मांगों से परे अपना चेहरा चुन सकती है.
सतपाल महाराज
उत्तराखंड में अगर सत्ता परिवर्तन होता है तो चुनाव ना होने की स्थिति में विधायकों में से ही कोई नया मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. ऐसे में सीनियरिटी के साथ-साथ केंद्रीय नेतृत्व के करीबियों की बात करें तो सतपाल महाराज का नाम सबसे आगे है. सतपाल महाराज कई बार विधायक और सांसद भी रह चुके हैं. पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह तक उनकी अच्छी पकड़ है. वहीं, उत्तराखंड सहित पूरे देश में उनके लाखों की संख्या में अनुयायी मौजूद हैं, लेकिन अगर सतपाल महाराज के ड्रॉ बैक की बात करें तो सतपाल महाराज कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं और उनके मुख्यमंत्री बनने में कहीं ना कहीं यह बात आड़े आ सकती है. हालांकि सतपाल का भी मानना है कि वह कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी ऐसे में बीजेपी विधायक उनके नाम पर हामी नहीं भरेंगे.
बिशन सिंह चुफाल
पार्टी में बिशन सिंह चुफाल भी एक वरिष्ठ विधायक और मंत्री हैं. वह पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं. उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड में वह विधायक रह चुके हैं. कई सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं और पार्टी में उनका एक विशेष स्थान है. उनके पास बतौर प्रदेश अध्यक्ष का भी अनुभव है और बताया जाता है कि बिशन चुफाल अब तक अपने सभी दायित्वों को निभाने में बेहद सुलझे हुए और सफल रहे हैं. ऐसे में मौजूदा विधायक में से अगर किसी एक को चुनना हो तो पार्टी के लिए बिशन सिंह चुफाल भी एक नाम हो सकता है.
नया मुख्यमंत्री चुनते वक्त बीजेपी आलाकमान को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को भी ध्यान में रखना होगा. इसके अलावा मौजूदा विधायक को प्रदेश की कमान दी जाए या संगठन, केंद्र से किसी को भेजा जाए. ये सवाल भी पार्टी आलाकमान के जहन में जरूर होगा. क्योंकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद पौड़ी गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था और 6 महीने के भीतर विधानसभा में चुनकर जाने का कोई आसार अभी नजर नहीं आ रहा. नियम के मुताबिक चुनाव में एक साल से कम का वक्त होने पर उपचुनाव नहीं हो सकते और अगर बात मुख्यमंत्री की हो तब भी कोरोना की स्थिति को देखते हुए लगता नहीं कि चुनाव आयोग राज्य में उपचुनाव करवाएगा. ऐसे में बीजेपी आलाकमान को अगले मुख्यमंत्री का फैसला लेने से पहले कई मोर्चों पर सोचना होगा.