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प.बंगाल विधानसभा चुनाव : नंदीग्राम के बाद अब सिंगूर की बारी

नंदीग्राम के बाद अब बारी सिंगूर की है. शनिवार को यहां पर चुनाव है. यहां भी ममता के पूर्व सहयोगी मास्टर मोशाय मैदान में हैं, लेकिन वह टीएमसी से नहीं, बल्कि भाजपा से हैं. टीएमसी ने यहां से बेचाराम मन्ना को मैदान में उतारा है. वाम ने यहां से जाधवपुर यूनिवर्सिटी के छात्र नेता को मौका दिया है. वह मात्र 27 साल के हैं. ईटीवी भारत के न्यूज को-ऑर्डिनेटर दीपांकर भट्टाचार्य की एक रिपोर्ट.

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चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी
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Published : Apr 9, 2021, 10:00 PM IST

हैदराबाद : नंदीग्राम में संघर्ष के बाद अब सिंगूर की बारी है. शनिवार को यहां पर मतदान होना है. नंदीग्राम की तरह सिंगूर का भी अपना इतिहास है. ममता बनर्जी ने यहां पर आंदोलन छेड़ा था. इन आंदोलनों की बदौलत उन्होंने 34 साल के वाम शासन को उखाड़ फेंका था. पर, इस बार यहां क्या होगा, कहना मुश्किल है. टीएमसी, भाजपा और वाम तीनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है.

आपको बता दें कि वाम सरकार ने टाटा मोटर्स के लिए सिंगूर में जमीन अधिग्रहण करने का फैसला किया था. तब स्थानीय जनता ने इसका विरोध कर दिया. ममता ने इस अवसर को राजनीतिक रंग दिया. उनके पक्ष में आंदोलन के लिए खड़ी हो गईं. नंदीग्राम के साथ-साथ सिंगूर की वह बड़ी नेता बन गईं. पूरा मामला 2006 का है.

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल 2001 से ही सिंगूर में अच्छा करती आ रही है. 2001 में टीएमसी ने यहां से रबींद्रनाथ भट्टाचार्जी को खड़ा किया था. वह एक स्थानीय शिक्षक थे. 2016 तक वह लगातार यहां से चुनाव जीतते रहे. उन्हें 'मास्टर मोशाय' के रूप में जाना जाता है. सिंगूर इलाके में उन्होंने ममता के पक्ष में माहौल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन यह 2016 नहीं, 2021 है. परिस्थिति बदल चुकी है.

89 साल के मास्टर मोशाय अब भाजपा में जा चुके हैं. टीएमसी ने पहले ही उन्हें टिकट न देने की घोषणा कर दी थी. टीएमसी का कहना है कि वह बुजुर्ग हो चुके थे, लिहाजा उनका टिकट काटा गया था.

भाजपा ने यह मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पार्टी ने मास्टर मोशाय को अपना उम्मीदवार बना दिया. उनके खिलाफ टीएमसी के बेचाराम मन्ना को मैदान में उतारा. वह कृषि जमीन रक्षा समिति के समन्वयक हैं. मन्ना सिंगूर के बगल के इलाके हरिपाल से विधायक हैं. हरिपाल से मन्ना की बीवी काराबी मैदान में हैं. वह टीएमसी से चुनाव लड़ रही हैं. दरअसल, भाजपा चाहती थी कि मन्ना ही कमल के सिंबल पर चुनाव लड़ें. लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

सिंगूर का चुनावी गणित अब बदल चुका है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंगूर का कुछ अलग ही अंदाज दिखा. सिंगूर विधानसभा सीट से भाजपा 11000 मतों से आगे थी. यह हुगली लोकसभा में पड़ता है. हुगली से भाजपा की लॉकेट चटर्जी सांसद हैं. 2011 में टीएमसी को यहां पर 57.11 फीसदी वोट मिले थे. 2016 में टीएमसी को 50 फीसदी मत मिला था.

पांच साल के कानूनी संघर्ष के बाद तृणमूल सरकार ने सिंगूर के किसानों को जमीन तो लौटा दी. लेकिन पार्टी ने वहां के युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं हुआ. इसे लेकर युवाओं में नाराजगी है. सिंगूर की यह जमीन बहुत उपजाऊ नहीं है. यह कृषि योग्य नहीं है. स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार से भी सिंगूर के किसान परेशान हैं. इस मुद्दे को लेकर टीएमसी के प्रति नाराजगी भी है.

वाम ने यहां से 27 साल के युवा श्रीजन भट्टाचार्य को उम्मीदवार बनाया है. वह एसएफआई के हैं. वह जाधवपुर यूनिवर्सिटी छात्र संघ के नेता रह चुके हैं. वह युवाओं को लुभा रहे हैं. सिंगूर में आठ फीसदी मुसलमान भी हैं.

ये भी पढ़ें : ममता के लिए नंदीग्राम मजबूरी या रणनीति

जाहिर है, निश्चिंतता के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. हवा का रूख किधर है, कहना मुश्किल है. किसी एक पार्टी के पक्ष में हवा नहीं है. दुर्गापुर हाईवे पर स्थित सिंगूर किसे चुनेगा, जनता शनिवार को इसका फैसला करेगी.

हैदराबाद : नंदीग्राम में संघर्ष के बाद अब सिंगूर की बारी है. शनिवार को यहां पर मतदान होना है. नंदीग्राम की तरह सिंगूर का भी अपना इतिहास है. ममता बनर्जी ने यहां पर आंदोलन छेड़ा था. इन आंदोलनों की बदौलत उन्होंने 34 साल के वाम शासन को उखाड़ फेंका था. पर, इस बार यहां क्या होगा, कहना मुश्किल है. टीएमसी, भाजपा और वाम तीनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है.

आपको बता दें कि वाम सरकार ने टाटा मोटर्स के लिए सिंगूर में जमीन अधिग्रहण करने का फैसला किया था. तब स्थानीय जनता ने इसका विरोध कर दिया. ममता ने इस अवसर को राजनीतिक रंग दिया. उनके पक्ष में आंदोलन के लिए खड़ी हो गईं. नंदीग्राम के साथ-साथ सिंगूर की वह बड़ी नेता बन गईं. पूरा मामला 2006 का है.

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल 2001 से ही सिंगूर में अच्छा करती आ रही है. 2001 में टीएमसी ने यहां से रबींद्रनाथ भट्टाचार्जी को खड़ा किया था. वह एक स्थानीय शिक्षक थे. 2016 तक वह लगातार यहां से चुनाव जीतते रहे. उन्हें 'मास्टर मोशाय' के रूप में जाना जाता है. सिंगूर इलाके में उन्होंने ममता के पक्ष में माहौल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन यह 2016 नहीं, 2021 है. परिस्थिति बदल चुकी है.

89 साल के मास्टर मोशाय अब भाजपा में जा चुके हैं. टीएमसी ने पहले ही उन्हें टिकट न देने की घोषणा कर दी थी. टीएमसी का कहना है कि वह बुजुर्ग हो चुके थे, लिहाजा उनका टिकट काटा गया था.

भाजपा ने यह मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पार्टी ने मास्टर मोशाय को अपना उम्मीदवार बना दिया. उनके खिलाफ टीएमसी के बेचाराम मन्ना को मैदान में उतारा. वह कृषि जमीन रक्षा समिति के समन्वयक हैं. मन्ना सिंगूर के बगल के इलाके हरिपाल से विधायक हैं. हरिपाल से मन्ना की बीवी काराबी मैदान में हैं. वह टीएमसी से चुनाव लड़ रही हैं. दरअसल, भाजपा चाहती थी कि मन्ना ही कमल के सिंबल पर चुनाव लड़ें. लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

सिंगूर का चुनावी गणित अब बदल चुका है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंगूर का कुछ अलग ही अंदाज दिखा. सिंगूर विधानसभा सीट से भाजपा 11000 मतों से आगे थी. यह हुगली लोकसभा में पड़ता है. हुगली से भाजपा की लॉकेट चटर्जी सांसद हैं. 2011 में टीएमसी को यहां पर 57.11 फीसदी वोट मिले थे. 2016 में टीएमसी को 50 फीसदी मत मिला था.

पांच साल के कानूनी संघर्ष के बाद तृणमूल सरकार ने सिंगूर के किसानों को जमीन तो लौटा दी. लेकिन पार्टी ने वहां के युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं हुआ. इसे लेकर युवाओं में नाराजगी है. सिंगूर की यह जमीन बहुत उपजाऊ नहीं है. यह कृषि योग्य नहीं है. स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार से भी सिंगूर के किसान परेशान हैं. इस मुद्दे को लेकर टीएमसी के प्रति नाराजगी भी है.

वाम ने यहां से 27 साल के युवा श्रीजन भट्टाचार्य को उम्मीदवार बनाया है. वह एसएफआई के हैं. वह जाधवपुर यूनिवर्सिटी छात्र संघ के नेता रह चुके हैं. वह युवाओं को लुभा रहे हैं. सिंगूर में आठ फीसदी मुसलमान भी हैं.

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जाहिर है, निश्चिंतता के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. हवा का रूख किधर है, कहना मुश्किल है. किसी एक पार्टी के पक्ष में हवा नहीं है. दुर्गापुर हाईवे पर स्थित सिंगूर किसे चुनेगा, जनता शनिवार को इसका फैसला करेगी.

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