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SC on Gyanvapi row: ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से पूजा स्थल अधिनियम को लेकर पूछे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Gyanvapi row) मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने मुस्लिम पक्ष (SC to Muslim side on Gyanvapi row ) से सवाल पूछे.

When Hindu side not sought altering of structures character how  Places of Worship Act come  SC to Muslim side on Gyanvapi row
ज्ञानवापी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से पूछे ये सवाल
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 14, 2023, 6:57 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अगर वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार के लिए दायर मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से वर्जित है, तो यह 15 अगस्त, 1947 को संरचना के चरित्र और स्थिति पर निर्भर करेगा जो कि कानून के तहत अंतिम तिथि तय की गई है.

मस्जिद पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने तर्क दिया कि चल रहा मुकदमा 1991 के कानून के तहत प्रतिबंधित है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अधिनियम कहता है कि आप जगह की प्रकृति को बदल या परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और हिंदू पक्ष जगह के रूपांतरण की मांग नहीं कर रहा है.

पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि 15 अगस्त, 1947 को उस स्थान की स्थिति क्या थी. अहमदी ने जोर देकर कहा कि 1991 का कानून धार्मिक पूजा स्थलों की स्थिति को फ्रीज करने के लिए बनाया गया था क्योंकि वे 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में थे. पीठ ने अहमदी से सवाल किया कि क्या वह यह कह रहे हैं कि हिंदू पक्ष द्वारा मांगी गई राहत सीधे तौर पर पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में है.

ये भी पढ़ें- उच्चतम न्यायालय ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में आज करेगा पीठ का गठन

पीठ ने आगे सवाल किया कि अब सवाल यह है कि क्या यह अधिनियम द्वारा वर्जित है. यह 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थान के चरित्र पर निर्भर करेगा. वकील ने तर्क दिया कि यह प्रथम दृष्टया वर्जित है क्योंकि वादी की ओर से कहा गया है कि यह एक मस्जिद है. हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं के एक समूह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान ने इस तर्क से इनकार किया. दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई सोमवार को तय की है. अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी ने मुकदमे की मेंनटेनेबलिटी और ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने के लिए पारित आदेशों को चुनौती दी थी.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अगर वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार के लिए दायर मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से वर्जित है, तो यह 15 अगस्त, 1947 को संरचना के चरित्र और स्थिति पर निर्भर करेगा जो कि कानून के तहत अंतिम तिथि तय की गई है.

मस्जिद पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने तर्क दिया कि चल रहा मुकदमा 1991 के कानून के तहत प्रतिबंधित है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अधिनियम कहता है कि आप जगह की प्रकृति को बदल या परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और हिंदू पक्ष जगह के रूपांतरण की मांग नहीं कर रहा है.

पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि 15 अगस्त, 1947 को उस स्थान की स्थिति क्या थी. अहमदी ने जोर देकर कहा कि 1991 का कानून धार्मिक पूजा स्थलों की स्थिति को फ्रीज करने के लिए बनाया गया था क्योंकि वे 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में थे. पीठ ने अहमदी से सवाल किया कि क्या वह यह कह रहे हैं कि हिंदू पक्ष द्वारा मांगी गई राहत सीधे तौर पर पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में है.

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पीठ ने आगे सवाल किया कि अब सवाल यह है कि क्या यह अधिनियम द्वारा वर्जित है. यह 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थान के चरित्र पर निर्भर करेगा. वकील ने तर्क दिया कि यह प्रथम दृष्टया वर्जित है क्योंकि वादी की ओर से कहा गया है कि यह एक मस्जिद है. हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं के एक समूह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान ने इस तर्क से इनकार किया. दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई सोमवार को तय की है. अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी ने मुकदमे की मेंनटेनेबलिटी और ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने के लिए पारित आदेशों को चुनौती दी थी.

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