नई दिल्ली : पूर्व भारतीय राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने अपनी किताब भारत बनाम ब्रिटेन: अभूतपूर्व कूटनीतिक जीत की कहानी में यह खुलासा किया है कि उन्होंने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को बोरिस जॉनसन से फोन पर बात न करने की सलाह दी थी.
अकबरुद्दीन ने कहा कि आईसीजे में जीत वैश्विक मंचों के लिए भारत के हालिया दृष्टिकोण के बदलते स्वरूपों को समझने के लिए सबसे अच्छा मामला है. अकबरुद्दीन 2016 में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय के स्थायी प्रतिनिधि बने और वर्ष 2020 में भारतीय विदेश सेवा से अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर रहे. न चाहते हुए भी भारत को कुलभूषण जाधव मामले के लिए आईसीजे जाना पड़ा जिसने अदालत में किसी भारतीय न्यायाधीश के होने की महत्ता साबित की.
आईसीजे में न्यायाधीश पद के लिए न्यायाधीश भंडारी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा का शानदार समर्थन मिला. कड़े मुकाबले के बाद ब्रिटेन ने अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का फैसला कर लिया था. चुनाव से पहले वैश्विक नेताओं और अधिकारियों से काफी बातचीत की गई थी.
इनमें से एक बैठक के बाद अकबरुद्दीन को तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर का संदेश मिला कि जॉनसन नई दिल्ली में विदेश मंत्री से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. अकबरुद्दीन ने अपनी किताब में लिखा कि मैंने उनके बाकी के संदेश भी नहीं पढ़े और तुरंत डॉ. जयशंकर को फोन लगाया.
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मेरी बात सुनने से पहले ही उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि शांत रहिए, हम आपके विचार जानते हैं. मैंने अनुरोध किया कि उनकी बात न होने दीजिए. मैं बस यही सोच रहा था कि ब्रिटेन की ओर से कहीं कोई ऐसा प्रस्ताव न हो जिसे मंत्री के लिए अस्वीकार करना मुश्किल हो.