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जब दहला था सीवान का कलेजा, शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर में गिरी थीं 13 लाशें

शहाबुद्दीन ने साल 1980 में सियासत में कदम रख था, उस वक्त शहाबुद्दीन ने माकपा व भाकपा के खिलाफ जमकर लोहा लिया था. इसके बाद सीवान में उसकी पहचान दबंग राजनेता के तौर होने लगी, लेकिन 15 मार्च 2001 को शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर में जो कुछ भी हुआ, उससे पूरा देश थर्रा गया था. पढ़ें पूरी खबर....

शहाबुद्दीन
शहाबुद्दीन
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Published : May 1, 2021, 1:59 PM IST

सीवान : अगर आप बिहार के हैं और सीवान के रहने वाले हैं तो टेढ़ीघाट के प्रतापपुर स्थित शहाबुद्दीन की कोठी के बारे में जानते ही होंगे. प्रतापपुर में मार्च 15, 2001 में कुछ ऐसा हुआ था, जिससे बिहार के साथ-साथ पूरा देश थर्रा उठा था. 15 मार्च के दिन प्रतापपुर में हुए मुठभेड़ और मोहम्मद शहाबुद्दीन की कहानी लोग आज भी सुनाते हैं.

13 लोग मारे गए थे
दरअसल, प्रतापपुर में हुई मुठभेड़ में कुल 13 लोग मारे गए थे. जानकार बताते हैं कि यह मुठभेड़, शहाबुद्दीन और बिहार पुलिस के बीच हुई थी. शहाबुद्दीन के साथ-साथ उसके समर्थक इस मुठभेड़ में शामिल थे. बताया जाता है कि दोपहर में शुरू हुई गोलीबारी देर रात तक चली थी, जिसमें कुल 13 लोग मारे गए थे. इसमें एक पुलिसकर्मी भी शामिल था.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

सीआरपीएफ की 3 कंपनियों को भेजा गया प्रतापगढ़
बताया जाता है कि इस घटना के बाद सीआरपीएफ की 3 कंपनियों को प्रतापगढ़ रवाना किया गया था. यही नहीं, रांची से भारतीय सेना की एक बटालियन को भी भेजा गया था. जानकार बताते हैं कि सीवान पुलिस शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने में असमर्थ रही थी, इसीलिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों को पुलिस की मदद के लिए भेजा गया था.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

सीवान छोड़ चुका था शहाबुद्दीन
जब तक पुलिस बल वहां पहुंचती तब तक तत्कालीन सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन पुलिस की नाक के नीचे से सीवान जिले से बाहर निकल चुका था. गौरतलब है कि प्रतापपुर गांव सीवान से करीब 18 किलोमीटर दूर है. कहा जाता है कि शहाबुद्दीन के सारे गैर-कानूनी काम वहीं से होते थे.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

क्या हुआ था उस दिन
जानकारी के अनुसार, 15 मार्च 2001 को सीवान पुलिस आरजेडी के एक नेता के खिलाफ वारंट लेकर गिरफ्तारी के लिए दारोगा राय कॉलेज पहुंची थी. बताया जाता है कि शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया था. इस घटना के बाद शहाबुद्दीन के सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी. इस घटना के बाद सीवान पुलिस शहाबुद्दीन के गांव छापेमारी करने पहुंच गई. इस दौरान दोनों ओर से कई राउंड गोलियां चलीं, जिसमें पुलिस वाले सहित कई लोग मारे गए थे.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

'क्राइम कैपिटल' बन गया था सीवान का प्रतापपुर
जानकार बताते हैं कि उस वक्त प्रतापपुर एक तरह से सीवान का 'क्राइम कैपिटल' बन गया था, जहां से सिर्फ हुक्म चलता था. वहां पुलिस की एंट्री की तो इजाजत ही नहीं थी, छापेमारी तो दूर की बात थी.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

21 साल की उम्र में पहला केस
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान के एक थाने में महज 21 साल की उम्र में पहला मामला दर्ज हुआ था. इसके बाद देखते ही देखते शहाबुद्दीन सीवान के मोस्ट वांटेड क्रिमिनल बन गया. शहाबुद्दीन का सियासी सफर शुरू होने से काफी पहले उसकी दबंगई के चर्चे सीवन में होने लगे थे. रिकॉर्ड के मुताबिक उस पर पहली एफआईआर 1986 में सीवान जिले के हुसैनगंज थाने में दर्ज हुई थी.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

इसे भी पढ़ें : आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन का कोरोना से निधन

18 साल में माले के 18 समर्थकों की हत्या
बताया जाता है कि साल 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसमें जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर और वरिष्ठ नेता श्याम नारायण भी शामिल थे.

सीवान : अगर आप बिहार के हैं और सीवान के रहने वाले हैं तो टेढ़ीघाट के प्रतापपुर स्थित शहाबुद्दीन की कोठी के बारे में जानते ही होंगे. प्रतापपुर में मार्च 15, 2001 में कुछ ऐसा हुआ था, जिससे बिहार के साथ-साथ पूरा देश थर्रा उठा था. 15 मार्च के दिन प्रतापपुर में हुए मुठभेड़ और मोहम्मद शहाबुद्दीन की कहानी लोग आज भी सुनाते हैं.

13 लोग मारे गए थे
दरअसल, प्रतापपुर में हुई मुठभेड़ में कुल 13 लोग मारे गए थे. जानकार बताते हैं कि यह मुठभेड़, शहाबुद्दीन और बिहार पुलिस के बीच हुई थी. शहाबुद्दीन के साथ-साथ उसके समर्थक इस मुठभेड़ में शामिल थे. बताया जाता है कि दोपहर में शुरू हुई गोलीबारी देर रात तक चली थी, जिसमें कुल 13 लोग मारे गए थे. इसमें एक पुलिसकर्मी भी शामिल था.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

सीआरपीएफ की 3 कंपनियों को भेजा गया प्रतापगढ़
बताया जाता है कि इस घटना के बाद सीआरपीएफ की 3 कंपनियों को प्रतापगढ़ रवाना किया गया था. यही नहीं, रांची से भारतीय सेना की एक बटालियन को भी भेजा गया था. जानकार बताते हैं कि सीवान पुलिस शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने में असमर्थ रही थी, इसीलिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों को पुलिस की मदद के लिए भेजा गया था.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

सीवान छोड़ चुका था शहाबुद्दीन
जब तक पुलिस बल वहां पहुंचती तब तक तत्कालीन सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन पुलिस की नाक के नीचे से सीवान जिले से बाहर निकल चुका था. गौरतलब है कि प्रतापपुर गांव सीवान से करीब 18 किलोमीटर दूर है. कहा जाता है कि शहाबुद्दीन के सारे गैर-कानूनी काम वहीं से होते थे.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

क्या हुआ था उस दिन
जानकारी के अनुसार, 15 मार्च 2001 को सीवान पुलिस आरजेडी के एक नेता के खिलाफ वारंट लेकर गिरफ्तारी के लिए दारोगा राय कॉलेज पहुंची थी. बताया जाता है कि शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया था. इस घटना के बाद शहाबुद्दीन के सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी. इस घटना के बाद सीवान पुलिस शहाबुद्दीन के गांव छापेमारी करने पहुंच गई. इस दौरान दोनों ओर से कई राउंड गोलियां चलीं, जिसमें पुलिस वाले सहित कई लोग मारे गए थे.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

'क्राइम कैपिटल' बन गया था सीवान का प्रतापपुर
जानकार बताते हैं कि उस वक्त प्रतापपुर एक तरह से सीवान का 'क्राइम कैपिटल' बन गया था, जहां से सिर्फ हुक्म चलता था. वहां पुलिस की एंट्री की तो इजाजत ही नहीं थी, छापेमारी तो दूर की बात थी.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

21 साल की उम्र में पहला केस
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान के एक थाने में महज 21 साल की उम्र में पहला मामला दर्ज हुआ था. इसके बाद देखते ही देखते शहाबुद्दीन सीवान के मोस्ट वांटेड क्रिमिनल बन गया. शहाबुद्दीन का सियासी सफर शुरू होने से काफी पहले उसकी दबंगई के चर्चे सीवन में होने लगे थे. रिकॉर्ड के मुताबिक उस पर पहली एफआईआर 1986 में सीवान जिले के हुसैनगंज थाने में दर्ज हुई थी.

शहाबुद्दीन (फाइल)
शहाबुद्दीन (फाइल)

इसे भी पढ़ें : आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन का कोरोना से निधन

18 साल में माले के 18 समर्थकों की हत्या
बताया जाता है कि साल 1993 से 2001 के बीच सीवान में भाकपा माले के 18 समर्थक व कार्यकर्ताओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसमें जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर और वरिष्ठ नेता श्याम नारायण भी शामिल थे.

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