नई दिल्ली : बीजेपी सांसद रवि किशन शुक्रवार को अपने ऐलान के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण को लेकर प्राइवेट बिल हंगामे के कारण संसद में पेश नहीं कर सके. हालांकि चार बच्चों के पिता रवि किशन इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में ट्रोल हो चुके थे. क्या उनके पास विधेयक पेश की नैतिक वैधता है? क्याेंकि लोकसभा में 171 सांसदों के 2 से अधिक बच्चे हैं वहीं भाजपा के 39 सांसद के 4 या 4 से अधिक बच्चे हैं.
इसी तरह 2019 में बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा निजी बिल लाए थे. हालांकि प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य दो से अधिक बच्चों को जन्म देने से हतोत्साहित करना है. इसमें कहा गया है कि दो से अधिक संतान वाले जोड़ों को सरकारी नौकरी और सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सुविधाओं और सामानों पर सब्सिडी के लिए अपात्र बनाया जाए.
हालांकि, भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने शनिवार को ईटीवी भारत से कहा कि वह जो बिल राज्यसभा में लाए थे, उसे वापस लेना पड़ा था क्योंकि सरकार ने संसद में इसे स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था. लेकिन प्राथमिक सवाल यह है कि जिस संसद के माध्यम से यह कानून बनाया जा रहा है, उसी संसद के सदस्यों ने अपने परिवार को दो बच्चों तक सीमित रखा है या नहीं.
लोकसभा की वेबसाइट पर सांसदों के परिवार के बारे में ईटीवी भारत द्वारा प्राप्त जानकारी इस प्रकार है- लोकसभा की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार कुल 543 लोकसभा सदस्य हैं, जिनमें से 303 भाजपा के, 53 कांग्रेस के, डीएमके के 24, 23 या तृणमूल कांग्रेस के, वाईएसआर कांग्रेस के 22, शिवसेना के 19 सदस्य हैं. इसके अलावा जद (यू) के 16, बीजद के 12, बसपा के 10 और अन्य सांसद हैं. इन 543 सदस्यों में से 171 सदस्य ऐसे हैं जिनके 2 से अधिक बच्चे हैं, जिनमें से भाजपा के 107, कांग्रेस (10), जद (यू) (9), डीएमके (6) और 25 राजनीतिक दलों में से अन्य हैं.
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के 39 सांसद ऐसे हैं, जिनके चार या चार से अधिक बच्चे हैं, जबकि शेष राजनीतिक दलों में ऐसे लगभग 25 सांसद हैं. वहीं एआईयूडीएफ से सांसद मौलाना बदरुद्दीन, अपना दल (एस) (2) के पकौरी लाल और जद (यू) के दिलेश्वर कामत सहित 3 सांसद हैं, जिनके 7 बच्चे हैं जबकि एक सांसद के 6 बच्चे हैं.
इसके साथ जो प्राथमिक प्रश्न खड़ा होता है, वह यह है कि क्या वे सांसद जो 3 या 3 से अधिक बच्चों के पिता/माता हैं, उन्हें इस विधेयक को पेश करने और फिर पारित करने का नैतिक अधिकार है. इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री का कहना है कि सरकार असल में इन बिलों के जरिए संसद और देश का मूड नापने की कोशिश कर रही है. एक सोच यह भी है कि जैसे ही इस मुद्दे पर बहस शुरू होगी, ध्रुवीकरण तुरंत हो जाएगा और बीजेपी को किसी न किसी तरह से फायदा होगा. नैतिक वैधता के समीकरण पर वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा का कहना है कि 'वैधता' शब्द का राजनीति के दायरे में कोई वास्तविक स्थान नहीं है. उन्होंने कहा कि हम खुले दलबदल देख रहे हैं, भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े जाने के बाद भी मंत्री अभी भी अपने पद पर बने हुए हैं, इसलिए नैतिकता और सिद्धांत की जगह राजनीति में कोई वास्तविक स्थान नहीं है.
हालांकि, 'जनसंख्या नियंत्रण नीति' के क्षेत्र में कोई भी आत्मनिरीक्षण कर सकता है कि बिल कौन ला रहा है लेकिन यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. यह मुद्दा राजनीतिक बहस उठाता है या नहीं, केवल समय फैसला करेंगे लेकिन संसद के दोनों सदनों में भाजपा के संसदीय बहुमत की उपेक्षा नहीं कर सकते. यहां यह ध्यान देने योग्य है कि दो-बच्चों की नीति को लगभग तीन दर्जन बार संसद में पेश किया गया है, लेकिन किसी भी सदन से हरी झंडी नहीं मिली है.
हालांकि, यहां यह ध्यान देने योग्य है कि स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने मंगलवार को राज्यसभा को बताया था कि केंद्र सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए किसी विधायी उपाय पर विचार नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के अनुसार, 2019-21 में कुल प्रजनन दर (TFR) घटकर 2.0 हो गया जो प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है. हालांकि, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और भगवा पार्टी और हिंदुत्व समूहों के कई अन्य नेता हैं जो देश में बढ़ती जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कानून लाने की मांग कर रहे हैं.
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